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गैर इरादतन हत्या को लेकर SC का बड़ा फैसला, कहा- “चोट और मौत के बीच लंबे समय के गैप से कम नहीं होगा अपराधी का अपराध”

Juhi Tomer by Juhi Tomer
January 27, 2023
in एडिटर चॉइस, बड़ी खबर, विशेष
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गैर इरादतन हत्या को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने साफ कर दिया है कि पीड़ित को चोट लगने और मौत होने के बीच ज्यादा समय बीतने के बाद भी अपराधी की जिम्मेदारी कम नहीं होगी। इसका मतलब यह है कि अपराधि का दोष सिर्फ इसलिए कम नहीं हो सकता है क्योंकि व्यक्ति की मौत चोट लगने के लंबे समय बाद हुई। सुप्रीम कोर्ट ने गैर इरादतन हत्या के एक मामले पर सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया है। बता दें कि शीर्ष अदालत ने कहा कि जब किसी अबियुक्त द्वारा दी गई चोटों के कारण काफी समय बीत जाने के बाद पीड़ित की मृत्यु हो जाती है तो हत्या के मामले में अपराधी की जिम्मदारी को कम नहीं करेगा। जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस एस. रवींद्र भट की पीठ ने कहा कि यहां ऐसी कोई रूढ़िवादी धारणा या सूत्र नहीं हो सकता है कि जहां पीड़ित की मौत चोट लगने के कुछ समय के बाद हो जाए और उसमें अपराधी के अपराध को गैर इरादतन ही माना जाए। इसलिए वह गैर हत्या इरादत्न हत्या है या हत्या यह तथ्य और परिस्थितियां तय करेंगी। कोर्ट ने इस दौरान यह भी कहा कि हालांकि किसी केस में जो महत्वपूर्ण है वह चोट की प्रकृति है ऐऔर क्या यह सामान्य रूप से मौत की ओर ले जाने के लिए पर्याप्त है। वहीं कोर्ट ने आगे कहा कि ऐसे मामले में चिकित्सा पर कम ध्यान दिए जाने जैसे तर्क प्रासंगिक कारक नहीं हैं।

वहीं पीठ ने कहा कि इस मामले में चिकित्सकीय ध्यान की पर्याप्तता या अन्य कोआ प्रासंगिक कारक नहीं है, क्योंकि पोस्टमॉर्टम करने वाल डॉक्टर ने स्पष्ट रूप से कहा था कि मौत कार्डियों रेस्परेटरी फेलियर के कारण हुई थी। जो चोटों के परिणामस्वरुप हुई थी। इस प्रकार चोटें और मौत दोनों एक दूसरे के बहुत नजदीक सीधे एक दूसरे से जुड़े हुए थे। वहीं सुनवाई के दौरान यचिकाकर्ताओं के वकील ने अग्रह किया था कि पीड़िता की मौत हमले के 20 दिन बाद हुई थी। चोट और मौत में इतना समय बीत जाने से यह पता चलता है कि क्या मौत चोट से हुई है या फिर किसी और वजह से। मगर कोर्ट ने दलीलों को खारिज कर दिया । पीठ ने कहा कि ऐसे कई फैसले लिए गए है जो इस बात पर जोर देते हैं कि इस तरह की चूक अपराधी की जिम्मेदारी को हत्या के अपराध से कम कर गैर-इरादतन मर्डर कर देती है जिसे हत्या नहीं कहाजा सकता है। लेकिन इसको धारणा भी नहीं बनाया जा सकता।

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चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया

बता दें कि छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। जिसमें कोर्ट ने उन्हें हत्या का दोषी ठहराया था। पुलिस के अनुसार फरवरी 2012 में आरोपी ने मृतक उस वक्त हमला कर दिया था, जब वह विवादित जमीन को जेसीबी से समतल करने का प्रयास कर रहा था। पीड़िता की मौत के बाद पीड़ित परिवार ने आरोपियों के खिलाफ एक आपराधिक मामला दर्ज किया था। वहीं दोषियों ने तर्क दिया कि कथित घटना के लगभग 20 दिनों के बाद और सर्जरी के कारण मौत हुई है। इसलिए उनकी कथित हरकतें मौत का कारण नहीं थीं। मगर शीर्ष अदालत ने कहा कि सवाल यह है कि क्या अपीलकर्ता हत्या के अपराध के दोषी हैं, धारा 302 के तहत, या क्या वे कम गंभीर धारा 304, आईपीसी के तहत आपराधिक रूप से उत्तरदायी हैं।

गवाहों के बयान से साबित होता है कि हत्या के इरादे से किया गया

पीठ का कहना है कि यह अदालत इस बात को स्वीकार करने में कोई कठिनाई नहीं देखती है कि सबसे पहले अपीलकर्ता हमलावर थे, दूसरे उन्होंने मृतक पर कुल्हाड़ियों से हमला किया और तीसरा निहत्था था। शीर्ष अदालत ने अपीलकर्ताओं के इस तर्क को स्वीकार नहीं किया कि मौत अनजाने में अचानक झगड़े के कारण हुई थी।

Tags: CourtsSectionSupreme Court's big decision on culpable homicideSupreme Court's big decision on Section 304the Supreme Court said that the responsibility of the criminal cannot be reduced by the time gap between injury and death
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Juhi Tomer

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