Govardhan Puja : कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा तिथि को दिवाली के अगले दिन, गोवर्धन पूजा का महापर्व मनाया जाता है। उत्तर भारत के राज्य जैसे उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, और मध्य प्रदेश में इसे विशेष रूप से धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन को अन्नकूट के रूप में भी मनाया जाता है, जिसमें भगवान को 56 प्रकार के भोग अर्पित किए जाते हैं। गोवर्धन पूजा की परंपरा भगवान कृष्ण के समय से चली आ रही है और इसका आरंभ ब्रज क्षेत्र से हुआ था। इस अवसर पर गाय की भी पूजा होती है, जिसे हिंदू धर्म में गौमाता का दर्जा दिया गया है। इस साल दिवाली की तरह गोवर्धन पूजा की तिथि को लेकर भी लोग भ्रमित हैं कि इसे 1 नवंबर 2024 को मनाया जाएगा या 2 नवंबर को।
कब है Govardhan Puja
पंचांग के अनुसार, गोवर्धन पूजा के लिए कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा तिथि 1 नवंबर की शाम 6:16 बजे शुरू होकर 2 नवंबर की रात 8:21 बजे समाप्त होगी। उदयातिथि को ध्यान में रखते हुए, गोवर्धन पूजा और अन्नकूट का पर्व 2 नवंबर को मनाया जाएगा।
Govardhan Puja का शुभ मुहूर्त
इस दिन पूजा के लिए तीन शुभ मुहूर्त रहेंगे। पहला मुहूर्त सुबह 6:34 से 8:46 बजे तक रहेगा। दूसरा मुहूर्त दोपहर 3:23 से शाम 5:35 बजे तक रहेगा, और तीसरा शुभ मुहूर्त शाम 5:35 से 6:01 बजे तक होगा।
कैसे मनाएं Govardhan Puja
गोवर्धन पूजा के दिन सुबह जल्दी उठकर शरीर पर तेल लगाकर मालिश करें और स्नान कर साफ कपड़े पहनें। इसके बाद घर के मुख्य द्वार पर गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाएं, और उसके चारों ओर ग्वालबाल, पेड़ और पौधों की आकृतियां सजाएं। गोवर्धन पर्वत के बीच में भगवान कृष्ण की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। फिर विधिपूर्वक गोवर्धन पर्वत और भगवान कृष्ण की पूजा करें, उन्हें पंचामृत और 56 भोग अर्पित करें। इसके बाद अपनी मनोकामनाओं को भगवान के समक्ष रखते हुए उनके पूर्ण होने की प्रार्थना करें।
56 प्रकार के भोग लगाने की परंपरा
गोवर्धन पूजा के दिन भगवान को 56 प्रकार के भोग लगाने की परंपरा होती है, जिसे अन्नकूट कहते हैं। इस दिन कृष्ण मंदिरों में अन्नकूट का भव्य आयोजन किया जाता है पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने देवराज इंद्र का अभिमान तोड़ने के लिए एक अद्भुत लीला की थी। इंद्र द्वारा मूसलधार बारिश करवाकर गोकुलवासियों को संकट में डालने पर, भगवान कृष्ण ने उन्हें बचाने के लिए अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठा लिया, जिसके नीचे सभी गोकुलवासी शरण पा सके। तभी से ब्रज मंडल में कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन भगवान कृष्ण की विशेष पूजा और अर्चना की परंपरा चली आ रही है।
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