Last Rites of Indian Prime Ministers : कौन थे भारत देश के तीन प्रधानमंत्री जिनका अंतिम संस्कार दिल्ली में नहीं हुआ

तीन भारतीय प्रधानमंत्री, जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री और राजीव गांधी, का अंतिम संस्कार दिल्ली में नहीं हुआ। नेहरू की अस्थियां देशभर में प्रवाहित की गईं, शास्त्री का अंतिम संस्कार वाराणसी में हुआ, और राजीव गांधी का इलाहाबाद में।

Last Rites of Indian Prime Ministers Outside Delhi : भारत में प्रधानमंत्रियों का अंतिम संस्कार आमतौर पर दिल्ली में ही होता है। लेकिन तीन ऐसे प्रधानमंत्री भी हुए हैं, जिनका अंतिम संस्कार दिल्ली के बाहर हुआ। यह घटनाएं भारत के इतिहास में एक अलग कहानी बयान करती हैं। यह तीनों कांग्रेस पार्टी से जुड़े हुए थे। आइए जानते हैं इनके बारे में।

जवाहरलाल नेहरू

जवाहरलाल नेहरू, जो भारत के पहले प्रधानमंत्री थे , उनका निधन 27 मई 1964 को हुआ था। हालांकि उनका अधिकतर जीवन और कामकाज दिल्ली में ही बीता, लेकिन उनकी इच्छा थी कि उनकी अस्थियां पूरे देश में प्रवाहित की जाएं। इसलिए उनका अंतिम संस्कार तो दिल्ली में हुआ, लेकिन उनकी अस्थियां गंगा समेत कई नदियों में प्रवाहित की गईं।

लाल बहादुर शास्त्री

लाल बहादुर शास्त्री, यह देश के दूसरे प्रधानमंत्रीथे उनका निधन 11 जनवरी 1966 को ताशकंद (अब उज्बेकिस्तान) में हुआ। वह भारत और पाकिस्तान के बीच समझौता वार्ता के लिए ताशकंद गए थे। उनकी मृत्यु हृदयाघात से हुई, लेकिन उनकी मृत्यु आज भी कई सवालों के घेरे में है। उनका अंतिम संस्कार उनके पैतृक निवास स्थान वाराणसी में हुआ।

राजीव गांधी

राजीव गांधी, भारत के छठे प्रधानमंत्री और कांग्रेस पार्टी के प्रमुख नेता, का निधन 21 मई 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक बम धमाके में हुआ। वह चुनाव प्रचार के लिए वहां गए थे। राजीव गांधी का अंतिम संस्कार दिल्ली में नहीं, बल्कि उनके परिवार की इच्छा के अनुसार, इलाहाबाद में संगम किनारे हुआ।

अंतिम संस्कार दिल्ली में क्यों नहीं

इन तीन प्रधानमंत्रियों का अंतिम संस्कार दिल्ली में न होने के पीछे उनकी व्यक्तिगत इच्छाएं और परिस्थितियां थीं। नेहरू चाहते थे कि उनकी अस्थियां पूरे देश में प्रवाहित हों। शास्त्री का निधन ताशकंद में हुआ था, और उनके परिवार ने वाराणसी में अंतिम संस्कार किया। राजीव गांधी का अंतिम संस्कार उनके परिवार की परंपराओं के अनुरूप इलाहाबाद में हुआ।

देश के इतिहास का हिस्सा

इन प्रधानमंत्रियों की कहानी बताती है कि कैसे उनकी अंतिम यात्रा उनके जीवन और परिवार की परंपराओं से जुड़ी हुई थी। यह घटनाएं उनके जीवन की गहराई और उनके परिवार की भावनाओं को दर्शाती हैं।

इन तीन प्रधानमंत्रियों का योगदान और उनकी अंतिम यात्राएं भारत के इतिहास का अहम हिस्सा हैं। यह हमें सिखाती हैं कि देश के नेताओं का जीवन और मृत्यु सिर्फ राजनीति तक सीमित नहीं होती, बल्कि यह उनके व्यक्तिगत मूल्यों और परंपराओं से भी जुड़ी होती है। यह घटनाएं उनके जीवन, परंपराओं और परिस्थितियों का प्रतीक हैं।

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