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Kanpur में 26 सालों तक बजरंगबली की सुरक्षा में तैनात रही PAC, इसकी असल वजह जानकर दबा लेंगे दांतों तले अंगुली

बाबरी विध्वंस के बाद कानपुर में दंगे हुए, जिसकी आंच तकियापार्क की शिवसहांय गली में आ धमकी, हुआ कत्लेआम, पलायन कर गए हिन्दू।

Vinod by Vinod
December 26, 2024
in Latest News, TOP NEWS, उत्तर प्रदेश, कानपुर, क्राइम
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कानपुर। गंगा के किनारे बसे कानपुर को उत्तर प्रदेश की आर्थिक राजधानी कहा जाता है। इस शहर को अंग्रेजों ने अपना हेडक्वाटर बनाया और रेलवे स्टेशन, हॉस्पिटल, मिल, शिक्षण संस्थानों की सौगात दी। पर अंग्रेजों ने आजादी से पहले ही गंगा जमुनी तहजीब के लिए विख्यात कंपू के लोगों के दिलों में डरार डाल दी थी। जिसके बाद यहां कईबार दंगे हुए और सैकड़ों लोगों की जानें गई। कुछ ऐसा ही दंगा 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाए जाने के बाद कानपुर में हुआ। इंसानों के लहू से सड़कें लाल हो गई और फिर क्या था गलियां, मोहल्ले और लोगों के दिल बट गए। ऐसा ही दंगा तकियापुर में हुआ, जिसकी आंच ने हिन्दू समाज को यहां से पलायन को मजबूर कर दिया। 1992 से लेकर 2018 तक तकियापार्क में दोनों समुदाय के लोगों के बीच दुरियां बरकरार रहीं। यहां की रखवाली के लिए 26 साल तक पीएसी तैनात रही। मुस्लिम बाहूल्य इलाके में भगवान बजरंगबली का मंदिर था, जिस पर अरातकतत्वों की नजर पड़ी। जिसे ढहाने को लेकर उपद्रवी प्रयास करते पर पीएसी के कारण उनके मंसूबे कभी कामयाब नहीं हुए।

1992 में हुआ था दंगा

1992 में कारसेवकों ने विवादित ढांचा को ढहा दिया था। इसके बाद पूरे देश में संप्रदायिक दंगे शुरू हो गए और इसकी आंच कानपुर में भड़क गई। बजरिया थानाक्षेत्र के तकियापार्क में हजारों की संख्या में दगांई शिवसहांय गली में धावा बोल दिया। धार्मिक स्थलों को तोड़ने के साथ लोगों के घरों में आग लगा दी। सैकडों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। शिवसहांय गली में दंगे के बाद 400 हिन्दू परिवार यहां घर, जमीन और दुकान कम कीमत पर बेचकर चले गए। हालात यह हैं कि शिवसहांय मोहल्ले में मात्र एक हिन्दू परिवार ही बचा है, और इनके रखवाली के लिए सरकार ने इन्हीं के घर में पुलिस चौकी की व्यवस्था की है। 1992 से लेकर 2018 तक तकियापार्क में पीएसी की एक कंपनी तैनात रही। शिवसहांय गली में एक प्राचीन हनुमान जी का मंदिर है, जिसे ढहाए जाने के प्रयास किए गए पर एक हिन्दू परिवार के कारण अराकतत्वों मंसूबें पूरे नहीं हो सके।

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सड़क बन गई थी बार्डर

शिवसहांय मोहल्ले में दंगे के बाद एक समुदाय विशेष के लोगों ने हिन्दुओं के धर्म स्थल को क्षतिग्रस्त कर उसमें रखीं भगवान की मूर्तियों को ले गए थे। यहीं के रहने वाले शंकर निगम बताते हैं कि शिवसहांय मोहल्ले में 1992 के पहले करीब चार सौ परिवार रहा करते थे। छह दिसंबर को विवादिज ढांचा ढहाए जाने के बाद यहां पर दंगा हो गया। दंगे के दौरान कई दर्जन हिन्दू समुदाय के लोग मारे गए थे। डर के चलते यहां से हिन्दू परिवार पलायन कर गए और पूरी गली में सिर्फ हम ही हैं, जो बिना खौफ के रहते हैं। ताकिया पार्क सड़क के उस पार रहने वाले राजू यादव कहते हैं कि तकियापार्क दंगे के बाद बंट गया। एक सड़क बार्डर के तौर पर तब्दील हो गई। सड़क की एक तरफ मुस्लिम तो दूसरी तरफ हिन्दू रहते हैं। दोनों समुदाय के लोगों के बीच बातचीत बहुत कम होती है। योगी सरकार आने से पहले 26 साल तक 24 घंटे हमसब की रखवाली पीएसी के जवान करते थे।

पिछली सरकारों ने नहीं दिया साथ

शिवसहांय गली के मकान नंबर 88/41 में सिर्फ 2016 में एक हिन्दू परिवार रह रहा है। शिवसहांय के रहने वाले शंकर निगम ने बताया कि पूरे मोहल्ले से हिन्दू परिवार पलायन कर गए हैं। लेकिन वह अपनी जन्मभूमि में आज भी डटे हुए हैं। बताते हैं, योगी सरकार आने से पहले शाम ढलते ही हम घर के अंदर दुबक जाते थे। अराजकतत्व शाम होते ही घर के बाहर हुड़दंग व धार्मिक गालियां देते थे। नाते रिश्तेदारों के आने पर छतों से गोस्त के टुकड़े फेंकते थे। हमारे घर के सामने हनुमान जी का मंदिर था। दंगे से पहले हरदिन सुबह और शाम को भक्त जुटते थे। पूजा-अर्चना का दौर चलता था। दंगे के बाद मंदिर में अराजकतत्वों की नजर पड़ी। जबरन ताला जड़वा दिया गया। हमलोगों ने ताला तोड़ दिया तो अराजकतत्व मंदिर के बाहर मांस के टुकड़े फेंकने लगे। पीएसी के जवान तैनात होने के बाद हनुमान जी की कुछ हद तक सुरक्षा हो सकती। शंकर निगम बताते हैं कि पिछली सरकारों के कारण गली में ये हालात बने। हमें अपने अराध्य के लिए लड़ाई लड़नी पड़ी।

हाईकोर्ट के आदेश पर खोली गई पुलिस चौकी

शंकर निगम ने बताया कि बसपा सरकार के दौरान हमने तत्कालीन आईजी से मिलकर चौकी खोलने की मांग की थी, लेकिन मुस्लिम समुदाय के चलते पुलिस चौकी नहीं खुल सकी। फिर हम हाईकोर्ट में की शरण में गए। कोर्ट के आदेश के बाद आईजी ने मोहल्ले में पुलिस चौकी के लिए स्थानीय विधायक से जमीन की व्यवस्था करने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने अपने हाथ खड़े कर लिए। इसके बाद हम आईजी से मिलकर अपने घर में पुलिस चौकी खोलने की जगह दी, तब कहीं जाकर पुलिस चौकी खुल सकी। कायस्त परिवार के घर पर से पुलिस चौकी है। दो सब इंस्पेक्टर के अलावा एक दर्जन पुलिसकर्मी यहां तैनात रहते हैं। योगी सरकार आने के बाद गली से पलायन कर गए लोग अब मंगलवार और शनिवार को हनुमान मंदिर में आते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं। लोगों का आरोप है कि सपा के एक विधायक ने अराजकतत्वों का साथ दिया। हिन्दुओं के मकान औने-पौने दामों पर खरीदी।

योगी सरकार आई तो हटी पीएसी

दिसंबर 1992 के बाद से तकिया पार्क में सरकार ने पीएसी की एक प्लाटून तैनात कर दी। बावजूद शहर का यह इलाका कभी शांत नहीं रहा। 1990 से लेकर 2001 तक करीब छोटे बड़े मिलकार दो दर्जन से ज्यादा दंगे हो चुके हैं। आशीष यादव बताते हैं कि शंकर निगम के घर के सामने प्राचीन हनुमान जी का मंदिर था। जिस पर 1992 के दंगे के बाद एक समुदाय के लोगों ने जबरन ताड़ा जड़ दिया। तब निगम परिवार आगे आया। उस समय में प्रदेश में सपा की सरकार थी। परिवार सीएम से मिला। पर सुनवाई नहीं हुई। कोर्ट के परिवार की तरफ से याचिका दायर की गई। कोर्ट के आदेश के बाद पुलिस ने मंदिर से ताला खुलवाया। इसके बाद निगम परिवार हनुमान जी की पूजा-अर्चना करने लगा। डर के कारण दूसरे लोग कभी भी मंदिर के पास नहीं गए। पीएसी के होने के बावजूद एक समुदाय के लोग गली के अंदर आने नहीं देते थे। योगी सरकार आई तो पीएसी हटी। मंदिर में पूजा-अर्चना का दौर शुरू हुआ।

1975 में हुआ दूसरा सबसे बड़ा दंगा

1931 के बाद शहर में दूसरा सबसे बड़ा दंगा 1975 में तकिया पार्क में हुआ था। ये दंगा झंडा फहराने को लेकर हुआ था। तब कैंट से आर्मी को बुलवाना पड़ा था। एक माह तक मोहल्ले में कर्फ्यू लगा रहा। 1977 में तकिया पार्क के लोग एक बार फिर 15 अगस्त को ध्वजा रोहण के लिए सुबह के पहर निकले, लेकिन जैसे ही मुस्लिम समुदाय को इसकी भनक लगी तो वह मौके पर आकर विरोध करने लगे। हिन्दु अपने को घिरता देख पार्क से चले गए, लेकिन 16 अगस्त की सुबह करीब 4 बजे झंडा रोहण कर दिया। इसके बाद ऐसा दंगा भड़का कि पांच माह तक इलाके में सेना के तैनात करना पड़ा था। सरकार ने इसके बाद तकिया पार्क में तिरंगा फहराने पर रोक लगा दी। 41 साल तक तकिया पार्क में तिरंगा नहीं फहराया गया। 2018 में यहां फिर से तिरंगा फहराया गया।

Tags: 1992 Kanpur riotsBajrangbaliHindu exoduskanpur
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Vinod

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