Mystery of Lord Jagannath’s Changing Idol:पुरी के जगन्नाथ मंदिर की रथ यात्रा पूरी दुनिया में मशहूर है। हर साल लाखों लोग भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के दर्शन के लिए यहां आते हैं। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इस मंदिर में भगवान की मूर्ति को हर 12 साल में बदला जाता है। इस अनोखी परंपरा को नवकलेवर कहा जाता है।यह सिर्फ एक मूर्ति बदलने का काम नहीं होता, बल्कि एक गहरा धार्मिक और रहस्यमय अनुष्ठान होता है। इसमें भगवान का नया रूप तैयार किया जाता है, लेकिन उनके अंदर की दिव्यता वही बनी रहती है।
क्या है नवकलेवर?
नवकलेवर का मतलब होता है। “नया शरीर”। जब आषाढ़ महीने में अधिक मास आता है (जो लगभग 19 साल में एक बार होता है), तभी ये विशेष परंपरा निभाई जाती है। अगली बार यह अनुष्ठान साल 2031 में होगा।
इस दौरान पुरानी लकड़ी की मूर्तियों को विशेष तरीके से हटाया जाता है और नई मूर्तियां स्थापित की जाती हैं। सबसे रहस्यमय बात यह है कि पुरानी मूर्ति से एक पवित्र चीज़, जिसे ‘लट्ठा’ कहा जाता है, उसे नई मूर्ति में स्थानांतरित किया जाता है। कहा जाता है कि अगर कोई उस ‘लट्ठा’ को देख ले, तो उसकी जान को खतरा हो सकता है। इसलिए यह प्रक्रिया रात के अंधेरे में, बिजली बंद करके, पूरी गोपनीयता के साथ की जाती है।
मूर्ति बदलने की धार्मिक और वैज्ञानिक वजह
भगवान जगन्नाथ की मूर्तियां लकड़ी की बनी होती हैं। समय के साथ लकड़ी में नमी, दीमक या मौसम का असर पड़ सकता है। इसीलिए, हर कुछ सालों में इन्हें बदला जाता है ताकि मूर्ति की पवित्रता बनी रहे।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, नई मूर्ति में भगवान का तेज़ और शक्ति वही रहती है, बस उनका शरीर बदलता है। यह परंपरा हमें सिखाती है कि भगवान का रूप बदल सकता है, लेकिन उनकी दिव्यता हमेशा एक सी रहती है।
पुरी रथ यात्रा और मूर्ति का महत्व
पुरी की रथ यात्रा आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को शुरू होती है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा तीन अलग-अलग रथों में मंदिर से बाहर निकलते हैं। इस यात्रा को देखने और इसमें भाग लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है, ऐसा माना जाता है। नवकलेवर के सालों में यह यात्रा और भी खास हो जाती है क्योंकि भक्तों को भगवान के नए रूप के दर्शन होते हैं।
क्यों है ये परंपरा इतनी खास?
नवकलेवर सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह रहस्य, भक्ति और संस्कृति का संगम है। भगवान की मूर्ति बदलने की पूरी प्रक्रिया बेहद गोपनीय और पवित्र मानी जाती है।पूरा पुरी शहर जब इस दौरान अंधेरे में डूब जाता है और मंदिर के अंदर चुपचाप मूर्ति बदली जाती है, तो भक्तों का रोम-रोम खड़ा हो जाता है। यह परंपरा दुनिया में कहीं और नहीं मिलती यही पुरी के जगन्नाथ मंदिर को और भी खास बनाती है।
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