सुप्रीम कोर्ट ने पारिवारिक संपत्ति के बंटवारे से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में फैसले में स्पष्ट कर दिया है कि बिना रजिस्ट्री किए हुए पारिवारिक समझौते को भी बंटवारे के प्रमाण के रूप में मान्यता दी जाएगी। यह निर्णय कर्नाटक हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट के उन आदेशों को निरस्त करता है, जिनमें अपंजीकृत समझौतों को कानूनी तौर पर मान्यता नहीं दी गई थी।
तीन सदस्यीय बेंच, जिसमें न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति संदीप मेहता और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजनिया शामिल हैं। सुनवाई के बाद संशोधित अभिप्राय दिया कि अपंजीकृत पारिवारिक समझौता केवल टाइटल का प्रमाण नहीं हो सकता, लेकिन इसे बंटवारे के साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि निचली अदालतों ने इस मामले में कानून का गलत प्रयोग किया था।
अपंजीकृत लिखित समझौता भी वैध साक्ष्य
सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक, पंजीकृत त्यागपत्र भी अपने आप में वैध होता है और उसे लागू करने की कोई अतिरिक्त शर्त नहीं होती। इसलिए, परिवारिक बंटवारे के दस्तावेजों में पंजीकरण की कमी के बावजूद उन्हें अदालत में सहारा दिया जा सकता है।
यह फैसला पारिवारिक संपत्ति विवादों के समाधान में न्यायिक प्रक्रियाओं को सरल और पारदर्शी बनाएगा। अक्सर परिवारों में संपत्ति के बंटवारे को लेकर होने वाले लंबे मुकदमों में यह निर्णय राहत देगा। परिवारिक सदस्यों के लिए यह स्पष्टता लाएगा कि उनका अपंजीकृत लिखित समझौता भी वैध साक्ष्य माना जाएगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि इससे परिवारिक विवाद कम होंगे और संपत्ति बंटवारे के मामलों की सुनवाई तेज होगी। यह न्यायपालिका द्वारा संपत्ति विवादों को सुलझाने के प्रति संवेदनशीलता और व्यावहारिक दृष्टिकोण का उदाहरण है।
