Maa Kamakhya Temple : भारत का सबसे शक्तिशाली शक्तिपीठ यहां कैसे मनाते हैं गुप्त नवरात्र, क्या है अंबुबाची मेले की खासियत

मां कामाख्या मंदिर असम का प्रमुख शक्तिपीठ है, जहां माता सती के अंग का हिस्सा गिरा था। यहां मूर्ति नहीं, बल्कि योनि रूप की चट्टान की पूजा होती है। इसकी पूजा विधियां आज भी रहस्यमयी हैं।

Kamakhya Temple, Spiritual Destinations

The Glory of Maa Kamakhya Temple:भारत में 51 शक्तिपीठ हैं, और इन सभी में मां कामाख्या मंदिर को सबसे खास और शक्तिशाली माना जाता है। यह मंदिर असम की राजधानी गुवाहाटी में नीलांचल पहाड़ियों पर बसा है। यह वही स्थान है जहां माना जाता है कि माता सती का योनि भाग गिरा था। इसी वजह से इस मंदिर में माता की कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि यहां एक गुफा में चट्टान पर बनी योनि की आकृति को पूजा जाता है। श्रद्धालु इसी पवित्र चिह्न के दर्शन के लिए यहां आते हैं।

कालिका पुराण में भी हुआ है ज़िक्र

कामाख्या मंदिर की महिमा का ज़िक्र 10वीं-11वीं शताब्दी में लिखे गए कालिका पुराण में मिलता है। इस मंदिर को ‘महापीठ’ का दर्जा प्राप्त है। कहा जाता है कि यहीं से सृष्टि की शुरुआत हुई थी।

मंदिर में 460 पुजारी, लेकिन कोई बाहर नहीं जाता

इस मंदिर की एक अनोखी बात ये है कि यहां कुल 460 पुजारी हैं और इनमें से कोई भी जीवनभर किसी और मंदिर में पूजा नहीं करता। पुजारियों का मानना है कि ऐसा करना पाप होता है। यहां हर दिन 34 करोड़ देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, जो करीब 4 से 8 घंटे तक चलती है।

तीन प्रमुख और सात अन्य देवी-देवताओं की होती है पूजा

कामाख्या मंदिर में तीन प्रमुख देवियां निवास करती हैं। इसके अलावा, मंदिर के बाहर सात और देवी-देवताओं की भी पूजा होती है। यह मंदिर भगवान शिव के पांच प्रमुख रूपों,कामेश्वर, सिद्धेश्वर, केदारेश्वर, अमर्त्सोस्वरा और अघोरा से भी जुड़ा हुआ है।

गुप्त नवरात्र और अंबुबाची मेले की खासियत

यहां हर साल ‘गुप्त नवरात्र’ मनाए जाते हैं, जिनकी तारीखें आम लोगों को नहीं बताई जातीं। इनकी शुरुआत मंदिर के पुजारी तय करते हैं। इसके अलावा, आषाढ़ महीने में मां कामाख्या की माहवारी के समय चार दिन तक मंदिर के पट बंद रहते हैं। इस दौरान ‘अंबुबाची मेला’ लगता है, जो एक बड़ा आयोजन होता है।

चैत्र नवरात्र यहां पांच दिन पहले शुरू होते हैं

कामाख्या मंदिर में चैत्र नवरात्र हर साल निर्धारित तारीख से पांच दिन पहले शुरू हो जाते हैं। खास बात यह है कि यहां मां दुर्गा की कोई मूर्ति नहीं है, इसलिए नवरात्र के दौरान मंदिर के गर्भगृह के बाहर ही मां का आसन सजाया जाता है और वहीं कलश स्थापना की जाती है। पूजा सुबह 4 बजे से शुरू होती है।

मां का श्रृंगार ‘आठ परीया’ नाम के परिवार के लोग करते हैं और फिर मंदिर के मुख्य पुजारी का कोई सदस्य आरती करता है। इसके बाद बलि दी जाती है और पंचांग के अनुसार मंदिर के पट बंद किए जाते हैं।

कामाख्या मंदिर न सिर्फ धार्मिक रूप से, बल्कि अपनी परंपराओं और रहस्यमयी पूजा विधियों के कारण भी खास है। यहां की हर परंपरा श्रद्धालुओं को अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव देती है।

Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं पर आधारित है, news1india इन मान्यताओं की पुष्टि नहीं करता है। यहां पर दी गई किसी भी प्रकार की जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह अवश्य ले लें।

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