बिहार सरकार ने फैसला किया है कि राज्य के सभी जिलों में हाईवे किनारे संचालित अस्पतालों को चरणबद्ध तरीके से ट्रॉमा सेंटर के रूप में विकसित किया जाएगा, ताकि सड़क हादसों में घायल लोगों को ‘गोल्डन आवर’ के भीतर बेहतर इलाज मिल सके। इसके साथ ही केंद्र की कैशलेस ट्रीटमेंट स्कीम 2025 के तहत दुर्घटना पीड़ितों को 1.5 लाख रुपये तक का सात दिन तक मुफ़्त इलाज भी मिलेगा।
क्या है बिहार सरकार की ट्रॉमा सेंटर योजना?
पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं स्वास्थ्य मंत्री तेजस्वी यादव पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि राज्य में राष्ट्रीय व राज्य राजमार्गों के किनारे 11 नए ट्रॉमा सेंटर बनाए जा रहे हैं, जिनमें गोपालगंज, नवादा, अररिया, गया, नालंदा, वैशाली समेत कई ज़िले शामिल हैं।
अब नई योजना के तहत सिद्धांत रूप से यह तय किया जा रहा है कि हर जिले में हाईवे से सटे सरकारी/नामित निजी अस्पतालों को ट्रॉमा या पॉली-ट्रॉमा सेंटर के रूप में तैयार किया जाए, जहां 24×7 इमरजेंसी, सर्जरी, ICU, ब्लड बैंक और रेफरल सुविधा उपलब्ध हो।
परिवहन व स्वास्थ्य विभाग मिलकर ऐसी सूची तैयार कर रहे हैं कि किस जिले में कौन सा अस्पताल हाईवे ट्रॉमा सेंटर बनेगा, और जहां सुविधाएं नहीं हैं, वहां बुनियादी ढांचे, डॉक्टर, नर्स और उपकरणों की व्यवस्था की जाएगी।
सड़क हादसा पीड़ितों के लिए कैशलेस इलाज
केंद्र सरकार की ‘कैशलेस ट्रीटमेंट ऑफ रोड एक्सीडेंट विक्टिम्स स्कीम 2025’ को बिहार में लागू किया जा चुका है।
किसी भी सड़क दुर्घटना में घायल व्यक्ति को नामित अस्पतालों में सात दिनों तक अधिकतम 1.5 लाख रुपये तक कैशलेस इलाज की सुविधा मिलेगी।
राज्य सड़क सुरक्षा परिषद इस स्कीम की नोडल एजेंसी होगी, जबकि राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (NHA) अस्पतालों के बिल भुगतान और पोर्टल मॉनिटरिंग का काम देखेगा।
सरकार का लक्ष्य है कि हाईवे किनारे ट्रॉमा सेंटर + कैशलेस ट्रीटमेंट मॉडल के जरिए भारी संख्या में होने वाली ‘रोकने योग्य मौतों’ (preventable deaths) को कम किया जा सके, क्योंकि अभी तक कई मामलों में समय पर इलाज न मिलने या पैसे की चिंता के कारण मरीज गंवाए जाते हैं।
क्या बदल जाएगा आम लोगों के लिए?
किसी हादसे के बाद मरीज को दूर जिला अस्पताल या मेडिकल कॉलेज ले जाने की मजबूरी कम होगी, क्योंकि नज़दीकी हाईवे ट्रॉमा सेंटर में ही प्राथमिक/आवश्यक सर्जरी और स्टेबलाइज़ेशन हो सकेगा।
पैसे की कमी के कारण इलाज टालने या आधा-अधूरा कराने की स्थिति से राहत मिलेगी, क्योंकि शुरुआती सात दिन तक 1.5 लाख रुपये तक का खर्च स्कीम से कवर होगा।
एम्बुलेंस, रेफरल सिस्टम और ट्रेन्ड स्टाफ के साथ एक इंटीग्रेटेड ट्रॉमा केयर नेटवर्क बनेगा, जिसका ब्लूप्रिंट पहले से केंद्र की राष्ट्रीय ट्रॉमा केयर योजना में है (हर 100 किमी पर एक डिज़ाइनटेड ट्रॉमा सेंटर की अवधारणा)।
हालाँकि, असली असर इस बात पर निर्भर करेगा कि बुनियादी ढांचे के अलावा डॉक्टरों की तैनाती, औजार, ब्लड बैंक और 24×7 सेवाएं वास्तव में जमीन पर कितनी तेज़ी से और कितनी गुणवत्ता के साथ लागू हो पाती हैं।



