Supreme Court News: दिल्ली स्थित सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को एक अभूतपूर्व घटना देखने को मिली जब एक वकील ने मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई (CJI BR Gavai) की बेंच के सामने नारेबाजी करते हुए जूता फेंकने की कोशिश की। कोर्ट में मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने तत्परता दिखाते हुए वकील को तुरंत पकड़ लिया और बाहर ले गए। बाहर जाते वक्त वह “सनातन धर्म का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान” के नारे लगाता रहा। इस घटना के बाद सीजेआई गवई ने पूरी शांति के साथ कार्यवाही जारी रखी और कहा कि “ऐसी चीजों से हमारा ध्यान नहीं भटकता, न ही मुझ पर इनका कोई असर पड़ता है।”
अदालत में हंगामा, वकील ने फेंका जूता
6 अक्टूबर 2025 की सुबह Supreme Court में सामान्य कार्यवाही चल रही थी जब एक वकील अचानक मुख्य न्यायाधीश गवई की बेंच के पास पहुंचा। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, वकील ने पहले कुछ कागज लहराए और फिर जूता निकालकर बेंच की ओर फेंकने की कोशिश की। हालांकि, सुरक्षा कर्मियों ने तत्परता दिखाते हुए उसे वहीं काबू कर लिया।
वकील को तुरंत कोर्टरूम से बाहर ले जाया गया, लेकिन बाहर निकलते समय वह लगातार नारेबाजी करता रहा—“सनातन धर्म का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान।” कोर्ट के बाहर कुछ समय तक अफरातफरी का माहौल रहा, लेकिन जल्द ही स्थिति सामान्य हो गई।
सीजेआई गवई ने रखा संयम
मुख्य न्यायाधीश गवई ने इस पूरे घटनाक्रम के दौरान असाधारण संयम दिखाया। उन्होंने Supreme Court में मौजूद वकीलों से कहा, “ऐसी बातों से हमारा ध्यान भटकाने की जरूरत नहीं है। मैं इससे विचलित नहीं होता। ऐसी चीजों का मुझ पर कोई असर नहीं पड़ता।” उनकी इस टिप्पणी के बाद अदालत की कार्यवाही बिना किसी बाधा के जारी रही।
सीजेआई की इस शांत प्रतिक्रिया की कानूनी समुदाय में व्यापक सराहना हो रही है। कई वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने कहा कि यह न्यायपालिका की गरिमा और धैर्य का उदाहरण है।
क्या सच में जूता फेंका गया?
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, इस घटना को लेकर प्रत्यक्षदर्शियों के बयान थोड़े अलग-अलग हैं। कुछ ने दावा किया कि वकील ने सचमुच जूता निकालकर फेंकने की कोशिश की, जबकि अन्य का कहना है कि उसने केवल गोल मोड़े हुए कागज लहराते हुए कुछ कहने की कोशिश की। सुरक्षा कर्मियों ने फिलहाल वकील की पहचान और उसकी मंशा की जांच शुरू कर दी है।
खजुराहो मूर्ति विवाद से जुड़ा मामला
यह घटना उस विवाद से जोड़ी जा रही है जो हाल ही में खजुराहो में भगवान विष्णु की खंडित मूर्ति की बहाली से संबंधित था। इस मामले में 16 सितंबर को सीजेआई गवई ने सुनवाई से इनकार करते हुए कहा था कि यह विषय आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) के अधिकार क्षेत्र में आता है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट इसमें हस्तक्षेप नहीं करेगा।
उस दौरान सीजेआई ने याचिकाकर्ता से मज़ाकिया लहजे में कहा था, “आप कहते हैं कि आप भगवान विष्णु के बड़े भक्त हैं, तो उन्हीं से प्रार्थना कीजिए कि वह कुछ करें।” इस टिप्पणी पर सोशल मीडिया पर व्यापक आलोचना हुई थी, और लोगों ने न्यायाधीश पर धार्मिक भावनाएं आहत करने का आरोप लगाया था।
सीजेआई ने दी थी सफाई
विवाद बढ़ने के बाद सीजेआई गवई ने खुली अदालत में इस पर सफाई दी थी। उन्होंने कहा था कि उनकी टिप्पणी का मकसद किसी का अपमान करना नहीं था और वह सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान करते हैं। उन्होंने कहा था कि न्यायपालिका का दायित्व हर धर्म और नागरिक के अधिकारों की रक्षा करना है।
Supreme Court में इस तरह की घटना अत्यंत दुर्लभ है। हालांकि अदालत की सुरक्षा व्यवस्था और सीजेआई के संयमित रवैये ने यह सुनिश्चित किया कि कोई बड़ा हादसा न हो। यह वाकया न्यायपालिका के सामने संयम और गरिमा बनाए रखने की मिसाल बन गया है।