Religious News: अगर आपने श्री कृष्ण की मूर्तियां या तस्वीरें ध्यान से देखी हों, तो एक खास चीज जरूर नोटिस की होगी वह जब भी खड़े होते हैं, तो उनके पैर हमेशा क्रॉस यानी टेढ़ी मुद्रा में रहते हैं। खासतौर पर जब वह बांसुरी बजा रहे होते हैं या गायों के साथ होते हैं।लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि श्री कृष्ण इस खास मुद्रा में ही क्यों खड़े होते थे? इसके पीछे सिर्फ एक सामान्य आदत नहीं, बल्कि बहुत गहरी आध्यात्मिक वजह है।
श्री कृष्ण की विशेष मुद्रा का रहस्य
भगवान श्री कृष्ण की यह मुद्रा दो खास मौकों पर देखी जाती हैजब वह गाय चराते हुए बांसुरी बजाते थे।जब वह गोपियों के साथ रास रचाते थे।इन दोनों ही स्थितियों में श्री कृष्ण ब्रज में होते थे। लेकिन जब उन्होंने द्वारका बसाई और राजा बने, तब वह सिंहासन पर सीधे बैठे दिखाई दिए। युद्ध के दौरान भी वह हमेशा सीधे खड़े रहते थे।
आकर्षण मुद्रा का रहस्य
इस विशेष मुद्रा को “आकर्षण मुद्रा” भी कहा जाता है। जब श्री कृष्ण बांसुरी बजाते थे, तो इस मुद्रा में खड़े होकर वह सभी जीवों को अपनी ओर आकर्षित करते थे। गाय, पशु-पक्षी, ग्वालबाल और यहां तक कि प्रकृति भी उनकी बांसुरी की धुन पर खिंची चली आती थी।जब वह गोपियों के साथ रास रचाते थे, तो भी इसी मुद्रा में रहते थे। इसका मतलब था कि वह प्रेम और भक्ति से अपने भक्तों को जोड़ रहे थे।
गोपियां कौन थीं?
ऐसा माना जाता है कि श्री कृष्ण की गोपियां पिछले जन्म में साधु-संत थीं, जिन्होंने जन्म-जन्मांतर तक भक्ति की थी। वह श्री कृष्ण को अपने आराध्य के रूप में पाना चाहती थीं। जब वह गोपी बनकर जन्मी, तो रासलीला के दौरान उन्हें श्री कृष्ण के सानिध्य का सौभाग्य मिला।इसलिए, जब श्री कृष्ण विशेष मुद्रा में खड़े होते थे, तो वह सिर्फ शारीरिक मुद्रा नहीं थी, बल्कि यह उनकी आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक थी।
युद्ध में क्यों नहीं थी यह मुद्रा?
जब श्री कृष्ण युद्ध के मैदान में होते थे, तो वह सीधे और दृढ़ खड़े होते थे। इसका कारण यह था कि वहां वह एक मार्गदर्शक और योद्धा के रूप में थे, न कि प्रेम और भक्ति का संदेश देने वाले।
श्री कृष्ण की यह मुद्रा हमें क्या सिखाती है?
श्री कृष्ण की यह विशेष मुद्रा हमें यह सिखाती है कि जीवन में प्रेम और भक्ति की बहुत बड़ी शक्ति होती है। यह मुद्रा दिखाती है कि जब हम प्रेम और समर्पण से किसी को अपनाते हैं, तो वह भी हमारी ओर आकर्षित होते हैं।