लखनऊ ऑनलाइन डेस्क। अगर यूपी पुलिस में एनकाउंटर स्पेशलिस्ट की बात होती है तो कई आईपीएस के नाम सामने आते हैं, पर यूपी एसटीएफ चीफ अमिताभ यश सब पर भारी हैं। 2007 में ददुआ के ‘द एंड’ से शुरू हुआ ऑपरेशन 2024 तक बदस्तूर जारी है। लेकिन यूपी एसटीएफ चीफ से भी चार कदम आगे रिटायर्ड डीएसपी अशोक भदौरिया रहे हैं। उन्होंने चंबल के जंगलों से डाकुओं का सफाया किया। अपनी एक-47 रायफल के जरिए कुल 116 डकैतों को ठोका। ‘सुपरकॉप’ ने एक-47 का नाम डॉर्लिंग रखा हुआ था और आज भी ये ‘प्रियसी’ उनके साथ 24 घंटे रहती है।
डकैतों का काल बने डीएसपी भदौरिया
पाठा से लेकर चंबल में 80 और 90 के दशक में डाकुओं का आतंक हुआ करता था। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के चंबल के इलाकों में डाकुओं का बोलबाला था। उस दौर पर जब भी कोई बच्चा रोता तो उसकी मां कहती बबुआ चुप हो जा नहीं ददुआ, खड़रिया गैंग आ जाएगा। हालात इस कदर खराब थे कि अंधेरा होने के बाद लोग घरों में दुबक जाया करते थे। तभीं अशोक भदौरिया की पोस्टिंग मध्य प्रदेश पुलिस में आरक्षक के पद पर हुई थी। चंबल में पहुंचते ही उन्होंने डकैतों का सफाया करना शुरू कर दिया। कुछ ही दिनों में भदौरियों को डकैतों का काल कहा जाने लगा।
डीएसपी भदौरिया की एक-47 रायफल थी खास
अशोक भदौरिया का प्रोमोशन हुआ और वह डीएसपी बनाए गए। डीएसपी बनाए जाने के बाद भी उन्होंने ऑफिस के बजाए जंगल को चुना। अशोक भदोरिया अपने साथ एके-47 लेकर चला करते थे। वह प्यार से उसे डार्लिंग बुलाते थे। उनका कहना था कि परिवार वाले भी नाराज होते हैं कि आप दिन भर अपनी बंदूक के साथ ही रहते हैं। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि वह एके-47 से 116 से ज्यादा डाकुओं को ठिकाने लगा चुके हैं। बीहड़ के जंगलों में भदौरिया का आतंक कुछ ऐसा था कि सिर्फ उनके नाम मात्र से डकैतों औऱ दुर्दांत अपराधियों में भगदड़ की स्थिति पैदा हो जाती थी। भदौरिया को ग्वालियर के बीहड़ों से डकैत गैंगों के सफाई का क्रेडिट दिया जाता है।
गोली लगने से घायल हुए थे डीएसपी भदौरिया
एक अखबार को दिए इंटरव्यू के दौरान अशोक भदौरिया ने बताया था कि डाकुओं को पकड़ने के लिए उनकी तरह जीवन भी बिताना पड़ता था। कई-कई दिनों तक जंगलों में भटकने के बाद कई बार स्थिति ऐसी हो जाती थी कि गंदे पानी में सूखी रोटी भिगाकर खानी पड़ती थी। भदौरिया ने इंटरव्यू के दौरान बताया कि एक एनकाउंटर के दौरान उन्हें गोली लग गई थी। पैर में गोली लगने के बाद उन्हें लंबे समय तक बिस्तर पर रहना पड़ा था। उन्होंने कहा कि गोली लगने के बाद मैं इस काम से मुक्ति चाहता था, लेकिन कोई अधिकारी इसके लिए तैयार नहीं था। इस बीच डाकुओं का आतंक बढ़ता जा रहा था। ऐसे में उन्होंने दोबारा बंदूक उठाकर चंबल के जंगलों में उतरना पड़ा।
इन डकैतों का किया सफाया
दयाराम गड़रिया, रामबाबू गड़रिया, कलीम गैंग जैसी दर्जनों गैंग का सफाया अशेक भदौरिया ने किया। भदौरिया ने 5 लाख इनामी दयाराम गड़रिया को मार गिराया। 5 लाख के इनामी रामबाबू गड़रिया, 50 हजार के इनामी बेजू गड़रिया, 50 हजार के इनामी सोबरन गड़रिया, 1 लाख के इनामी रघुवर गड़रिया, 50 हजार का इनामी हरिबाबा, 25 हजार का इनामी सुघर सिंह, 25 हजार का इनामी रमेश, 25 लाख का इनामी पप्पू गुर्जर, 30 हजार इनामी रामविलास डकैत को एनकाउंटर में मार गिराने के साथ गैंग के सभी सदस्यों को सफाया भी किया। राष्ट्रपति वीरता पदक के लिए 16 बार नाम जाने के बावजूद इस बहादूर पुलिस अधिकारी को हर बार पदक की जगह निराशा हाथ लगी।
भिंड जिले के रहने वाले हैं अशोक भदौरिया
भदौरिया मध्य प्रदेश पुलिस में आरक्षक के पद पर भर्ती हुए थे। लेकिन जैसे-जैसे उनके द्वारा डकैतों का सफाया किया गया, वैसे-वैसे उन्हें सिलसिलेवार ठंग से प्रमोशन मिलता गया। पहले प्रधान आरक्षक बने फिर उप निरीक्षक, टीआई और अंत में उप पुलिस अधीक्षक के पद से वह रिटायर्ड हुए। अशोक सिंह भदौरिया मूलतः भिंड जिले के किशनपवरा गांव के रहने वाले हैं। 2002 में भदौरिया पर एक फर्जी मुठभेड़ का भी आरोप लगा। मामला कई दिनों तक विवाद में रहा। उनके खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया गया लेकिन 2004 में वह बरी कर दिए गए। फिलहाल वह रिटायर हो चुके हैं और समाजसेवा के कार्य में जुटे हुए हैं।
लेडी मुखबिरों की खड़ी की फौज
बताया जाता है कि उस दौर में डकैतों को जंगल में मुजरे सुनने और नाच का बहुत सौख था। डकैत नृत्यंगनाओं को जंगल में बुलवाया करते थे। इसी का फाएदा डीएसपी भदौरिया ने उठाया। उन्होंने लेडी मुखबिरों की फौज खड़ी कर ली। इन्हीं महिलाओं को वह जंगल भेजते और गैंग की सारी जानकारी हासिल करते। इसके बाद वह अपनी डॉलिंग एक-47 को लेकर जंगल में उतर जाया करते थे। जानकार बताते हैं कि महज कुछ सालों के अंदर भदौरिया ने चंबल को डकैत मुक्त बना दिया था, जो बच गए, उन्होंने क्षेत्र छोड़ दिया और पाठा-बीहड़ में अपना ठिकाना बना लिया। कईयों ने मौत के खौफ से सरेंडर भी कर दिया।