देश के कई हिस्सों में दुर्गा पूजा का उत्सव बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। देवी के भक्तों माता भक्ति में लीन रहते है। ये महोत्सव पांचवें नवरात्र को शुरू होता है और विजय दशमी तक चलता है। इस दौरान भव्य पंडाल लगाए जाते है जिनमें देवी दुर्गा की विशाल मूर्तियां स्थापिक की जाती है। विजय दशमी यानी महोत्सव के आखिरी दिन देवी की मूर्ति को विसर्जित किया जाता है।
वेश्यालय की मिट्टी लेने की परंपरा
आपको बता दें कि मां दुर्गा की प्रतिमा को कहीं पांच तो कहीं दस तरह कि मिट्टी से बनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि देवों और प्रकृति से मिलकर मां दुर्गा का तेज प्रकट होता है। इसलिए इसमें कई तरह और कई जगहों की मिट्टी को शामिल किया जाता है। यहां तक कि मां दुर्गा की प्रतिमा बनाने के लिए वेश्यालय के आंगन की मिट्टी का प्रयोग करने की भी पुरानी परंपरा है।
पौराणिक कथा के अनुसार
बता दें कि पौराणिक कथा के अनुसार पहले के समय में एक वेश्या मां दुर्गा की बड़ी भक्त हुआ करती थी। लेकिन उसे समाज में हमेशा तिरस्कार ही मिलता था जिससे वह बहुत परेशान थी। उस वक्त मां दुर्गा ने उसकी सच्ची श्रद्धा को देखते हुए एक वरदान दिया कि जब तक उसकी प्रतिमा में वेश्यालय के आंगन की मिट्टी को शामिल नहीं की जाएगी। तब तक मां दुर्गा का उस मूर्ति में वास नहीं होगा। इसलिए वेश्यालय को देवी की प्रतिमा में शामिल करने की परंपरा है।
देशभर से कारीगर यहां मिट्टी लेने आते हैं
शास्त्र-पुराण की जानकारी रखने वाले ज्ञानी कहते हैं कि देवी की मूर्ति बनाने के लिए वेश्याओं के आंगन की मिट्टी के साथ-साथ पर्वत, हाथी के दांत, दीमक के ढेर, नदी के किनारे, बैल के सींघ, महल के द्वार और चौराहे आदि की मिट्टी को भी शामिल किया जाता है।
मिली जानकारी के अनुसार मां दुर्गा की सबसे अधिक मूर्तियां कोलकाता के कुमरटली इलाके बनती हैं। इन्हें बनाने के लिए शहर के सबसे बड़े वेश्यालय सोनागाछी की मिट्टी का प्रयोग किया जाता है। देशभर से कारीगर यहां मिट्टी लेने आते हैं।