प्रयागराज उस वक्त इलाहबाद हुआ करता था..उन दिनों वहां नए कॉलेज बन रहे थे… उद्योग लग रहे थे. खूब ठेके बंट रहे थे. नए लड़कों में अमीर बनने का एक अलग ही जूनून चढ़ा हुआ था.. वो अमीर बनने के लिए किसी भी हद को पार कर सकते थे.. कुछ भी मतलब.. कुछ भी.. किसी की हत्या हो या अपहरण .. उनके लिए इसमें कोई नई बात नहीं थीं..
तारीख थी 10 अगस्त 1962 जब इलाहाबाद स्टेशन पर तांगा चलाने वाले फिरोज के घर में किलकारी गुंजी.. किसी ने नहीं सोचा था कि एक तांगा चलाने वाले का बेटा एक दिन पूरे प्रदेश पर राज करेगा.. राज भी ऐसा कि वो माफिया के नाम से जाना जाएगा.. इलाहबाद में एक मोहल्ला है..चकिया। जहां इस मोहल्ले का लड़का साल 1970 में फेल हो गया..इस बच्चे पर अमीर बनने का चस्खा इस हद तक था कि वो कुछ भी करने के लिए तैयार था.. उम्र थी 17 जब उस पर हत्या का आरोप लगा.. इसके बाद उसका धंधा चलने लगा..वो खूब रंगदारी वसलूने लगा और उस 17 साल के बच्चे का नाम था अतीक अहमद.. फिरोज तांगे वाले का लड़का। यहीं से शुरू हुई अतीक के क्रिमिनल बनने की कहानी।
ये वही माफिया है जिसने पहले क्राइम के दम पर अपनी पहचान बनाई..फिर उसी पहचान के बलबूते राजनीति में एंट्री ली। 28 साल की उम्र में जब ये विधायक बना तो इसकी पावर दोगुनी हो गई, जिसने भी इससे पंगा लेने की कोशिश की वो मिट्ठी में मिल गया.. हर हाई प्रोफाइल हत्याकांड में नाम अतीक का आया.. इसपर एक के बाद एक 100 से ज्यादा मुकदमे दर्ज हुए, लेकिन कभी किसी केस में इसे सजा नहीं हुई। 44 साल बीते और वो दिन आखिर आ गया जब अतीक को पहली बार सजा सुनाई गई। वो दिन था.. 28 मार्च 2023 .. जब अतीक को 17 साल पुराने उमेश पाल किडनैपिंग केस में उम्रकैद की सजा सुनाई गई.. अभी हो सकता है कि उसे और भी मामलों में सजा सुनाई जाए..

चांद बाबा का राज
जब अतीक क्राइम की दुनिया में अपने पैर जमा ही रहा था.. उस वक्त शहर में.. चांद बाबा नाम के गुंडे का दबदबा बढ़ता जा रहा था। चाँद बाबा का खौफ इतना कि पुलिस भी चौक और रानीमंडी की तरफ जाने से डरा करती थी.. अगर कोई खाकी वर्दी वाला चला भी जाता तो उसका मार खाकर वापिस आना पक्का था.. लोग बताते हैं कि उस समय 22 साल के लड़के अतीक को भी ठीक-ठाक गुंडा माना जाने लगा था.. वहीं दूसरी ओर पुलिस और नेता दोनों चांद बाबा के खौफ से छुटकारा पाना चाहते थे.. इसी का फायदा उठाया अतीक अहमद ने.. और फिर उसने पुलिस और स्थानीय नेताओं से साठगांठ बना ली। लेकिन किसी को क्या मालूम था कि अतीक का उभार आगे चलकर चांद बाबा से ज्यादा पुलिस के लिए भी खतरनाक बनने वाला है..

आपराधिक दुनिया में माफिया को पुलिस और स्थानीय लोगों का पूरा साथ मिला.. अब अतीक चांद बाबा से भी ज्यादा खतरनाक हो चुका था.. लगातार लूट, अपहरण और हत्या जैसी वारदातों को अतीक अंजाम दिए जा रहा था.. उसके गुर्गों का नेटवर्क बढ़ने लगा था.. अब वो पुलिस के लिए भी नासूर बन गया.. जिस पुलिस ने उसे अब तक शह दे रखी थी वही उसकी तलाश में जगह-जगह जुट गई। बड़ी मशक्क्त के बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.. सभी को लगा अब अतीक का खेल खत्म.. लेकिन किसी को क्या मालूम था उसका असली खेल तो अब शुरू हुआ है.. साल था 1986.. उन दिनों प्रदेश में वीर बहादुर सिंह की सरकार थी और केंद्र में राजीव गांधी की। अतीक का वर्चस्व इतना कि गिरफ्तारी के बाद उसे छुड़ाने के लिए दिल्ली से एक फोन आया.. और ठीक एक साल बाद अतीक जेल से बाहर आ गया..
राजनीति का सहारा
पुलिस के लिए अब अतीक नासूर बन चुका था.. वो उसे ऐसे छोड़ना भी नहीं चाहती थी.. अतीक को एहसास हो गया था कि अब जेल से बचने के लिए राजनीति ही उसके काम आ सकती है.. फिर उसने राजनीतिक दुनिया में कदम रखा.. प्रयागराज के पश्चिमी हिस्से पर अतीक अहमद का दबदबा था.. साल 1989 तक अतीक पर करीब 20 मामले दर्ज हो चुके थे.. जब उसने पहली बार विधायकी लड़ने का फैसला किया.. वो साल था.. 1989.. किसी पार्टी का टिकट न मिलने की वजह से अतीक ने निर्दलीय खड़े होने का फैसला किया था .. फिर जब चुनाव हुए और नतीजे आए.. तो अतीक के हिस्से में 25,906 वोट आए। वह 8,102 वोट जीतकर पहली बार विधायक चुना गया।

अतीक को विधायक बने करीब 3 महीने हो चुके थे.. एक चाय की टपरी पर अतीक अपने गैंग के साथ बैठा था.. उसी वक्त अचानक से चांद बाबा अपनी गैंग के साथ वहां आया.. फिर क्या जब दो दुश्मन टकराए तो दोनों के बीच गैंगवार शुरू हो गई.. बीच चौराहे, भरे बाजार गोलियों, बम और बारूद से पट गया। इसी बीच चांद बाबा की मौत हो गई.. और हत्या का आरोप लगा अतीक अहमद पर.. लेकिन विधायक होने की वजह से उसपर कोई एक्शन नहीं लिया गया.. आज तक अतीक इस मामले इस मामले में दोषी साबित नहीं हुआ..
चांद बाबा की हत्या के बाद अतीक का खौंफ इस हद तक फैला कि लोग इलाहाबाद पश्चिमी सीट से टिकट लेने से खुद ही मना कर देते थे। यही कारण था कि अतीक ने निर्दलीय रहकर 1991 और 1993 में भी लगातार चुनाव जीते।। इसी बीच सपा से उसकी नजदीकियां बढ़ी… साल 1996 में सपा के टिकट से चुनाव लड़ा और चौथी बार विधायक बन गया.. 1999 में उसने अपना दल का हाथ थामा… और प्रतापगढ़ से चुनाव लड़ा. हलांकि यहां वो जीत नहीं पाया. फिर उसने 2002 में अपना दल से ही चुनाव लड़ा और 5वीं बार शहर पश्चिमी से विधानसभा में पहुंच गया.. .

अतीक अपना खौफ इलाहाबाद तक ही सीमित नहीं रखना चाहता था… उसकी सनक इतनी थी कि वो विरोधियों को खत्म कर देता था.. फिर चाहे वो राजू पाल हो या चांद बाबा। साल 2003 में जब मुलायम सिंह यादव की सरकार बनी तो.. अतीक की सपा में वापसी हुई.. अतीक ने 2004 के लोकसभा चुनाव में फूलपुर से चुनाव लड़ा और सांसद पहुंच गया। जब इलाहाबाद पश्चिमी की सीट खाली हुई तो उसने अपने भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ को वहां से मैदान में उतारा.. लेकिन वो जीत नहीं पाया.. नतीजन 4 हजार वोटों से जीतकर विधायक बने बसपा के राजू पाल.. जी हाँ! वही राजू पाल जिसे कभी अतीक का दाहिना हाथ माना जाता था.. वो समय था जब राजू पाल पर 25 मुकदमे दर्ज थे.. इसी वक्त तो शुरू हुई थी अतीक के पतन की कहानी.. राजू पाल से अतीक को हर बर्दाश्त नहीं हुई.. साल 2004 और महीना अक्टूबर जब राजू विधायक बने.. और उसके अगले महीने नवंबर में ही राजू के ऑफिस के पास बमबाजी और फायरिंग हुई.. तब राजू पाल बच गए। फिर दिसंबर में उनकी गाड़ी पर फायरिंग की गई..
राजू पाल की हत्या..
राजू पाल की जीत अतीक अहमद को उसकी हार याद दिलाया करती थी। समय था 25 जनवरी, 2005… जब राजू पाल के काफिले पर एक बार फिर हमला हुआ.. उस पर गोलियां लगी.. जब फायरिंग करने वालों को लगा कि वो अभी भी जिंदा है.. उन्होंने एक बार टेंपो को घेरकर फयरिंग करना शुरू कर दिया.. करीब पांच किलोमीटर तक टेंपो का पीछा किया गया और गोलियां मारी गईं.. आखिरी में राजू पाल जीवन ज्योति अस्पताल पहुंचे, उन्हें 19 गोलियां लग चुकी थीं.. डॉक्टर ने उन्हें मृत घोषित कर दिया था। इस हत्या का आरोप भी लगा अतीक अहमद पर।

राजू पाल की हत्या से उसका पूरा परिवार बिखर चुका था.. 9 दिन पहले ही राजू की शादी हुई थी..पत्नी पूजा पाल ने अतीक, भाई अशरफ, फरहान और आबिद समेत कई लोगों पर नामजद मुकदमा दर्ज करवाया.. वहीं फरहान के पिता अनीस पहलवान की हत्या का आरोप राजू पाल पर था.. बसपा समर्थकों ने पूरे शहर में तोड़फोड़ करना शुरू कर दिया.. 2005 में उपचुनाव हुए थे तब बसपा ने पूजा पाल को चुनावी मैदान में उतारा.. वहीं सपा ने दोबारा अशरफ को टिकट देने का फैसला लिया था.. पूजा पाल के हाथों की मेंहदी भी नहीं उतरी थी, और वो विधवा हो गई थीं.. कहा जाता है कि उस वक्त पूजा मंच में अपने हाथ दिखाकर रोने लगती थीं.. फिर भी पूजा पाल को जनता का समर्थन नहीं मिला.. खैर उस वक्त अतीक का खौफ ही इतना था.. इसी का नतीजा है कि अशरफ चुनाव जीत गया।
माफिया की छवि रही बरकरार
अतीक भले ही नेता बन गया था लेकिन वो माफिया वाली अपनी छवि से कभी बाहर नहीं निकल पाया नेता बनने के बाद उसके अपराधों की रफ्तार में और भी ज्यादा तेजी आ गई। इसी का नतीजा था कि उसके ऊपर अधिकतर केस विधायक-सांसद रहते हुए दर्ज हुए।

अतीक पर साल 2005 में राजू पाल की हत्या से पहले.. साल 1989 में चांद बाबा की हत्या, साल 2002 में नस्सन की हत्या, साल 2004 में मुरली मनोहर जोशी के करीबी बताए जाने वाले भाजपा नेता अशरफ की हत्या के आरोप लगे। ऐसा कहा जाता था कि जो भी अतीक के खिलाफ सिर उठाने की कोशिश करता था वो मारा दिया जाता। उस वक्त अतीक के खिलाफ अब तक 101 मुकदमे दर्ज हो चुके थे.. साल 2007 में बसपा की सरकार के आने से हालात में बदलाव आने शुरू हुए। अब अतीक के खिलाफ कार्रवाई शुरू हुई..
ऑपरेशन अतीक
राजू पाल के निधन को दो साल बीत चुके थे… साल 2007 का समय था और इलाहाबाद पश्चिमी से एक बार फिर पूजा पाल और अशरफ आमने-सामने थे.. लेकिन इस बार पूजा ने अशरफ को पछाड़ दिया और ध्वस्त हो गया अतीक का किला. मायावती की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी.. अतीक को सपा से गैंग दिया गया.. मायावती सरकार ने शुरू किया.. ऑपरेशन अतीक। माफिया को मोस्ट वांटेड घोषित करते हुए गैंग का चार्टर तैयार हुआ.. इस गैंग का नाम पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज हुआ.. आईएस 227.. उस वक्त अतीक की गैंग में 120 से ज्यादा मेंबर थे… 1986 से 2007 तक अतीक पर एक दर्जन से ज्यादा मामले केवल गैंगस्टर एक्ट के तहत दर्ज हुए थे.. अतीक पर 20 हजार का इनाम घोषित किया गया.. करोड़ों की संपत्ति सीज कर दी गई… बिल्डिंगें गिरा दी गईं.. खास प्रोजेक्ट अलीना सिटी को अवैध घोषित करते हुए ध्वस्त कर दिया गया.. अतीक फरार चल चल रहा था.. और एक सांसद, जो इनामी अपराधी था, उसे फरार घोषित कर पूरे देश में अलर्ट जारी कर दिया गया.. अचानक से दिल्ली पुलिस की तरफ से खबर आई.. हमने दिल्ली के पीतमपुरा के एक अपार्टमेंट से अतीक को गिरफ्तार कर लिया है.. यूपी पुलिस आई और अतीक को लेकर जेल में डाल दिया गया.
2012 में यूपी के अंदर विधानसभा चुनाव होना था.. अतीक अहमद जेल में था इसलिए सपा ने टिकट देने से मना कर दिया..उसने इलाहाबाद हाईकोर्ट में बेल के लिए अप्लाई किया. लेकिन हाईकोर्ट के 10 जजों ने केस की सुनवाई करने से साफ़ मना कर दिया.. इसके बाद आखिर में 11वें जज सुनवाई के लिए तैयार हुए.. और जिसके बाद अतीक को बेल मिल गई.. अब माफिया अतीक अहमद के पास गढ़ बचाने का आखिरी अवसर था.. इसलिए इस बार अतीक खुद पूजा पाल के सामने उतरा.. लेकिन उसे फिर उसे हार का सामना करना पड़ा।

जब राज्य में सपा की सरकार बनी अतीक ने फिर से अपनी हनक बनाने की कोशिश की.. उस पर इलाहाबाद के कसारी-मसारी इलाके में कब्रिस्तान की जमीन कब्जाने का आरोप लगा.. अतीक पर जमीनों पर कब्जे के ऐसे खूब आरोप लगे… सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव एक बार फिर से अतीक पर मुलायम हो गए.. और उसे सुलतानपुर से टिकट दे दिया। पार्टी के अंदर विरोध हुआ तो अतीक की सीट बदलकर श्रावस्ती कर दी गई। उसने खूब चुनाव प्रचार किया
वक्त था 25 सितंबर 2015… बकरीद का अगला दिन… मारियाडीह में एक डबल मर्डर होता है… मारियाडीह के प्रधान आबिद की चचेरी बहन अल्कमा और ड्राइवर सुरजीत का… उनपर गाड़ी रोककर ताबड़तोड़ गोली बरसाई गई थीं… इस हत्या का आरोप लगा कम्मू और जाबिर नाम के दो भाईयों पर.. कम्मू-जाबिर और आबिद प्रधान में पुरानी रंजिश थी… ये दोनों भी पहले अतीक के लिए काम करते थे। लेकिन बाद में अलग हो गए.. वहीं जाबिर बसपा से चुनाव लड़ने की तैयारी में था.. इस केस को लेकर कम्मू और जाबिर ने कोर्ट में सरेंडर कर दिया…
2017 में विधानसभा चुनाव को लेकर सपा ने 2016 में ही तैयारी शुरू कर दी थी.. सपा ने एक लिस्ट जारी की जिसमें अतीक को कानपुर कैंट सीट से उम्मीदवार बनाया गया था.. 14 दिसंबर के दिन अतीक और उसके 60 समर्थकों पर आरोप लगा कि इलाहाबाद के शियाट्स कॉलेज में तोड़फोड़ और मारपीट की… अतीक एक निलंबित छात्र की पैरवी करने कॉलेज गए थे.. कॉलेज पहुंचकर उसने अधिकारियों को भी धमकाया..जिसका वीडियो भी वायरल हुआ था.. एक दिन यानी 22 दिसंबर को अतीक 500 गाड़ियों के काफिले के साथ कानपुर पहुंचा.. अतीक 8 करोड़ की गाड़ी ‘हमर’ पर सवार था.. जिधर से काफिला गुजरता जाम लग जाता.. यह बात जब अखिलेश तक आई तो वह उखड़ गए.. उन्होंने साफ कर दिया कि पार्टी के अंदर अतीक के लिए कोई जगह नहीं है.. इस एक फैसले के बाद अतीक का सियासी कैरियर मानों खत्म हो गया। वहीं शियाट्स मामले में हाई कोर्ट ने सख्ती कर दी.. पुलिस को फटकार लगाई गई और अतीक को गिरफ्तार करने का आदेश दिया गया।। फरवरी 2017 में अतीक को गिरफ्तार कर लिया गया… हाईकोर्ट ने सारे मामलों में उसकी जमानत रद्द कर दी गई।

2017 में जब योगी सरकार आई तो मारियाडीह डबल मर्डर केस की फिर से जांच शुरू हुई.. पुलिस ने खुलासा किया कि अल्कमा की हत्या अतीक, अशरफ और आबिद प्रधान ने कराई है.. अतीक को लग रहा था कि अगर जाबिर चुनाव जीत गया तो उसका वर्चस्व खत्म हो जाएगा.. इसलिए अतीक ने अल्कमा को मारने की साजिश रची.. अल्कमा ने गैर बिरादरी में शादी कर ली थी इस वजह से आबिद प्रधान और उसका परिवार भी नाराज था.. इसका फायदा उठाकर अतीक, अशरफ और आबिद ने एक तीर से दो निशाना लगाने की साजिश रची.. इस बीच फूलपुर लोकसभा के लिए उपचुनाव घोषित हो गए.. इस सीट से बीजेपी सांसद केशव प्रसाद मौर्य यूपी के डिप्टी सीएम बने..जेल में बैठा अतीक भी वहां चुनाव में खड़ा हो गया…लेकिन उसे हार का सामना करना पड़ा।

उमेशपाल की हत्या..
2005 में हुई विधायक राजू पाल की हत्या के मामले में उमेश पाल मुख्य गवाह थे.. 24 फरवरी शुक्रवार को करीब साढ़े चार बजे उमेश कार से वापस सुलेमसराय, धूमनगंज स्थित अपने घर के लिए चल दिए.. जैसे ही गेट पर गाड़ी रोककर उमेश उतरे, पहले से घात लगाए बदमाशों ने उन्हें गोली मार दी.. उमेश गोली लगने से गिरने के बाद उठकर घर के भीतर भागने लगे.. उनकी सुरक्षा में लगे दोनों सिपाही भी उन्हें बचाने के लिए घर के अंदर भागे.. बम और गोलियों की बौछार से इलाका थर्रा गया.. हमलावर वहां से फरार हो गए.. उमेश पाल, सिपाही संदीप और राघवेंद्र लहूलुहान पड़े थे।

अपराध की दुनिया में अतीक अहमद वो नाम है.. जिसे सुनकर पूरा पूर्वांचल कांप उठता था। लेकिन योगी सरकार के आने के बाद अतीक का दबदबा कम होने लगा.. अब समय का पहिया कुछ इस तरह घूमा है कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने माफिया को मिट्टी में मिलाने की कसम खा ली.. इसी का नतीजा है कि उसकी ही घिग्घी बंधी गई है। योगी राज में गुंडा गिर्दी करने वालों की अब सिटी पिट्टी गुम हो गई है.. उमेश पाल की हत्या के बाद विधानसभा में इसकी गूंज सुनाई दी.. योगी आदित्यनाथ ने सपा को अतीक अहमद को संरक्षण देने का आरोप लगाते हुए कहा कि ये लोग चोरी और सीनाजोरी करते हैं..फिर जो सीएम योगी ने कहा.. वो बात अतीक कभी नहीं भुला सकता है.. उन्होने कहा.. प्रयागराज की घटना के अपराधियों को मिट्टी में मिला देंगे। परिणाम स्वरुप अतीक के बेटे असद और शूटर गुलाम का एनकाउंटर कर दिया गया.. हजारों लोगों के घर उजाड़ने वाले अतीक का घर उजड़ गया.. वो अतीक जिसने कई लोगों को खून के आंसू रुलाया आज वो जीते जी मर रहा है।
मां का दिल नहीं पत्थर है! कोख से दिया पहले बेटी को जन्म, फिर बाथरुम में छोड़ कलयुगी मां हुई फरार