Amroha stone pelting: क्या सपा की PDA रणनीति सिर्फ नारा बनकर रह गई?

अमरोहा के रहदरा गांव में दलित बारात पर कथित पथराव ने उत्तर प्रदेश की जातीय राजनीति को झकझोर दिया है। हमले का आरोप यादव समुदाय पर है, जिससे सपा की PDA रणनीति और अखिलेश यादव की नीयत पर सवाल उठे हैं।

Amroha

Amroha stone pelting: उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के रहदरा गांव में दलित समाज की एक बारात पर कथित रूप से यादव समुदाय द्वारा किए गए पथराव ने राज्य की जातिगत राजनीति में हलचल पैदा कर दी है। चार लोग घायल हुए और घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। भीम आर्मी ने इसे दलितों के खिलाफ सुनियोजित हमला करार देते हुए सख्त कार्रवाई की मांग की है। वहीं, समाजवादी पार्टी और उसके नेता अखिलेश यादव की चुप्पी अब सवालों के घेरे में है। 2024 के लोकसभा चुनाव में PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) गठजोड़ का दावा करने वाली सपा इस घटना पर क्या कहेगी? क्या अखिलेश यादव वाकई सामाजिक न्याय के पक्षधर हैं या PDA सिर्फ एक चुनावी जुमला था?

जातीय हिंसा या राजनीतिक पाखंड?

Amroha की इस घटना में सबसे अहम बात यह है कि हमलावरों के तौर पर जिन पर आरोप लगे हैं, वे समाजवादी पार्टी के सबसे प्रमुख समर्थक—यादव समुदाय—से आते हैं। वहीं, पीड़ित पक्ष दलित समुदाय से है, जिसे सपा अपनी PDA नीति का हिस्सा बताती रही है। सवाल यह है कि जब इन्हीं दो वर्गों के बीच टकराव हो जाए, तो अखिलेश यादव किसके साथ खड़े होते हैं?

अभी तक समाजवादी पार्टी की ओर से कोई ठोस प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। क्या यह खामोशी उस डर को दर्शाती है कि कहीं यादव वोट बैंक न खिसक जाए? क्या दलितों के साथ न्याय की कीमत पर भी सपा अपने जातीय समीकरणों की तिजोरी को बंद रखेगी?

भीम आर्मी के तीखे तेवर, सपा की चुप्पी

भीम आर्मी Amroha ने इस मामले को खुलकर उठाया है और इसे दलितों पर हमला बताया है। संगठन ने न केवल पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाए हैं बल्कि सपा की निष्क्रियता को भी आड़े हाथों लिया है। दलित युवाओं में आक्रोश है और सोशल मीडिया पर “PDA धोखा है” जैसे ट्रेंड्स दिखने लगे हैं।

क्या PDA सिर्फ सत्ता की सीढ़ी था?

यदि अखिलेश यादव इस घटना पर अब भी चुप्पी साधे रहते हैं, तो यह साफ संकेत होगा कि PDA रणनीति केवल सत्ता हासिल करने का एक औजार थी। यदि उनकी राजनीति में वास्तव में समावेशिता और सामाजिक न्याय के लिए कोई जगह है, तो उन्हें तुरंत इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए, दोषियों के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए और पीड़ितों के साथ खड़ा होना चाहिए।

क्या अखिलेश यादव अब भी इस मामले में दलितों के पक्ष में खुलकर खड़े होंगे? या फिर PDA सिर्फ नारों की राजनीति थी, ज़मीनी हकीकत नहीं?

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