Muzaffarnagar, UP: सपनों की कीमत कोई उनसे पूछे जिन्होंने इसे पाने के लिए दिन-रात एक कर दिया हो, लेकिन मजबूरी के चलते आंखों के सामने सपना टूटते देखा हो। यूपी के मुजफ्फरनगर के रहने वाले अतुल कुमार की कहानी किसी फिल्मी संघर्ष से कम नहीं है। मेहनत और काबिलियत से उन्होंने IIT का कठिन एग्जाम पास किया, लेकिन 17,500 रुपये की फीस न भर पाने के कारण उनका एडमिशन लगभग छिन गया था। इस धक्का से हार मानने के बजाय, अतुल ने संघर्ष का रास्ता चुना और कोर्ट की लड़ाई के बाद अपने भविष्य की जीत हासिल की।
गांव से IIT तक का सफर: संघर्ष की कहानी
मुजफ्फरनगर जिले के टिटोड़ा गांव के रहने वाले Atul Kumar का परिवार बेहद गरीब है। बचपन से आर्थिक तंगी से जूझते हुए अतुल ने अपनी पढ़ाई पूरी की। दिन-रात मेहनत करके अतुल ने आखिरकार IIT का एग्जाम पास कर लिया और उन्हें IIT धनबाद में इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग की सीट अलॉट हुई।
सपना पूरा होने के इस ऐतिहासिक क्षण को अतुल का परिवार अपने लिए सौभाग्य समझ रहा था। लेकिन जैसे-जैसे एडमिशन की प्रक्रिया आगे बढ़ी, आर्थिक तंगी का भारी बोझ उनके सिर पर आ गया। 17,500 रुपये की फीस भरना उनके लिए किसी असंभव काम जैसा हो गया। घरवालों ने हर संभव कोशिश की, उधार लिया, रिश्तेदारों से मदद मांगी, लेकिन वक्त के साथ फीस जमा करने की आखिरी तारीख नजदीक आ गई।
अतुल की किस्मत के आखिरी 15 मिनट: छिनी हुई सीट
फीस जमा करने की अंतिम तारीख 24 जून थी। इस दिन दोपहर तक Atul Kumar के घरवाले पैसे इकट्ठे नहीं कर पाए थे। लेकिन आखिरकार शाम 4.45 बजे, वे पूरी राशि जुटाने में सफल रहे। परिवार के लिए यह एक बड़ी राहत थी। आनन-फानन में अतुल ने वेबसाइट पर जाकर फीस भरने की कोशिश की, लेकिन उनकी बदकिस्मती से वेबसाइट बंद हो गई। यह तकनीकी खामी उनके जीवन का सबसे बड़ा झटका साबित हुई। 5 बजे की डेडलाइन के बावजूद, सिस्टम ने 15 मिनट पहले ही काम करना बंद कर दिया और अतुल की सीट रद्द हो गई।
अतुल बताते हैं, “मैंने कई बार बैकिंग डिटेल्स डाली, लेकिन कुछ नहीं हुआ। वेबसाइट बार-बार एरर दिखा रही थी। सीट मेरे सामने होते हुए भी मैं फीस नहीं भर पाया।”
हार नहीं मानी: कोर्ट से मिला न्याय
यह वह क्षण था जिसने अतुल को तोड़ने के बजाय मजबूत बना दिया। अपनी मेहनत और सपनों को हारते हुए देखने के बजाय, अतुल ने न्याय के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया। पहले झारखंड हाई कोर्ट, फिर मद्रास हाई कोर्ट और आखिरकार मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।
Atul Kumar की कहानी उस जिद और हिम्मत की है, जो हारा नहीं करती। 24 सितंबर को मद्रास हाई कोर्ट ने अतुल के पक्ष में आदेश दिया। न्यायाधीश ने कहा, “आपके साथ अन्याय हुआ है और हम इसे ठीक करेंगे।” अंततः सुप्रीम कोर्ट ने भी अतुल के हक में फैसला सुनाया और आदेश दिया कि उनकी सीट उन्हें वापस दी जाए। अब अतुल एक बार फिर IIT धनबाद में इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर सकेंगे।
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गरीबी के खिलाफ जीत: अतुल की प्रेरक कहानी
Atul Kumar की यह जीत न केवल उनके व्यक्तिगत संघर्ष की कहानी है, बल्कि उन लाखों छात्रों के लिए एक प्रेरणा है जो अपने सपनों को गरीबी और मजबूरी के चलते हारते हुए देखते हैं। अतुल की हिम्मत और संघर्ष ने साबित कर दिया कि परिस्थितियां चाहे कितनी भी मुश्किल क्यों न हों, अगर हौसले बुलंद हों तो हर लड़ाई जीती जा सकती है।
इस पूरी घटना में अतुल के माता-पिता की भी अहम भूमिका रही। उन्होंने किसी भी हालात में हार नहीं मानी और बेटे के सपने को पूरा करने के लिए हर मुमकिन कोशिश की। हालांकि आर्थिक तंगी ने उनके कदम रोकने की कोशिश की, लेकिन उनकी मेहनत और संघर्ष के दम पर अतुल को उसका हक मिला।
सिस्टम की खामी पर सवाल
यह घटना तकनीकी खामियों और गरीब परिवारों के लिए मौजूद चुनौतियों को भी उजागर करती है। फीस भरने की डेडलाइन से पहले वेबसाइट का बंद हो जाना एक गंभीर समस्या है, जिस पर संबंधित संस्थानों को ध्यान देने की जरूरत है। अगर ऐसी समस्याओं का समाधान न किया गया तो कई होनहार छात्र अपने हक से वंचित रह सकते हैं।
अंत में जीत है अतुल की
Atul Kumar की कहानी एक उदाहरण है कि सपनों के रास्ते में आने वाली कठिनाइयों से घबराना नहीं चाहिए। कठिनाइयां अस्थायी होती हैं, लेकिन उनका सामना करने की हिम्मत और जज्बा ही इंसान को मजबूत बनाता है। अतुल की हिम्मत और संघर्ष ने उन्हें वह जीत दिलाई, जिसका वह हकदार थे। अब उनका सपना फिर से जिंदा हो गया है और वे अपने करियर की नई उड़ान भरने को तैयार हैं।