Holi 2025: होली की धूम हर तरफ छा जाती है।होली का पर्व नजदीक आते ही पूरे देश में खुशी और उमंग का माहौल बन जाता है। रंगों से सराबोर यह त्योहार भारतीय संस्कृति का एक अहम हिस्सा है। इस साल होली 14 मार्च को मनाई जाएगी और इसकी तैयारियां जोरों पर चल रही हैं।
होली का इतिहास और धार्मिक महत्व
होली का इतिहास काफी पुराना है और यह कई पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है। इसमें सबसे प्रसिद्ध कथा भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार और भक्त प्रह्लाद की कहानी से संबंधित है। यह त्योहार अच्छाई की बुराई पर जीत का प्रतीक माना जाता है।
होली की शुरुआत कहां से हुई?
बहुत कम लोग जानते हैं कि होली की शुरुआत उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के ककेड़ी गांव से हुई थी। यह स्थान भगवान नरसिंह के मंदिर, प्रह्लाद घाट और हिरण्यकश्यप के महल के अवशेषों का गवाह है। मान्यता है कि पहले हरदोई को ‘हरिद्रोही’ कहा जाता था, जो हिरण्यकश्यप की राजधानी थी।
होलिका दहन की पौराणिक कथा
हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को यह वरदान मिला था कि आग उसे जला नहीं सकती। उसने प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठने की योजना बनाई। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलिका जलकर राख हो गई और प्रह्लाद सुरक्षित बच गया। इस घटना की याद में हर साल होलिका दहन की परंपरा निभाई जाती है।
हरदोई के अनोखे तथ्य
हरदोई जिले में आज भी हिरण्यकश्यप के महल के खंडहर और प्रह्लाद घाट मौजूद हैं। यहाँ के बुजुर्गों की बोली में एक अनूठा प्रभाव देखा जाता है। कहा जाता है कि हिरण्यकश्यप ने ‘र’ अक्षर के उच्चारण पर प्रतिबंध लगाया था, जिसका असर आज भी यहाँ की स्थानीय भाषा में देखा जा सकता है।
ककेड़ी गांव का नृसिंह मंदिर
हरदोई जिले के सांडी ब्लॉक के ककेड़ी गांव में स्थित नृसिंह भगवान का मंदिर 5000 वर्षों से भी अधिक पुराना माना जाता है। यह मंदिर होली के ऐतिहासिक महत्व का प्रतीक है। यहाँ के लोग भगवान नरसिंह की पूजा के साथ होली का शुभारंभ करते हैं।