नई दिल्ली। यूक्रेन और रूस के युद्ध का आज सातवां दिन जारी है. वहीं इस बमबारी के बीच हजारों की संख्या में यूक्रेन में पढ़ रहे छात्र फंस चुके है. जिसे देखते हुए भारत सरकार ने गंगा ऑपरेशन चलाया है. जिसके तहत सभी भारतीय नागरिकों और छात्रों को वतन वापस लाया जा रहा है. वहीं भारत सरकार इस युद्ध के बीच सभी भारतीयों को सकुशल वापस लाने की पूरी कोशिश कर रही है।
पुतिन के जीवन का इतिहास
आपको बता दें रूस के द्वारा यूक्रेन पर किए जा रहे इस अतिक्रमण से सभी यूरोपियन यूनियन से लेकर अमेरिका, और जापान से लेकर ऑस्ट्रेलिया. सब रूस के खिलाफ है. लेकिन यूक्रेन के मोर्चे पर व्लादिमीर पुतिन किसी भी हाल में झुकने को तैयार नहीं है.ऐसे में लोगों के मन में सवाल आ रहा है कि पुतिन के जीवन का आखिर इतिहास क्या है. जो उन्होंने यूक्रेन के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया है. जहां आधे दर्जन से ज्यादा देश एक तरफ और पुतिन एक तरफ।
ऐसे में हर कोई रूस के राष्ट्रपति के जीवन के बारे में जानना चाहता है. व्लादिमीर पुतिन का जन्म 7 अक्टूबर 1952 को लेनिनग्राद में हुआ था. पुतिन के 3 भाई थे जिसमे दोनों भाईयों की कम उम्र में मौत हो गई थी. पिता स्पिरिदोनोविच पुतिन सोवियत नेवी के पनडुब्बी बेड़े में थे. मां मारिया इवानोव्ना शेलोमोवा एक फैक्ट्री में काम करती थी।
व्लादिमीर पुतिन को था खेलों का शौक
व्लादिमीर पुतिन को बचपन से तरह-तरह के खेल का बहुत शौक था. उनकी पहली पंसद judo और Sambo थी. उसके बाद धीरे धीरे बॉक्सिंग, घुड़सवारी, फुटबॉल, हॉकी, बैडमिंटन और डाइविंग में अपना हाथ आजमाया. जिसमें उनके पास युद्ध से पहले जूडो में ब्लैक बेल्ट थी. वह जूडो फेडरेशन के अध्यक्ष भी थे लेकिन अब वह बेलट वापस ले ली गई है. और अंतर्राष्ट्रीय जूडो फेडरेशन के अध्यक्ष पद से भी हटा दिया गया है।
बचपन से ही था जासूसी दिमाग
पुतिन को बचपन से अकेला और शांत माहौल में रहना फिल्में देखना जासूसी किस्सों को दिमाग में बैठाकर सोच-विचार करना काफी पंसद था, एक दिन उनको जासूस बनने का भूत सवार हुआ और 16 साल की उम्र में केजीबी के दफ्तर पहुंच गए . वहां जाकर कहा मुझे केजीबी में नौकरी चाहिए लेकिन उनको केजीबी के ऑफिस से वापस भेज दिया गया. कहा पढ़ाई पूरी करके आओ. जिसके बाद पुतिन ने केजीबी स्कूल से पढ़ाई पूरी कर कानून की डिग्री ली और फिर 7 साल बाद केजीबी के ट्रेनिंग ऑफिस पंहुच गए. केजीबी रूस की खूफिया एजेंसी का नाम है. उसके बाद उन्हें पुर्वी जर्मनी में नौकरी मिली. पुतिन ने यहां 1985 से लेकर 1990 तक केजीबी के एजेंट के रूप में काम किया।
हजारों लोगों से घिरे पुतिन ने कैसे बचाई जान
आपको बता दें जर्मनी के दो हिस्से थे. एक ईस्ट और दूसरा वेस्ट. ईस्ट जर्मनी रूस को पूरा समर्थन करती थी. लेकिन वेस्ट नही. वेस्ट पश्चिमी दुनिया के प्रभाव में था. पुतिन को ईस्ट जर्मनी के केजीबी में नौकरी मिली थी. जहां उस बीच एक नई क्रांति आई और जर्मनी के बीच उस बर्लिन की दीवार को गिरा देती है और पूरा जर्मन एक हो जाता है। रूस के खिलाफ ईस्ट जर्मनी के लोगों का आक्रोश बढ़ने लगा. जिसके कुछ समय बाद हजारों की संख्या में ईस्ट जर्मनी में स्थित रूस के केजीबी ऑफिस को घेर लिया गया. और उस दौरान पुतिन भी ऑफिस में मौजूद नौकरी कर रहे थे. लेकिन उन्होंने अपने शांत दिमाग से बच निकलने का काफी अच्छा पैंतरा अपनाया और उनके साथी बाहर दुश्मनों से निपट रहे थे. उऩ्होंने ऑफिस के सीक्रेट दस्तावेजों को अंदर जला डाला और दुश्मनों को आकर कहा- हमारे पास बंदूकधारी गार्ड है. अगर आपने कोई गलत कदम उठाया. तो सबको भून दिया जाएगा. बेहतर है, आप सब लोग यहां से लौट जाएं. ये तरीका कामयाब रहा. भीड़ वहां से लौटने पर मजबूर हो गई. और पुतिन भी अपनी जिंदगी बचाने में कामयाब रहे. जबकि असल में उनके पास कोई बंदूकधारी गार्ड नहीं थे।
व्लादिमीर पुतिन का राजनीतिक सफर
जर्मनी में केजीबी ऑफिस से निकलने के बाद पुतिन अपने शहर लेनिनाग्राद पंहुचे . जहां उन्हें लेनिनग्राद के युनिवर्सिटी के विदेश विभाग में नौकरी मिली. वहां कुछ महीने तक नौकरी की. 1991 में सोवियत रूस 15 देशों में टूट चुका था. जिसके बाद पुतिन काफी परेशान हो गए. और अमेरिका से मुकाबला करने वाला देश रूस कमजोर हो गया. वहीं पुतिन अपने देश में उस वक्त राजनीतिक नेतृत्व से काफी नाराज थे. जिसके बाद पुतिन ने राजनीति में आने का फैसला लिया. 1990 में पुतिन को लेनिनग्राद के मेयर का सलाहाकार बनाया गया. 28 जून 1991 को सेंट पीटर्सबर्ग में महापौर ऑफिस में विदेश मामलों के हेड बना दिए गए. 1996 तक पुतिन ने सेंट पीटर्सबर्ग में ही राजनीति की. 1996 में राजधानी मॉस्को में मेयर के पद पर अनातोली सब्चाक हार गए. तो राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन के लिए मॉस्को में एक मजबूत आदमी को लाना जरुरी हो गया. पुतिन को मॉस्को बुलाया गया. और वहां के कार्यालय का सौंप दिया गया. फिर 26 मार्च 1997 को राष्ट्रपति प्रशासन को पुतिन को उप-प्रमुख बनाया गया. जिसके कुछ समय बाद पुतिन को एक बड़ी जिम्मेदारी दे दी गई. 25 मई 1998 के दिन पुतिन को खूफिया एजेंसी एफ.एस.बी का प्रमुख बनाया गया. इसी बीच रूसी सरकार नाकामी और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठने लगी. तो राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने बड़ा दांव चला. एफ.एस.बी के प्रमुख की जिम्मेदारी संभाल रहे व्लादिमीर पुतिन को रूस सरकार का प्रधानमंत्री बनाया. ताकि पुतिन अपने तंत्र का इस्तेमाल राष्ट्रपति को बचाने के लिए करें।
पुतिन राष्ट्रपति कैसे बने ?
राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन जिस समय वहां की सत्ता संभाल रहे थे. तो देश के हालात सुधरने के बजाय बिगड़ते जा रहे थे. इस बीच उऩ्होंने राष्ट्रपति पद से इस्तिफा देने का फैसला लिया. और 31 दिसम्बर 1999 को समय से पहले अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया. रूस के संविधान के अनुसार, पुतिन को रूस के कार्यवाहक राष्ट्रपति की जिम्मेदारी सौंप दी गई. पुतिन के जिम्मेदारी संभालने के बाद उनका विरोध भी हुआ लेकिन इन सबके बीच 7 मई 2000 को पुतिन ने राष्ट्रपति पद की शपथ ली. जिन लोगों ने पुतिन का विरोध किया उनको गायब कर दिया गया. तब से अब तक उतार-चढ़ाव के बावजूद प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष रूप से 22 सालों से रूस की सत्ता पुतिन के हाथों में ही है।