Solar System : दिल्ली की चिलचिलाती गर्मी में अगर आप दिनभर एसी चलाते हैं, तो महीने का बिजली बिल देखकर हैरानी होना लाजमी है। ऐसे में एक सवाल बार-बार मन में आता है – क्यों न ऐसा सोलर सिस्टम लगवा लिया जाए जिससे एसी बिना किसी टेंशन के फ्री में चले और बिजली के बिल का झंझट हमेशा के लिए खत्म हो जाए?
अगर आप भी कुछ ऐसा ही सोच रहे हैं, तो इस लेख में हम आपको सरल और स्पष्ट भाषा में बताएंगे कि एक 1.5 टन का एसी अगर 24 घंटे चले, तो उसके लिए कितने वॉट का सोलर पैनल जरूरी होगा, इसमें कितनी लागत आएगी, और इंस्टॉलेशन के दौरान किन बातों का खास ध्यान रखना होगा।
1.5 टन AC से बिजली की कितनी होती है खपत ?
आजकल अधिकतर एसी इन्वर्टर टेक्नोलॉजी के साथ आते हैं, जो पारंपरिक एसी की तुलना में कम बिजली की खपत करते हैं। एक 1.5 टन का इन्वर्टर एसी औसतन हर घंटे करीब 1.4 यूनिट बिजली खाता है। इसका मतलब हुआ कि अगर आप इसे पूरे 24 घंटे चलाते हैं, तो यह करीब 33.6 यूनिट बिजली रोजाना लेगा।
कितनी यूनिट बिजली का उत्पादन है जरूरी?
अगर आप चाहते हैं कि यह पूरा लोड आपके सोलर पैनल से ही उठ जाए, तो आपको रोजाना कम से कम 34 यूनिट बिजली का उत्पादन करना होगा। दिल्ली जैसे इलाकों में सूरज की रोशनी भरपूर मिलती है। विशेषज्ञों के अनुसार यहां 1kW का सोलर सिस्टम प्रतिदिन लगभग 5 यूनिट बिजली पैदा करता है। ऐसे में 34 यूनिट रोजाना पाने के लिए आपको करीब 7kW से 7.5kW का सोलर सिस्टम चाहिए। लेकिन भविष्य की जरूरत और धूप के उतार-चढ़ाव को ध्यान में रखते हुए 8kW का सिस्टम लगाना ज्यादा सुरक्षित और व्यावहारिक होगा।
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कितनी जगह लगेगी?
8 किलोवाट का सोलर सिस्टम स्थापित करने के लिए आपको लगभग 600 से 700 वर्गफुट की खुली छत की जरूरत पड़ेगी। यह जगह ऐसी होनी चाहिए जहां दिनभर सीधी धूप पड़े, ताकि पैनल पूरे क्षमता से बिजली बना सकें। वरना उत्पादन कम हो सकता है और एसी उतनी अच्छी तरह नहीं चल पाएगा।
कौन-सा सोलर सिस्टम आपके लिए है बेहतर ?
सोलर सिस्टम मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं:
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ऑन-ग्रिड सिस्टम:
यह सिस्टम सीधे बिजली के मीटर से जुड़ता है और इसमें बैटरी नहीं होती। इसकी लागत करीब ₹4 से ₹4.5 लाख (8kW) आती है। यह उन इलाकों के लिए बेहतरीन है जहां बिजली की कटौती नाममात्र की होती है, जैसे दिल्ली में। -
हाइब्रिड सिस्टम:
इसमें बैटरी बैकअप का विकल्प भी होता है, जो थोड़ी बिजली स्टोर कर सकता है। इसकी कीमत ₹5.5 से ₹6.5 लाख तक हो सकती है। यह सिस्टम उन जगहों के लिए सही है जहां कभी-कभी बिजली चली जाती है। -
ऑफ-ग्रिड सिस्टम:
यह पूरी तरह बैटरियों पर निर्भर करता है और तब काम आता है जब इलाके में बिजली अक्सर नहीं रहती। इसकी लागत ₹6.5 से ₹7 लाख तक हो सकती है। हालांकि, यह महंगा होता है और पावर लिमिटेड रहती है, इसलिए यह हर किसी के लिए व्यावहारिक नहीं होता।
कितना आएगा खर्च ?
अगर आप दिल्ली जैसे शहर में रहते हैं, तो ऑन-ग्रिड सोलर सिस्टम आपके लिए सबसे किफायती और टिकाऊ विकल्प होगा। इसकी लागत करीब ₹4 से ₹4.5 लाख आती है। सरकार की “पीएम सूर्य घर योजना” के तहत आपको इस पर 20% से 30% तक की सब्सिडी भी मिल सकती है, जिससे आपका कुल खर्च काफी हद तक कम हो सकता है।