Karna birth and divine power यदुवंशी राजा शूरसेन की बेटी पृथा, जिन्हें बाद में कुंती के नाम से जाना गया, बचपन से ही विशेष थीं। राजा शूरसेन ने उन्हें अपने निःसंतान भाई कुंतीभोज को गोद दे दिया, जिन्होंने पृथा को नया नाम “कुंती” दिया। कुंती शुरू से ही ऋषियों और महात्माओं की सेवा में लगी रहती थीं। उनकी निष्ठा से प्रसन्न होकर महर्षि दुर्वासा ने उन्हें एक विशेष मंत्र दिया। इस मंत्र की शक्ति से वे किसी भी देवता को आह्नान कर सकती थीं।
कर्ण का जन्म और दिव्य कवच और कुंडल
कुंती ने इस मंत्र की शक्ति को परखने के लिए सूर्यदेव का आह्वान किया। सूर्यदेव ने प्रकट होकर उन्हें आशीर्वाद दिया, जिससे कर्ण का जन्म हुआ। कर्ण जब पैदा हुए, तब उनके शरीर पर दिव्य कवच था और कानों में कुंडल थे, जो सूर्यदेव द्वारा दिए गए थे। यही कवच और कुंडल कर्ण को अजेय बनाते थे।
कर्ण और असुर दम्बोद्भव का संबंध
महाभारत की कथाओं में कहा गया है कि कर्ण में केवल सूर्यदेव का तेज ही नहीं था, बल्कि असुर दम्बोद्भव का भी अंश था। दम्बोद्भव ने अपने पूर्व जन्म में सूर्यदेव की घोर तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने उन्हें हजार कवच प्रदान किए थे। इन कवचों की वजह से उसे हराना लगभग असंभव हो गया था।
दम्बोद्भव के बढ़ते आतंक को खत्म करने के लिए भगवान विष्णु ने नर और नारायण के रूप में अवतार लिया। उन्होंने भयंकर युद्ध कर असुर के 999 कवच नष्ट कर दिए। जब उसका आखिरी कवच बचा, तो दम्बोद्भव सूर्यदेव की शरण में चला गया। सूर्यदेव ने उसे अपनी शरण में ले लिया और उसका अंतिम कवच सुरक्षित बचा लिया
जब कुंती ने सूर्यदेव का आह्नान किया और कर्ण का जन्म हुआ, तब दम्बोद्भव का यही बचा हुआ कवच कर्ण के साथ चला आया। इस प्रकार, कर्ण में सूर्यदेव की दिव्यता और दम्बोद्भव की शक्ति दोनों समाहित थीं।
कर्ण एक अद्वितीय और शक्तिशाली योद्धा
कर्ण न सिर्फ अपने कवच-कुंडल के कारण अद्वितीय योद्धा थे, बल्कि उनके व्यक्तित्व में भी गजब की ताकत और सहनशीलता थी। उन्होंने जीवनभर अपनी पहचान और समाज में सम्मान पाने के लिए संघर्ष किया। हालांकि, उनके व्यक्तित्व में सूर्यदेव की ऊर्जा और असुर दम्बोद्भव की शक्ति दोनों का प्रभाव देखा जा सकता था। यही कारण है कि महाभारत में कर्ण एक अद्वितीय और शक्तिशाली योद्धा के रूप में जाने जाते हैं।
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