6GHz spectrum: भारत के डिजिटल भविष्य का एक महत्वपूर्ण फैसला 6GHz स्पेक्ट्रम बैंड्स को लेकर होने वाला है, जिस पर भारतीय टेलीकॉम ऑपरेटर्स और दिग्गज वैश्विक टेक कंपनियां आमने-सामने खड़ी हैं। यह निर्णय तय करेगा कि देश में Wi-Fi और मोबाइल इंटरनेट की स्पीड और क्षमता कैसी होगी। एक तरफ, Apple, Amazon, Meta जैसी टेक कंपनियां चाहती हैं कि 1200 MHz का यह विशाल बैंड अनलाइसेंस रखा जाए, जिससे इसे अगली पीढ़ी के Wi-Fi (खासकर Wi-Fi 7) के लिए इस्तेमाल किया जा सके। उनका तर्क है कि इससे घर और ऑफिस के नेटवर्क पर भीड़ कम होगी और परफॉर्मेंस बेहतर होगी।
दूसरी ओर, Jio और Vi जैसे भारतीय टेलीकॉम ऑपरेटर्स की मांग है कि इस बैंड को 5G और भविष्य के 6G रोलआउट के लिए मोबाइल नेटवर्क्स को लाइसेंस के तहत जारी किया जाए। वे मिड-बैंड स्पेक्ट्रम की कमी का हवाला देते हुए कहते हैं कि वीडियो स्ट्रीमिंग, गेमिंग और फिक्स्ड वायरलेस एक्सेस जैसी बढ़ती खपत को संभालने के लिए यह स्पेक्ट्रम अति आवश्यक है। यह ‘जंग का मैदान’ तय करेगा कि आम भारतीय यूजर को आने वाले समय में किस टेक्नोलॉजी से सबसे तेज़ इंटरनेट मिलेगा।
6GHz स्पेक्ट्रम: भारत के इंटरनेट का भविष्य तय करने वाली जंग
भारतीय टेलीकॉम सेक्टर इस समय 6GHz बैंड्स के भविष्य को लेकर एक बड़े द्वंद्व में फंसा हुआ है। दुनिया की सबसे बड़ी टेक कंपनियां और देश के टेलीकॉम ऑपरेटर इस स्पेक्ट्रम को जारी करने के तरीके पर अलग-अलग रुख अपना रहे हैं। यह फैसला सीधे तौर पर हमारे मोबाइल और वाई-फाई इंटरनेट की गति को प्रभावित करेगा।
6GHz क्यों है इतना महत्वपूर्ण?
6GHz स्पेक्ट्रम (5.925 GHz से 7.125 GHz) को इंटरनेट और टेलीकॉम की दुनिया में एक ‘रियल एस्टेट’ की तरह देखा जा रहा है क्योंकि यह 1200 MHz का एक बड़ा और अप्रयुक्त चैनल प्रदान करता है।
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Wi-Fi के लिए: यदि इसे अनलाइसेंस छोड़ा जाता है, तो यह मौजूदा 2.4GHz और 5GHz बैंड्स की भीड़ को कम करेगा। Wi-Fi 6E और Wi-Fi 7 डिवाइस इस चौड़े और साफ चैनल का उपयोग करके तेज गति और बेहतर स्थिरता प्रदान कर सकेंगे, खासकर मल्टी-डिवाइस वाले घरों और दफ्तरों में।
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मोबाइल नेटवर्क के लिए: यदि इसे IMT स्पेक्ट्रम के तहत लाइसेंस दिया जाता है, तो यह 5G और 6G के लिए एक महत्वपूर्ण मिड-बैंड क्षमता प्रदान करेगा। यह शहरों में डेटा की अत्यधिक खपत को संभालने और मोबाइल इंटरनेट की स्पीड को बड़ा बूस्ट देने में सहायक होगा।
दावेदार और उनकी मांगें
पक्ष |
प्रमुख दावेदार |
मांग |
तर्क |
टेक कंपनियां |
Apple, Amazon, Meta, Cisco, Intel |
अनलाइसेंस रखा जाए, Wi-Fi के लिए उपयोग हो |
भीड़भाड़ कम होगी, Wi-Fi 7 को बढ़ावा मिलेगा, वैश्विक पैटर्न का पालन हो। |
टेलीकॉम ऑपरेटर्स |
Jio, Vi |
लाइसेंस के तहत मोबाइल नेटवर्क्स को जारी हो |
5G/6G रोलआउट के लिए जरूरी मिड-बैंड स्पेक्ट्रम मिलेगा, डेटा की बढ़ती खपत को संभाला जा सकेगा। |
बीच का रास्ता |
भारती एयरटेल (फिलहाल) |
स्पेक्ट्रम जारी करने में जल्दबाजी न की जाए |
सुनिश्चित करना कि अंतिम निर्णय देश की दीर्घकालिक आवश्यकताओं के लिए सबसे अच्छा हो। |
आम यूजर्स पर संभावित असर
सरकार का अंतिम फैसला सीधे तौर पर रोजमर्रा के काम और इंटरनेट अनुभव को प्रभावित करेगा:
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Wi-Fi के लिए जारी होने पर:
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फायदा: घर और ऑफिस में तेज़ और स्थिर Wi-Fi मिलेगा, विशेषकर जहां कई डिवाइस एक साथ इस्तेमाल होते हैं। Wi-Fi 7 की क्षमता का पूरा लाभ मिलेगा।
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नुकसान: मोबाइल नेटवर्क पर क्षमता का दबाव बढ़ सकता है, जिससे आउटडोर मोबाइल स्पीड प्रभावित हो सकती है।
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मोबाइल नेटवर्क्स के लिए जारी होने पर:
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फायदा: 5G और 6G को बड़ा बूस्ट मिलेगा, जिससे मोबाइल इंटरनेट की स्पीड और कवरेज में महत्वपूर्ण सुधार होगा।
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नुकसान: नए, तेज Wi-Fi तकनीक (Wi-Fi 7) का लाभ लेने के लिए कम स्पेक्ट्रम उपलब्ध होगा, जिससे इनडोर नेटवर्किंग में सीमित सुधार हो सकता है।
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फिलहाल, भारत उन देशों में शामिल है जिसने अभी तक 6GHz बैंड्स पर कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस मामले में देरी होने से आम जनता को अगली पीढ़ी के इंटरनेट का लाभ मिलने में भी देरी होगी।
