गांव वालों की पुकार हमको बचा लो सरकार,झारखंड में रहस्यमयी बीमारी का कहर,धीरे-धीरे खत्म होती ज़िंदगी

दूधपनिया गांव की रहस्यमयी बीमारी ने कई लोगों की जान ले ली है। दूषित पानी को इसका कारण माना जा रहा है। इलाज और साफ पानी की कमी ने पूरे गांव को लाचार बना दिया है।

Slow Death in Dudhapania: झारखंड के गिरिडीह जिले के दूधपनिया गांव में मानो मौत धीरे-धीरे रेंगती हुई पहुंच रही है। यहां के लोग ऐसी रहस्यमयी बीमारी से जूझ रहे हैं, जो शरीर को अंदर से कमजोर करती जा रही है। ऐसा लगता है जैसे कोई अदृश्य ज़हर उनके शरीर में फैल रहा हो और धीरे-धीरे उन्हें खत्म कर रहा हो।

56 वर्षीय विनोद बेसरा गांव के सबसे बुजुर्ग व्यक्तियों में से एक हैं। वे साल 2019 से बिस्तर पर पड़े हैं। विनोद बताते हैं, “पहले पैरों में दर्द हुआ, फिर कमर जवाब दे गई… अब पूरा शरीर धीरे-धीरे काम करना बंद कर रहा है।” उनकी पत्नी पूर्णी देवी (43) और बेटी ललिता (27) भी इसी बीमारी की चपेट में हैं। ललिता का चेहरा अब उम्र से कई साल बड़ा दिखने लगा है।

वर्तमान में गांव के छह लोग पूरी तरह लाचार हो चुके हैं। जिनमें कमलेश्वरी मुर्मू, छोटा दुर्गा, बड़ा दुर्गा, रेखा देवी और सूर्य नारायण मुर्मू जैसे नाम शामिल हैं। करीब 25 और ग्रामीण ऐसे हैं जो इस बीमारी से जूझ रहे हैं और अब लाठी के सहारे ही चलते हैं।

मौत की औसत उम्र सिर्फ 40 साल!

गांववालों के मुताबिक, यह बीमारी 30 साल की उम्र के बाद पैरों के दर्द से शुरू होती है और धीरे-धीरे पूरी देह को जकड़ लेती है। पिछले एक साल में ही फुलमनी देवी (40), रमेश मुर्मू (30), मालती देवी (48), सलमा देवी (45), रंगलाल मरांडी (55) और नंदू मुर्मू (50) जैसे कई लोग इस रहस्यमयी बीमारी से जान गंवा चुके हैं।

लोगों का कहना है कि इसकी जड़ दूषित पानी है। पहले वे पहाड़ी झरनों और कुओं का पानी पीते थे, तब कोई दिक्कत नहीं थी। लेकिन अब सप्लाई किया गया पानी ही उनकी तबाही की वजह बन गया है।

स्वास्थ्य विभाग की जांच शुरू

मामला सामने आने के बाद हवेली खड़गपुर के मेडिकल ऑफिसर डॉ. सुभोद कुमार गांव पहुंचे। उन्होंने बताया कि शुरुआती जांच में “हड्डियों और मांसपेशियों की कमजोरी” ज्यादा पाई गई है। डॉक्टर ने उच्च अधिकारियों को रिपोर्ट भेजी है और विशेषज्ञों की टीम तथा पानी की जांच की सिफारिश की है।
एसडीएम राजीव रोशन का कहना है कि यह बीमारी संभवतः भूजल में मौजूद खनिज असंतुलन या प्रदूषण के कारण हो सकती है।

गांववालों की पुकार

दूधपनिया के लोग जंगल से लकड़ी और झाड़ू बेचकर अपनी रोज़ी चलाते हैं। गांव में सड़क और बिजली तो पहुंच गई, लेकिन रोजगार और इलाज अब भी दूर की चीज़ हैं। अब गांववाले बस यही मांग कर रहे हैं। “हमें नौकरी या मुआवज़ा नहीं चाहिए, बस साफ पानी दो ताकि हमारे बच्चे ज़िंदा रह सकें।”

मौत का गांव या सिस्टम की नाकामी?

दूधपनिया गांव की यह कहानी सिर्फ एक रहस्यमयी बीमारी की नहीं, बल्कि सरकारी लापरवाही की भी है। जहां हर घर में कोई न कोई बीमार है, वहां ज़िंदगी अब मौत के इंतज़ार में बदल चुकी है।

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