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भगवान केदारनाथ धाम के खुले कपाट! पहले दिन 23,512 श्रद्धालुओं ने किये दर्शन

भगवान केदारनाथ धाम के खुले कपाट! पहले दिन 23,512 श्रद्धालुओं ने किये दर्शन 

रूद्रप्रयाग: केदारनाथ यात्रा शुरू होने के पहले ही दिन ही धाम में आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा। सुबह कपाटोद्घाटन के मौके पर धाम में दस हजार से अधिक श्रद्धालु मौजूद थे। वहीं, दिनभर यात्रियों के गौरीकुंड से केदारनाथ पहुंचने का सिलसिला जारी रहा। यही वजह है कि शाम तक दर्शन करने वालों की संख्या 23,512 पहुंच गई।

बीते दो वर्षों में कोरोना संक्रमण के चलते केदारनाथ यात्रा व्यवस्थित रूप से संचालित नहीं हो पाई। कोरोना संक्रमण बढ़ जाने के कारण धाम के कपाट तय तिथि पर खोले जाने के बावजूद यात्रा प्रतिबंधित कर दी गई। संक्रमण कम होने पर दर्शनों की अनुमति तो दी गई, लेकिन शर्तों के साथ।

नतीजा, सीमित संख्या में ही श्रद्धालु केदारनाथ पहुंच पाए। इस बार कोरोना के साये से निकलने के बाद यात्रा व्यवस्थित ढंग से संचालित हो रही है। यही वजह है कि पहले दिन ही दर्शनार्थियों की संख्या 20 हजार का आंकड़ा पार कर गई। स्थिति यह हो गई कि धाम में पैर रखने तक को जगह नजर नहीं आ रही थी।

शुक्रवार को पहले ही दिन ही केदारनाथ धाम में आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा। शाम तक दर्शन करने वालों की संख्या 23512 पहुंच गई।

केदारनाथ धाम का इतिहास

इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना का इतिहास संक्षेप में यह है कि हिमालय के केदार शृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया। यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित हैं।

पंचकेदार की कथा ऐसी मानी जाती है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन लोगों से रुष्ट थे। भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले। वे लोग उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे। भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतध्र्यान हो कर केदार में जा बसे। दूसरी ओर, पांडव भी लगन के पक्के थे, वे उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए। भगवान शंकर ने तब तक बैल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले। पांडवों को संदेह हो गया था। अत: भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर पैर फैला दिया। अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम बलपूर्वक इस बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में अंतर्ध्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ। अब वहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मद्महेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है। यहां शिवजी के भव्य मंदिर बने हुए हैं।

आपदा के बाद श्रद्धालुओं की संख्या में भारी उछाल

यात्रा पर तुलनात्मक दृष्टि डालें तो वर्ष 1988 से लेकर 1999 तक एक से डेढ़ लाख यात्री ही प्रतिवर्ष बाबा के दर्शनों को पहुंचते थे। जबकि वर्ष 2000 से लेकर 2005 तक यह संख्या प्रतिवर्ष ढाई से तीन लाख हो गई। वर्ष 2006 से यात्रियों की संख्या में वृद्धि होने लगी।

वर्ष 2012 में तो अत्याधिक बर्फबारी के बावजूद 5.73 लाख यात्री दर्शनों को पहुंचे। वर्ष 2013 में आई भीषण आपदा से यात्रा पूरी तरह ठप हो गई। हालांकि, इस वर्ष आपदा से पूर्व 3,10615 यात्री दर्शन कर चुके थे। आपदा के बाद 1586 यात्री दर्शनों को पहुंचे।

वर्ष 2014 में 40832 यात्रियों ने दर्शन किए। जबकि, वर्ष 2015 में 1,54,430, वर्ष 2016 में 3,95,033 व वर्ष 2017 में 4,71,235 यात्री केदारनाथ पहुंचे। वर्ष 2018 यात्रा के लिए खास रहा। इस वर्ष 7,32,241 यात्रियों ने बाबा के दर्शन किए। यह स्वयं में एक उपलब्धि थी, लेकिन वर्ष 2019 की यात्रा ने तो पिछले सारे रिकार्ड तोड़ दिए। इस वर्ष दस लाख 39 यात्री केदारनाथ धाम पहुंचे। इसके बाद कोरोना संक्रमण के चलते बीते दो यात्रा महज औपचारिक रही।

(By: ABHINAV SHUKLA)

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