MahaKumbh 2025 : एप्पल की मालकिन, महाकुंभ में लगाएंगी अपनी पहली डुबकी ,उनकी भागीदारी क्यों है इतनी ख़ास

लॉरेन पॉवेल जॉब्स, एप्पल की मालकिन, महाकुंभ में अपनी पहली डुबकी लगाने और कल्पवास करने के लिए आ रही हैं। उनका यहां आना भारतीय परंपराओं के प्रति उनका गहरा जुड़ाव दिखता है। कल्पवास एक प्राचीन हिंदू धार्मिक प्रथा है,

Lauren Powell Jobs Kumbh Mela

Reiigious news : महाकुंभ एक ऐसा आयोजन है जो भारतीय संस्कृति, धर्म और परंपराओं का प्रतीक है। यह न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया में अपने धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। इस बार, महाकुंभ में एक दिलचस्प और खास उपस्थिति दिखाई दे रही है, जो न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक संदेश लेकर आई है। यह उपस्थिति है एप्पल की मालकिन लॉरेन पॉवेल जॉब्स की, जो महाकुंभ में अपनी पहली डुबकी लगाएंगी और कल्पवास भी करेंगी। यह कदम उनके भारतीय संस्कृति के प्रति गहरे जुड़ाव को दर्शाता है।

लॉरेन पॉवेल जॉब्स की महाकुंभ में भागीदारी

लॉरेन पॉवेल जॉब्स, जो एप्पल के सह।संस्थापक स्टीव जॉब्स की पत्नी हैं, महाकुंभ में अपनी भागीदारी को लेकर चर्चा में हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, वह पौष पूर्णिमा के दिन संगम में अपनी पहली डुबकी लगाएंगी। इसके साथ ही, वह कल्पवास भी करेंगी। महाकुंभ के शुभारंभ के दिन संगम पर उनकी उपस्थिति भारतीय संस्कृति के प्रति उनके गहरे जुड़ाव को प्रदर्शित करती है। उनका ठहरने का इंतजाम निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद के शिविर में किया गया है। वह 19 जनवरी से शुरू हो रही कथा की पहली यजमान भी होंगी।

कल्पवास एक प्राचीन हिंदू धार्मिक प्रथा

कल्पवास एक प्राचीन हिंदू धार्मिक परंपरा है, जिसमें व्यक्ति लंबे समय तक तपस्या, भक्ति और ध्यान में समय बिताता है। कल्प का अर्थ है लंबी अवधि, और वास का मतलब है निवास करना। यह विशेष रूप से हिंदू कैलेंडर के माघ (जनवरी, फरवरी) महीने में होता है, जो धार्मिकता और आत्मिक उन्नति के लिए समर्पित होता है। कल्पवासी अपने दिन की शुरुआत पवित्र नदी में स्नान करने से करते हैं, उसके बाद ध्यान, पूजा और धार्मिक उपदेशों में भाग लेते हैं। यह प्रक्रिया आत्मिक शुद्धता और संतुलन को बढ़ाती है।

महाभारत में भी है कल्पवास का महत्व

कल्पवास का महाभारत में भी जिक्र मिलता है। महाभारत के कई पात्रों ने यह अनुष्ठान अपनाया था। विशेष रूप से भीष्म पितामह ने कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद अपनी मृत्यु तक के समय को कल्पवास के रूप में बिताया। वह इस दौरान केवल तप, प्रार्थना और ध्यान में ही समय बिताते थे। युधिष्ठिर ने भी पांडवों के वनवास के दौरान तपस्या करने का निर्णय लिया था। महाभारत में कल्पवास का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व था, जो आत्मिक उन्नति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।

कल्पवास की प्राचीन परंपरा

Kalpavas की परंपरा भारत के विभिन्न हिस्सों में निभाई जाती है, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड और बिहार में। यहां के लोग कड़ाके की ठंड में रेतीले तटों पर पूरे महीने का समय बिताते हैं। इस दौरान, वे विभिन्न संतों और ऋषियों के शिविरों में जाकर धार्मिक प्रवचन सुनते हैं और भजन कीर्तन में भाग लेते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए एक धार्मिक कर्तव्य है। कल्पवास जीवन के अनुशासन और भक्ति का प्रतीक है, जिसमें व्यक्ति अपने आत्मिक और मानसिक विकास के लिए समय समर्पित करता है।

महाकुंभ और कल्पवास की परंपरा न केवल भारतीय संस्कृति की गहरी जड़ों को दर्शाती है, बल्कि यह हमें आत्मिक उन्नति और जीवन के वास्तविक उद्देश्य को समझने का अवसर भी प्रदान करती है। लॉरेन पॉवेल जॉब्स का महाकुंभ में भाग लेना भारतीय संस्कृति और उसकी प्राचीन परंपराओं के प्रति उनके सम्मान और जुड़ाव को दिखाता है। यह घटना न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक प्रेरणा स्रोत बन सकती है।

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