UP bank accounts RBI guidelines: उत्तर प्रदेश के बैंकों में वर्षों से निष्क्रिय पड़े करोड़ों खातों और लाखों लॉकरों के नए वारिस मिलने वाले हैं। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने हाल ही में नई गाइडलाइन जारी की है, जिसके तहत 31 मार्च 2026 तक सभी बैंकों को इस व्यवस्था को लागू करना अनिवार्य होगा। इस पहल से उन परिजनों को बड़ी राहत मिलेगी, जिनके अपनों के निधन के बाद बैंक खातों या लॉकरों में जमा धन और सामान का दावा करने के लिए लंबी कानूनी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता था। अब 7,211 करोड़ रुपये की इस भारी-भरकम राशि तक पहुंचना कहीं अधिक आसान हो जाएगा।
करोड़ों खाते और हजारों लॉकर बने थे लावारिस
बैंकिंग सिस्टम के आंकड़े बताते हैं कि UP में करीब 2.81 करोड़ बैंक खाते ऐसे हैं जिनमें पिछले दस वर्षों से कोई लेन-देन नहीं हुआ। इन्हें निष्क्रिय घोषित कर दिया गया और इनमें जमा 7,211 करोड़ रुपये को आरबीआई के पास ट्रांसफर कर दिया गया था। इसके अलावा, करीब एक लाख लॉकर ऐसे हैं जिनमें रखे सामान का कोई दावेदार सामने नहीं आया। पुराने नियमों में इन खातों या लॉकरों पर दावा करने के लिए वारिसों को अदालतों में उत्तराधिकार प्रमाणपत्र या वसीयत पेश करनी पड़ती थी, जिससे परिजनों को वर्षों तक भागदौड़ करनी पड़ती थी।
नई व्यवस्था से मिलेगा त्वरित समाधान
आरबीआई की नई गाइडलाइन के मुताबिक अब मृतक ग्राहकों के नामांकन या सर्वाइवर वाले खातों पर दावे मृत्यु प्रमाणपत्र और पहचान पत्र दिखाकर आसानी से निपटाए जा सकेंगे। अब वारिसों को उत्तराधिकार प्रमाणपत्र या वसीयत प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं होगी। इसके तहत सहकारी बैंकों में 5 लाख रुपये तक और अन्य बैंकों में 15 लाख रुपये तक के दावों का निपटारा क्लेम फार्म, शपथपत्र और मृत्यु प्रमाणपत्र के आधार पर किया जा सकेगा।
लॉकर और सेफ कस्टडी के लिए स्पष्ट प्रक्रिया
नई व्यवस्था में लॉकर या सेफ कस्टडी के मामलों में नामांकित व्यक्ति को सीधे चाबी सौंप दी जाएगी। वहीं, जिन मामलों में नामांकन नहीं है, वहां बैंक अधिकारी और दो गवाहों की मौजूदगी में लॉकर का इन्वेंटरी तैयार कराई जाएगी। दस्तावेज पूरे होने के 15 दिन के भीतर दावे का निपटारा करना अनिवार्य होगा। यदि बैंक देरी करता है तो उसे जमा खातों पर 4% ब्याज और लॉकर/सेफ कस्टडी पर प्रतिदिन 5,000 रुपये का भुगतान करना होगा।
परिजनों को बड़ी राहत
नई गाइडलाइन से उन परिवारों को सबसे बड़ी राहत मिलेगी जिनके अपनों ने खाते या लॉकर तो खोले लेकिन वारिस का नामांकन नहीं किया था। अब परिजनों को बैंकों और अदालतों के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे और वर्षों से रुकी करोड़ों की रकम और बहुमूल्य सामान तक आसानी से पहुंच संभव होगी।