Janmashtami 2025: यूपी के इस गांव में है भगवान श्रीकृष्ण की ससुराल, माता रुक्मणी का यहीं से किया था हरण

भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन पर पूरे देश में धूम हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पावन पर्व भक्त उल्लास और श्रद्धा के साथ मना रहे हैं। राधा-कृष्ण के मंदिर दुल्हन की तरह सजे हुए हैं।

लखनऊ ऑनलाइन डेस्क। भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन पर पूरे देश में धूम हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पावन पर्व भक्त उल्लास और श्रद्धा के साथ मना रहे हैं। राधा-कृष्ण के मंदिर दुल्हन की तरह सजे हुए हैं। शहर-शहर और गांव-गांव राधा-कृष्ण की गूंज सुनाई दे रही है। मथुरा और वृंदावन भी कृष्ण की भक्ति में लीन हैं तो वहीं गिरधर गोपाल की ससुराल भी इस जश्न में पीछे नहीं है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक देवी रुक्मणी का मायका उत्तर प्रदेश के औरैया में है। ऐसे में पूरे जिले के लोग अपने प्रिय दामाद के जन्मदिन को लेकर खास तैयारी की हुई है। ढोलक की थाप, भक्ति गीतों की गूंज और मंदिर परिसर में भक्तों का उत्साह औरैया में देखने को मिल रहा है।

उत्तर प्रदेश के औरैया जनपद स्थित एरवाकटरा ब्लॉक के कुदरकोट कस्बा है। इसे भगवान श्रीकृष्ण की ससुराल के नाम से जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, द्वापर युग में यह स्थान कुन्दपुर कहलाता था। यह देवी रुक्मणी के पिता राजा भीष्मक की राजधानी थी। कहा जाता है कि देवी रुक्मणी हर रोज यहां स्थित माता गौरी के मंदिर में पूजा करने आती थीं। कथाओं के अनुसार, जब राजा भीष्मक ने रुक्मणी का विवाह श्रीकृष्ण से तय किया, तो उनके भाई रुकुम को यह बात मंजूर नहीं हुई। उसने रुक्मणी की शादी अपने साले शिशुपाल से करने का फैसला ले लिया। लेकिन रुक्मणी के दिल में सिर्फ भगवान श्रीकृष्ण ही बसे थे। माता रुक्मणी हरहाल में श्रीकृष्ण से शादी करना चाह रही थीं।

मंदिर के पुजारी बताते हैं कि तय दिन पर जब रुक्मणी नियम के मुताबिक माता गौरी की पूजा करने आईं तो श्रीकृष्ण ने उनका हरण कर लिया। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि जब शिशुपाल से रुक्मणी का विवाह तय हो गया, तब उन्होंने दूत भेजकर खुद का हरण करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण को संदेश भेजवाया। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण रुक्मणी का हरण करने कुंदनपुर पहुंच गए और अपने साथ द्वारका ले आए। मान्यता है कि उसी क्षण माता गौरी भी मंदिर से अदृश्य हो गईं। तभी से इस मंदिर को आलोपा देवी मंदिर के नाम से जाना जाने लगा। तब से कुदरकोट को कृष्ण की ससुराल के रूप में पहचान मिली। इसके बाद से ही यहां जन्माष्टमी का पर्व खास हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव पर भक्ति गीत, कीर्तन और झांकियों के साथ यह जगह जन्माष्टमी पर मथुरा-वृंदावन की तरह खूब सजाई जाती है और जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। दूर-दूर से श्रद्धालु यहां पहुंचकर अपने प्रिय दामाद श्रीकृष्ण का जन्मदिन मनाते हैं और भक्ति भाव में डूब जाते हैं। जन्माष्टमी पर अलोप मंदिर को सजाया गया है। मंदिर के पश्चिम दिशा में स्थित द्वापर कालीन महाराजा भीष्मक द्वारा स्थापित शिवलिंग है। जहां अब मंदिर बना हुआ है और ये मंदिर अब बाबा भयानक नाथ के नाम से जाना जाता है। मंदिर के पुजारी ने बताया कि यहां पर चैत्र व आषाढ़ माह की नवरात्रि में हर वर्ष मेला का आयोजन होता है। पिछले 116 बर्षो से भव्य रामलीला का आयोजन होता आ रहा है। दशहरा को रावण का वध होता है।

पुजारी बताते हैं कि मां अलोपा देवी मंदिर धरती तल से 60 मीटर की ऊंचाई पर खेरे पर बना हुआ है, हर साल फाल्गुनी अमावश्या को चौरासी कोसी परिक्रमा का आयोजन भी होता है। कुंडिनपुर जो बाद में कुंदनपुर के नाम से जाना जाता था। जब मुगलों का शासन हुआ तभी से इसका नाम कुदरकोट पढ़ गया। आज भी यहां राजा भीष्मक के 50 एकड़ में फैले महल के अवशेष स्पष्ट दिखाई देते है। आज के समय में जहां कुदरकोट में माध्यमिक स्कूल है वहां पर कभी राजा भीष्मक का निवास स्थान होता था और यहां पर रुक्मणि खेला करती थी। मुगलो ने इस नगर पर कब्जे के बाद इसके पूरे इतिहास को तहस नहस करने के लिए भौगोलिक स्थिति बदलने का भरसक प्रयास किया था। लेकिन यहां पर अवशेष व ग्रंथो में कुंडिनपुर का उल्लेख आज भी है।

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