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15 february तारापुर शहीद दिवस जब तिरंगा फहराने को खाई थी सीने पर गोलियां, भारत की आजादी की अनसुनी गाथा

तारापुर गोलीकांड 15 फरवरी 1932 को हुआ था, जब अंग्रेजों ने 50 से ज्यादा स्वतंत्रता सेनानियों को गोली मार दी। उनका अपराध सिर्फ इतना था कि वे तारापुर थाना पर तिरंगा फहराना चाहते थे।

by SYED BUSHRA
February 15, 2025
in राष्ट्रीय
Tarapur massacre 1932
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Tarapur massacre 1932 :  15 फरवरी का दिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में खास जगह रखता है। यही वह दिन था जब 1932 में बिहार के मुंगेर जिले के तारापुर थाना पर तिरंगा फहराने की कोशिश कर रहे 60 से ज्यादा देशभक्तों को अंग्रेजों ने गोलियों से भून दिया था। आज भी इस दिन को ‘तारापुर शहीद दिवस’ के रूप में याद किया जाता है, लेकिन इस घटना की चर्चा बहुत कम होती है। यह एक ऐसी कहानी है, जिसे जानना और अगली पीढ़ी तक पहुँचाना जरूरी है।

कैसे शुरू हुई थी यह क्रांति

तारापुर का इलाका आजादी की लड़ाई में पहले से ही काफी सक्रिय था। यहां के लोग अपनी मातृभूमि के लिए सब कुछ कुर्बान करने को तैयार थे। जब 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दी गई, तब पूरे देश में गुस्से की लहर दौड़ गई। बिहार भी इससे अछूता नहीं था।

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1932 में जब गांधी-इरविन समझौता तोड़ा गया, तो कांग्रेस ने ऐलान किया कि सरकारी भवनों से अंग्रेजों का झंडा उतारकर वहाँ तिरंगा फहराया जाएगा। इस फैसले के तहत 13 फरवरी को सुपौर के जमुआ गाँव में तय किया गया कि 15 फरवरी को तारापुर थाना पर तिरंगा लहराया जाएगा। इस मिशन की जिम्मेदारी मदन गोपाल सिंह के नेतृत्व में 5 लोगों के एक धावा दल को दी गई।

15 फरवरी 1932 का खौफनाक दिन

दोपहर होते ही सैकड़ों देशभक्त हाथों में तिरंगा और होठों पर ‘वंदे मातरम’ के नारे लिए तारापुर थाना की ओर बढ़ने लगे। अंग्रेजी सरकार को इस आंदोलन की भनक लग चुकी थी, इसलिए पहले से ही पुलिस तैनात थी। जैसे ही लोग थाना भवन के पास पहुँचे, अंग्रेज कलेक्टर ई. ओली और एसपी डब्ल्यू. फ्लैग ने गोलियां चलाने का आदेश दे दिया।

देशभक्तों ने बिना डरे आगे बढ़ते हुए तिरंगा फहराने की कोशिश की, लेकिन अंग्रेजों की गोलियां चलती रहीं। 50 से ज्यादा क्रांतिकारी मौके पर ही शहीद हो गए, लेकिन आखिरकार उनकी शहादत रंग लाई और तिरंगा थाना भवन पर लहराया गया।

शहीदों के शव गंगा में बहा दिए गए

इस गोलीकांड के बाद अंग्रेजों ने अमानवीयता की सारी हदें पार कर दीं। शहीद हुए लोगों के शवों को उठाकर गाड़ियों में भरा गया और उन्हें गंगा नदी में बहा दिया गया। इस घटना में 13 शहीदों की पहचान हो पाई, जबकि 31 शव अज्ञात रहे। कुछ तो हमेशा के लिए गंगा की लहरों में समा गए।

पहचाने गए कुछ शहीद

चंडी महतो (चोरगांव)

शीतल चमार (जलालाबाद)

शुक्कल सोनार (तारापुर)

संत पासी (तारापुर)

झोंटी झा (सतखरिया)

विश्वनाथ सिंह (छतहरा)

गैबी सिंह (महेशपुर)

इतिहास के पन्नों में दबी इस घटना का जिक्र कहाँ-कहाँ हुआ

18 फरवरी 1932 को बिहार-उड़ीसा विधान परिषद में सच्चिदानंद सिन्हा ने इस घटना पर सवाल उठाया था, जिसे ब्रिटिश अधिकारियों ने स्वीकार भी किया।

ब्रिटिश संसद में भारत के सचिव सर सैमुअल होर ने भी तारापुर गोलीकांड की जानकारी दी थी।

डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने अपनी आत्मकथा में इस घटना को विस्तार से लिखा है।

पंडित नेहरू ने 1942 में तारापुर यात्रा के दौरान इस बलिदान का जिक्र किया था।

इतिहासकार डी.सी. डिंकर ने अपनी किताब ‘स्वतंत्रता संग्राम में अछूतों का योगदान’ में संत पासी की भूमिका का विशेष उल्लेख किया है।

आज़ादी के बाद भुला दिया गया बलिदान

आजादी के बाद कुछ वर्षों तक 15 फरवरी को ‘तारापुर शहीद दिवस’ के रूप में मनाया जाता रहा, लेकिन धीरे-धीरे इस घटना को भुला दिया गया। 1984 में तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रशेखर सिंह ने तारापुर थाना के सामने शहीद स्मारक बनवाया, लेकिन इसके अलावा इस बलिदान को वह सम्मान नहीं मिला, जो मिलना चाहिए था।

क्या कहा प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने

31 जनवरी 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में तारापुर के शहीदों को याद किया और उनकी वीरता को नमन किया। 15 फरवरी 2022 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तारापुर शहीद स्मारक का अनावरण किया और शहीद पार्क का लोकार्पण किया।

यह बलिदान कभी भुलाया नहीं जा सकता

तारापुर गोलीकांड सिर्फ एक घटना नहीं थी, यह आजादी के लिए मर-मिटने वाले वीरों की सच्ची कहानी थी। ये वो लोग थे, जिन्होंने बिना किसी हथियार के, सिर्फ अपनी हिम्मत और देशभक्ति के दम पर अंग्रेजों के सामने सीना तानकर खड़े हो गए थे। आज यह हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम उनके बलिदान को याद रखें और आने वाली पीढ़ियों को भी इसके बारे में बताएं।
अंग्रेजों ने उनके शव गंगा में बहा दिए। यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम की सबसे बड़ी और अनसुनी गाथाओं में से एक है।

Tags: Bihar heritagefreedom struggleIndian history
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