समाजवादी पार्टी में चाचा शिवपाल यादव और भतीजे अखिलेश यादव के बीच की खिचातानी खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है। अब तो दोनों के रास्ते भी जुदा हो गए हैं। रिश्तों ने सियासत का रुप ले लिया है। जिसके चलते अखिलेश यादव के सामने नई चुनौती आकर खड़ी हो गई है। इसमें सबसे बड़ी चुनौती है चार चुनाव हारने के बाद पांचवा चुनाव जीतने की चुनौती। दरअसल अब चुनावी विश्लेषक गुणा भाग करने में लग गए हैं कि चाचा और भतीजे की रहें अलग होने की वजह से अखिलेश के वोट बैंक को कितना नुकसान उठाना होगा।
आपको बता दें जब शिवपाल के बड़े भाई मुलायम सिंह यादव सपा सुप्रीमों थे तो शिवपाल की समाजवादी पार्टी में तूती बोलती थी, उनका कद सपा सुप्रीमो से किसी मायने में कम नही था। लेकिन जबसे सपा के सुप्रीमो का पद शिवपाल यादव के भतीजे अखिलेश यादव को मिला है तभी से उनके लिए समाजवादी पार्टी के दरवाजे धीरे धीरे करके बंद होने लगे। यही वजह है कि धीरे धीरे शिवपाल यादव ने समाजवादी पार्टी में अपनी प्रासंगिकता खो दी और उन्हें मजबूर होकर अपनी नई पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) बनानी पड़ी।अपने और अपने भतीजे के बीच इन दूरियों के लिए शिवपाल यादव अपने चचेरे भाई और अखिलेश के राजनीतिक सलाहकार की भूमिका निभा रहे रामगोपाल यादव को सबसे बड़ा जिम्मेदार मानते हैं।
शिवपाल बन सकते थे अखिलेश के लिए खतरा
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और अखिलेश यादव के सलाहकारों को ये डर था किसमाजवादी पार्टी को खड़ा करने का अनुभव और संगठन में पकड़ रखने के चलते शिवपाल यादव भविष्य में अखिलेश के लिए खतरा बन सकते थे। इसीलिए चाचा भतीजे में जो दूरियां पैदा हुई उसका ही असर है कि आज शिवपाल यादव को अखिलेश ने समाजवादी गठबंधन से आजाद कर दिया।
अखिलेश के लिए यह राहत की बात है कि अब शिवपाल पार्टी से विदा ले चुके है। वहीं शिवपाल अपनी पार्टी को मजबूत करने पर जोर दे रहे है। अब उन्होंने दो साल बाद होने वाले लोकसभा चुनाव लड़ने की बात भी कही है।
हालांकि पिछली लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी प्रसपा एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। शिवपाल यादव खुद भी लोकसभा चुनाव हार गए थे। लेकिन उसके बाद भी उन्होंने कई सीटों पर सपा को नुकसान पहुंचाया था। सपा का आरोप रहता है कि सहयोगी ही उस पर सवाल उठा रहे हैं। शिवपाल को निकाले बिना कहीं भी जाने की छूट वाले संदेश देकर सपा ने इस मुद्दे पर खुद के बचाव की कोशिश की है। जिससे शिवपाल का अपमान हुआ है।
सात साल से दोनों के रिश्तें में उतार-चढ़ाव
सात साल से दोनों के रिश्तों में उतार-चढ़ाव चल रहा है। शिवपाल और अखिलेश के रिश्ते 2015 से ही बिगड़ने लगे थे। उसके बाद परिवारिक विवाद और सत्ता संघर्ष के चलते हालात और खराब हो गए।
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आपको बता दें 2022 के चुनाव में अखिलेश ने शिवपाल को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया था। जिसके चलते शिवपाल ने अपनी रथयात्रा छोड़ दी और सपा के टिकट पर चुनाव लड़े लेकिन जीत पर दूरी फिर से बढ़ने लगी। राष्ट्रपति चुनाव के लिए बैठकों में सपा ने शिवपाल को नहीं बुलाया लेकिन वह खुल कर एनडीए प्रत्याशी के पक्ष में आ गए।