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आर्थिक तंगी से जूझ रहा Sri Lanka, भारत ने 40 हजार टन डीजल भेजकर बढ़ाया मदद का हाथ, 20 हजार टन और भेजने की तैयारी

abhishek tyagi by abhishek tyagi
April 3, 2022
in देश, बड़ी खबर, विदेश
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नई दिल्ली। भारत के पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में सियासी संकट चल रहा है तो दूसरे करीब देश श्रीलंका में आर्थिक संकट गहराया हुआ है. सड़कों पर फूटती लोगों की नाराज़गी के मद्देनजर श्रीलंका सरकार ने आपातकाल लगा दिया. इस बीच भारत ने जहां 40 हजार मीट्रिक टन डीज़ल कोलंबो पहुंचाया है. वहीं अतिरिक्त 20 हजार टन तेल जल्द उपलब्ध कराने की कवायद शुरू कर दी गई है।

उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक इंडियन ऑइल कोर्पोरेशन को श्रीलंका के लिए भंडार से अतिरिक्त तेल मुहैया कराने के लिए कहा गया है. आईओसी के सहयोग से बनी आईओसीपीसीएल ने एक दिन पहले की सीलोन इलैक्ट्रिसिटी बोर्ड को 6 हजार मीट्रिक टन तेल के साथ टैंकर भेजे थे. श्रीलंका में पैट्रोल-डीजल की भीषण किल्लत है. साथ ही तेल की यही किल्लत श्रीलंका के बिजली संकट के लिए भी जिम्मेदार है क्योंकि इस द्वीप देश में बिजली उत्पादन का 10 प्रतिशत उत्पादन तेल से चलने वाले पावर प्लांट से होता है. वहीं कोयले की आपूर्ति में आई किल्लतों ने भी बिजली उत्पादन का गणित गड़बड़ाया।

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जानकारों का मानना है कि अगर फौरन संभाला नहीं गया तो श्रीलंका के हालात आने वाले दिन में और अधिक खराब होने की आशंका है. एक डॉलर की कीमत अब तक के न्यूनतम स्तर यानि 297.99 रुपये पर पहुंच गई है. जाहिर है, ऐसे में भारत की चिंताएं स्वाभाविक हैं क्योंकि तमिल बहुल इलाकों से लोगों के पलायन कर तमिलनाडु के इलाकों में आने का सिलसिला शुरु हो चुका है।

मौजूदा संकट की मार से परेशान सड़कों पर उतर रहे हैं. ऐसे में तनाव इतना ज्यादा बढ़ गया है कि शनिवार शाम से 36 घंटों के लिए पूरे देश में कर्फ्यू लगा दिया गया है. लोगों की भीड़ के कोलंबों में राष्ट्रपति भवन के बाहर प्रदर्शन के बाद आपातकाल लगाने की शुक्रवार रात घोषणा कर दी गई थी. इस बीच अफवाहें भी जोरों पर चल रही हैं जिसमें भारत की तरफ से सेना भेजे जाने की अफवाह भी उड़ाई गई. हालांकि कोलंबो स्थित भारतीय उच्चायोग ने कुछ समाचार माध्यमों में इस बाबत आई खबरों को सिरे से खारिज किया. भारतीय उच्चायोग ने स्पष्ट किया कि इस तरह की बातें पूरी तरह बेबुनियाद हैं।

श्रीलंका के हालात देखकर यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर अचानक ऐसा क्या हुआ जो यह देश इस स्थिति में पहुंच गया? इसके कारणों की जुड़ में बीते कुछ सालों के दौरान किए गए फैसले, टैक्स व्यवस्था में किए गए बदलाव और कोरोना महामारी की मार के मिलेजुले असर की मार है. श्रीलंका सरकार ने नवंबर 2019 के आखिर में वैल्यू एडड टैक्स यानी वैट की दरों को 15 प्रतिशत से घटाकर 8 फीसद करने का फैसला किया. जाहिर है इसका असर राजकोषीय आमदनी पर हुआ. इस फैसले को लेते वक्त अपनी करीब 13% आमदनी के लिए पर्यटन पर निर्भर श्रीलंका ने सोचा भी नहीं था कि चंद महीनों में पूरी दुनिया कोरोना की चपेट में होगी. ऐसे में सबसे ज्यादा प्रभावित पर्यटन क्षेत्र ही हुआ और इसने श्रीलंका के खजाने को बड़ा झटका दिया।

जानकारों का मानना है कि श्रीलंका का बेहद सख्त कोविड पाबंदियां लगाना भी उसके लिए मुसीबत बना क्योंकि इनके चलते भारत से जाने वाले पर्यटकों की संख्या में बड़ी कमी आई. आलम यह था कि साल 2018 में श्रीलंका की आमदनी जहां रिकार्ड 47 करोड़ डॉलर थी वहीं दिसंबर 2020 में घटकर महज 5 लाख डॉलर तक गिर गई. श्रीलंका के खजाने को बड़ा झटका कोविड19 काल में विदेशों में काम करने वाले अपने नागरिकों से भेजे जाने वाली रेमिटेंस मनी में कटौती से भी मिला. कोरोना काल में खाड़ी देशों के इलाकों में काम करने वाले श्रीलंकाई नागरिकों की नौकरियां गईं और उन्हें मुल्क लौटना पड़ा. ऐसे में जहां अर्थव्यस्था पर आय की कमी का बोझ आया वहीं बड़े पैमाने पर लौटे नागरिकों की चुनौती से भी जूझना पड़ा।

आर्थिक बोझ कम करने के लिए श्रीलंका की राजपक्षे सरकार ने एक बोल्ड फैसला लिया और रासायनिक उर्वरकों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया. दलील दी गई कि इससे कोरोना काल में विदेशी मुद्रा बचत होगी और श्रीलंका दुनिया का पहला शत प्रतिशत जैविक खेती करने वाला मुल्क होगा. लेकिन यह दांव किफायती और कारगर होने के बजाए आफत का सबब बन गया क्योंकि श्रीलंका के कृषि उत्पादन में भारी गिरावट आई और नौबत खाद्यान्न आयात की मजबूरी तक पहुंच गया. श्रीलंका की खाद्यान्न जरूरतों का बड़ा हिस्सा चावल पूरा करता है जिसके उत्पादन में 94 प्रतिशत रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल होता रहा. वहीं निर्यात की जाने वाली नकदी फसलों में चाय और रबर हैं जिनकी खेती भी 90 फीसद तक रसायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर निर्भर है. ऐसे में ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर की अनुपलब्धता और रासायनिक उर्वरकों पर प्रतिबंध ने संकट गहरा दिया. नतीजा यह हुआ कि कृषि व्यवस्था चरमरा गई. बाद में सरकार ने नवंबर 2021 में रसायनिक उर्वरक प्रतिबंध के अपने फैसले को पलट दिया।

भारत ने संकट के इस मोर्चे पर भी मदद की है. भारतीय फर्टिलाइजर कंपनी इफ्को ने श्रीलंका को बीते साल करीब 30 लाख लीटर नैनो यूरिया मुहैया कराया था. साथ ही अमोनियम सल्फेट का भी भारत से श्रीलंका को निर्यात किया गया. जबकि चीन की जिस चिंगदाओ सीविन बायोटैक कंपनी से 99 हजार मीट्रिक टन ऑर्गेनिक फर्टिलाजर खरीदा गया था वो बेकार निकला. उसमें जमीन और इंसान दोनों के लिए नुकसानदेह कीटाणु पाए गए. घटिया फर्टिलाइजर खरीद पर श्रीलंका ने चीन की कंपनी का भुगतान रोका तो पीपल्स बैंक ऑफ श्रीलंका को ब्लैक-लिस्ट कर दिया गया।

Tags: 40 हजार मीट्रिक टन डीज़ल कोलंबोLive update news of shri LankaShri lanka bannedShri Lanka latets news todayShri Lanka स्ट्राइकआर्थिक संकट
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abhishek tyagi

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