Sharad Purnima 2025: भारतीय संस्कृति में प्रत्येक पर्व और त्यौहार केवल धार्मिक या सामाजिक आयोजन नहीं हैं, बल्कि इनके पीछे गहन वैज्ञानिक और आध्यात्मिक मान्यताएँ छिपी हुई हैं। शरद पूर्णिमा इन्हीं पर्वों में से एक है, जिसे रास पूर्णिमा, कोजागरी पूर्णिमा, कुमार पूर्णिमा और नवान्न पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण 16 कलाओं में युक्त होता है और इसकी अमृत जैसी किरणें संजीवनी का कार्य करती हैं। शास्त्रों के अनुसार यह रात्रि मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी मानी जाती है। यह पर्व केवल भक्ति का प्रतीक नहीं है, बल्कि जीवन में स्वास्थ्य, सुख और समृद्धि के मूल्यों को स्थापित करने वाला पर्व है।
भारतीय संस्कृति में जितने भी तीज-त्यौहार हैं, उनके पीछे सामाजिक और स्वास्थ्य संबंधी वैज्ञानिक दृष्टिकोण छिपे हुए हैं। हमारे ऋषि-मुनियों ने समाज में स्वस्थ और समृद्ध जीवन के मूल्यों को सर्वोपरि माना। Sharad Purnima भी उन्हीं परंपराओं का एक हिस्सा है, जहाँ स्वास्थ्य, मानसिक संतुलन और आध्यात्मिक समृद्धि का ध्यान रखा गया है। ऊपर से देखने पर यह केवल चंद्रमा की पूर्णिमा प्रतीत होती है, लेकिन गहराई में जाकर इसके वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व को समझा जा सकता है।
इस दिन का विशेष महत्व चंद्रमा की पूर्ण 16 कलाओं से जुड़ा है। केवल Sharad Purnima की रात्रि में ही चंद्रमा पूरी तरह विकसित होता है और उसकी किरणें जीवन में अमृततुल्य लाभ पहुँचाती हैं। भारतीय परंपरा में इसे “संजीवनी रात्रि” भी कहा गया है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार इस रात में चंद्रमा की किरणें शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती हैं, रक्त संचार को सक्रिय करती हैं और मानसिक संतुलन बनाए रखने में मदद करती हैं। यही कारण है कि इस दिन विशेष आहार, स्नान और जागरण की परंपरा प्रचलित है।
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भारत की गौरव और गरिमा का पहला शब्द ‘ग’ गाय, गंगा और गीता से जुड़ा है। गाय हमारी कृषि और अर्थव्यवस्था की आधारशिला है, गंगा तन और मन को शुद्ध करती है और गीता बौद्धिक और आध्यात्मिक उर्वरा शक्ति का प्रतीक है। Sharad Purnima के दिन इन तीनों का समन्वय हमारे जीवन में स्वास्थ्य, समृद्धि और मानसिक संतुलन स्थापित करता है। हमारे नीति-नियंताओं ने सदियों पहले ही धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों को स्वास्थ्य से जोड़कर समाज के लिए स्थायी लाभ सुनिश्चित किया।
ज्योतिष और विज्ञान दोनों ही चंद्रमा और मन के गहरे संबंध को मान्यता देते हैं। चंद्रमा हमारे मानसिक संतुलन, भावनात्मक स्थिति और शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालता है। पश्चिमी शोधों में भी यह देखा गया है कि मानसिक रोगियों के व्यवहार में चंद्रमा की स्थिति का स्पष्ट प्रभाव पड़ता है। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के शोधार्थियों ने यह पाया कि मानसिक रोगियों की गतिविधियों में अमावस्या और पूर्णिमा के समय अभूतपूर्व बदलाव आते हैं। यह वैज्ञानिक दृष्टि से पुष्टि करता है कि चंद्रमा के प्रभाव को समझकर मानसिक संतुलन और रोग उपचार में सहायक कदम उठाए जा सकते हैं।
चंद्रमा का प्रभाव केवल मानसिक स्वास्थ्य तक सीमित नहीं है। विशाल समुद्र में ज्वार-भाटा, समुद्री जीव-जंतुओं का जीवन चक्र, और महिलाओं का मासिक चक्र भी चंद्रमा की गतियों से नियंत्रित होता है। हमारे शरीर का 85 प्रतिशत भाग जल से बना है और समुद्र के जल के समान ही इसमें नमक की मात्रा होती है। यही कारण है कि चंद्रमा का प्रभाव हमारे शरीर पर समुद्र के ज्वार-भाटा की तरह दिखाई देता है।
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शरद पूर्णिमा पर वृन्दावन में श्री कृष्ण महारास रचते हैं। इसे रास पूर्णिमा कहा जाता है। श्री कृष्ण की 16 कलाओं का पूर्ण होना चंद्रमा की 16 पूर्ण अवस्थाओं से जुड़ा है। इस रात्रि की चाँदनी स्वास्थ्य, समृद्धि और मानसिक शांति प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त, गंगा में स्नान करने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और मानसिक शक्ति विकसित होती है। महाभारत में भी व्यथित युधिष्ठर ने श्री कृष्ण के परामर्श पर शरद पूर्णिमा को गंगा स्नान किया था, जो इसके महत्व को दर्शाता है।
इस दिन को कोजागरी पूर्णिमा, कुमार पूर्णिमा और नवान्न पूर्णिमा के नामों से भी जाना जाता है। भारतीय पंचांग के अनुसार यह आश्विन मास की पूर्णिमा है। अनेक प्रांतों में कोजागरी व्रत रखने की परंपरा है, जिसमें विशेष जागरण और पूजा का विधान होता है। व्रत का पालन करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और मानसिक संतुलन आता है। आयुर्वेद में भी इस दिन का महत्व बताया गया है।
शरद पूर्णिमा पर गाय के दूध से तैयार खीर, जिसमें केसर और किसमिस मिलाई जाती है, को चंद्रमा की किरणों में रखने से इसमें विशेष औषधीय गुण जुड़ जाते हैं। प्रातः काल इसका सेवन करने से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार आता है। यदि यह खीर मिट्टी की हंडी में रखी जाए और छोटे बच्चों को दी जाए, तो उनके मानसिक विकास में अत्यधिक लाभ होता है। इस प्रकार शरद पूर्णिमा का पर्व केवल आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व ही नहीं रखता, बल्कि यह स्वास्थ्य, मानसिक विकास और सामाजिक समृद्धि का भी स्रोत है।
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भारत में आज भी ऐसे गाँव और क्षेत्र हैं जहाँ Sharad Purnimaका महत्व उसी तरह निभाया जाता है, जैसा सदियों पहले हमारे ऋषि-मुनियों ने स्थापित किया था। यहां के युवक-युवतियाँ मानसिक रोगों और अवसाद से दूर रहते हैं। शरद पूर्णिमा का पर्व उन्हें प्रकृति के नियमों और सामाजिक स्वास्थ्य के आदर्शों से जोड़ता है। यह पर्व यह सिखाता है कि आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण एक साथ समाज के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं।
अंततः, शरद पूर्णिमा केवल एक पर्व नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की गहन वैज्ञानिक और आध्यात्मिक समझ का प्रतीक है। इसके माध्यम से हमारे ऋषि-मुनियों ने हमें जीवन, स्वास्थ्य और मानसिक संतुलन के ऐसे मूल्य सिखाए हैं जो आज भी अत्यंत प्रासंगिक हैं। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि प्रकृति, विज्ञान और धर्म का संयोजन ही मानव जीवन की सच्ची उन्नति का मार्ग है। इस पूर्णिमा के दौरान जागरण, गंगा स्नान, लक्ष्मी सूक्त का पाठ और औषधीय खीर का सेवन केवल धार्मिक कर्म नहीं हैं, बल्कि ये जीवन में स्वास्थ्य, मानसिक संतुलन और समृद्धि सुनिश्चित करने के वैज्ञानिक उपाय हैं।
Sharad Purnima का यह पर्व हमें सिखाता है कि जीवन में स्वास्थ्य और आध्यात्मिक समृद्धि केवल पूजा और भक्ति से ही नहीं आती, बल्कि इसे समझदारी और प्रकृति के नियमों के अनुसार अपनाने की आवश्यकता है। यह पर्व हमारी सांस्कृतिक विरासत का अमूल्य हिस्सा है, जो सदियों से भारतीय समाज को न केवल आध्यात्मिक रूप से बल्कि शारीरिक और मानसिक दृष्टि से भी सुदृढ़ करता आया है।