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मकर संक्रांति का त्योहार आज, 600 साल बाद दुर्लभ संयोग में उत्तरायण पर्व, दुबकी लगाने पहुंचे श्रद्धालु

Makar Sankranti: मकर संक्रांति का त्योहार आज, 600 साल बाद दुर्लभ संयोग में उत्तरायण पर्व, दुबकी लगाने पहुंचे श्रद्धालु

आज देशभर में मकर संक्रांति का पर्व बड़े ही हर्ष उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। बता दें कि 600 साल बाद आज के दिन ये दुर्लभ संयोग बना है। वहीं आज के दिन स्नान और दान करना शुभ माना जाता है। इस मौके पर उत्तर और मध्य भारत में तिल-गुड़ की मिठाइयाां बांटते हैं। गुजरात में पंतगबाजी और महाराष्ट्र में खेलकूद होता है। सिंधी समाज के लोग इस त्योहार को लाल लोही के तौर पर ये मानाते हैं। वही असम में बिहू और दक्षिण भारत में इसे पोंगल के रुप में मनाते हैं। तमिल पंचाग का नया वर्ष पोंगल से शुरु होता है। इसी दिन सबरीमाला मंदिर में मकरविलक्कु पर्व मनाते हैं। इस दिन भगवान अय्यप्पा की महा पूजता होती है।

शारीरिक कष्ट हरने आस्था की दुबकी लगाने पहुंचे श्रद्धालु

बता दें कि मकर संक्रांति को लेकर कल और आज दोंने दिन ही काफी संख्या में श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई। हालांकि पापहरणी सरोवर को देखते हुए तालाब में बैरिकेडिंग के साथ-साथ 4 मोटर बोट और 18 सदस्यीय एस डी आर एफ की टीम लगाई गई है। ताकि श्रद्धालुओं को किसी भी तरह कि कोई भी परेशानी का सामना ना करना पड़े

ऐसा कहा जाता है कि गौतम श्रषि के श्राप से देवराज इंद्र इसी पापहरणी सरोवर में स्नान कर पश्चात श्रार मुक्त हुए थे। चोल वंश के राजा को भी इसी सरोवर में स्नान करने से कुष्ठ जैसे रोग से निवारण मिला था। लोग पापहरणी सरोवर को कष्टहरणी के नाम से भी जानते हैं। राजा चोल के व्यक्ति मुक्त होने पर उनकी पत्नी रानी कोणती ने पापहरणी सरोवर की खुदाई कर बनवाई हैं। बता दें कि मकर संक्रांति के दिन सूर्य के दिन सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर बढ़ने लगते हैं। मकर संक्रांति को लेकर पापहरणी सरोवर में श्रद्धालुओं ने अपना शारीरिक कष्ट हरने आस्था की दुबकी लगाई।

स्नान करने के बाद सूर्य देव की करें पूजा

आपको बता दें कि नदी के तट पर स्नान के बाद सूर्य देव की पूजा करते है। ऐसा करने से इंसान की हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है। साथ ही मकर संक्रांति के दिन सूर्य देवता दक्षिणायन से उत्तरायण होते है और इसी से देवताओं के दिन शुरू हो जाते हैं। मकर संक्रांति के साथ ही खरमस्त समाप्त हो जाता है और शादी विवाह जैसे शुभ व मांगलिक कार्य भी शुरू हो जाते है।

मकर संक्रांति के दिन क्यों बनती है खिचड़ी

मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी बनाने और इसके दान को लेकर बाबा गोरखनाथ की एक प्रथा प्रचलित है। कहा जाता है कि जब खिलजी ने आक्रमण किया था, तब चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था। नाथ योगियों को युद्ध के दौरान भोजन बनाने का समय नहीं मिलता था तो ऐसे में भोजन न मिलने से वो कमज़ोर होते जा रहे थे। वहीं उस समय बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जियों को एक साथ मिलाकर पकाने की सलाह दी। ये आसानी से जल्दी पक जाता था और इससे शरीर को पोषक तत्व भी मिल जाते थे और योगियों का पेट भी भर जाता था। बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम खिचड़ी रखा।

खिलजी से मुक्त होने के बाद मकर संक्रांति के दिन योगियों ने उत्सव मनाया और इस दिन इस खिचड़ी को लोगों के बीच बांटा। उस दिन से मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी बनाकर खाने और इसे बांटने की प्रथा शुरू हो गई। मकर संक्रांति के मौके पर गोरखपुर के बाबा गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी मेला भी लगता है। इस दिन बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है और लोगों में इसे प्रसाद रूप में ग्रहण करते हैं।

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