शारदीय नवरात्र प्रारंभ होने से देवी मां के भक्तों में उमंग है। लोग दूर-दूर से देवी के दर्शनों लिए मंदिर जाते है पूजा करते है। देश में कई ऐसे मंदिर है जिनमें नवरात्रों के समय विशेष होता है। ऐसा ही एक मंदिर उज्जैन में हरसिद्धि माता का है। इस मंदिर को 51 शक्तिपीठों में शामिल किया गया है। हरसिद्धि माता को राजा विक्रमादित्य की आराध्य देवी जाता हैं। बता दें कि इस मंदिर में 2000 साल पुराना और 51 फीट उच्चा स्तंभ है। जिसमें करीब 1011 दीये हैं। इन दीयों को 6 लोग 5 मिनट में प्रज्ज्वलित किया जाता है। जिससे पूरा मंदिर जगमग हो उठता है। वहीं इसमें 60 लीटर तेल और 4 किलो रुई का प्रयोग किया जाता है।
माता हरसिद्धि की कहानी
नवरात्र के पहले दिन मंदिर पर घटस्थापना के बाद आरती की गई। यहां नौ दिनों तक देवी के दर्शनों के लिए श्रद्धालु की भीड़ नजर आएगी। भक्तों की आस्था ऐसी है कि दीप प्रज्ज्वलित करवाने के लिए 10 दिसंबर तक की यहां वेटिंग लिस्ट है। पहले इन्हें त्योहार या नवरात्र में ही जलाया जाता था। अब ये सालभर रोशन रहते हैं।शास्त्रों के अनुसार माता सती के पिता राजा दक्ष प्रजापति ने यज्ञ का आयोजन किया था।
इसमें सभी देवी-देवता को आमंत्रित किया गया था लेकिन भगवान शिव को नहीं बुलाया गया। यहां पहुंचने पर माता सती को ये बात पता चली। माता सती को शिव का अपमान सहन नहीं हुआ। उन्होंने खुद को यज्ञ की अग्नि के हवाले कर दिया।
भगवान शिव को जब ये पता चला तो वे क्रोधित हो गए। वे सती का मृत शरीर उठाकर पृथ्वी का चक्कर लगाने लगे। शिव को रोकने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र चलाकर माता सती के अंग के 51 टुकड़े कर दिए। माना जाता है कि जहां-जहां माता सती के शरीर के टुकड़े गिरे वहां-वहां शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। उज्जैन में इस स्थान पर सती माता की कोहनी गिरी थी। इस मंदिर का नाम हरसिद्धि रखा गया।
दीप जलाने वालों की 10 दिसंबर तक बुकिंग पूरी
दोनों दीप स्तंभों पर दीप जलाने का खर्च करीब 15 हजार रुपए आता है। इसके लिए पहले बुकिंग करवानी होती है। हरसिद्धि माता मंदिर में आगामी 10 दिसंबर तक बुकिंग पूरी हो चुकी है। दीप स्तंभों पर चढ़कर हजारों दीपकों को जलाना सहज नहीं है। उज्जैन का रहने वाला जोशी परिवार करीब 100 साल से इन दीप स्तंभों को रोशन कर रहा है।
दोनों दीप स्तंभों को एक बार जलाने में करीब 4 किलो रुई की बाती और 60 लीटर तेल लगता है। समय-समय पर इन दीप स्तंभों की सफाई भी की जाती है। वर्तमान में मनोहर, राजेंद्र जोशी, ओम चौहान, आकाश चौहान, अर्पित और अभिषेक इस परंपरा को कायम रखे हैं।
दीप जलाने का 2500 मेहनताना
आपको बता दें कि काम काफी जोखिम भरा होता है। क्योंकि सभी दीयों में तेल डालते वक्त पूरा स्तंभ तेल में भीग जाता है। इससे फिसलन हो जाती है जिससे गिरने की आशंका रहती है। रोजाना दीप जलाने वाले भक्तों को मेहनताना के रूप में 2500 भी दिया जाता है जो 6 लोगों में बांट दिए है। साल भर ये दीपक समय-समय पर बदले जाते हैं।
वहीं शाम 7 बजे मंदिर में आरती होती है। दीप प्रज्ज्वलित करने के लिए एक घंटे पहले ही तैयारी शुरू हो जाती है। सभी दीये प्रज्ज्वलित होने के बाद नजारा देखने लायक होता है। आरती के समय यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहते हैं।