Ballia politics/Mohsin Khan: बलिया की राजनीति में इस समय ऐसा महाभारत छिड़ा है, जिसमें एक ओर जनता के बीच जनसेवा और सादगी की मिसाल बने बीएसपी विधायक उमाशंकर सिंह खड़े हैं, तो दूसरी ओर सत्ता के गलियारों में प्रभावशाली, बीजेपी के मंत्री दया शंकर सिंह। रसड़ा और बलिया नगर विधानसभा सीटों से निर्वाचित ये दोनों दिग्गज नेता अब जिले की राजनीति में वर्चस्व की जंग लड़ रहे हैं। हाल ही में कठार नाले पर बने पुल के उद्घाटन को लेकर दोनों में तकरार ने इस टकराव को खुले मंच पर ला खड़ा किया है। अब सवाल ये है कि बलिया की राजनीति में असली दमदार कौन है—जनता का सेवक या सत्ता का सिपहसालार?
परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह द्वारा पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों को बसपा विधायक के करीबी कहे जाने पर बसपा विधायक ने किया पलटवार।
हम अगर परिवहन मंत्री के कारनामों को उजागर करने लगेंगे तो उनको कहीं छुपने की जगह नहीं मिलेगी ।
बसपा विधायक ने कहा बार-बार मौका नहीं मिलेगा मौका… pic.twitter.com/mRE0LjibVu
— राजू गुप्ता (@8E31kYZlXjGW2Oy) August 7, 2025
भीड़ नहीं, भरोसे का नाम
उमाशंकर सिंह सिर्फ एक विधायक नहीं, बल्कि Ballia में जनसेवा की परंपरा के प्रतीक बन चुके हैं। वह बीएसपी के इकलौते विधायक हैं, लेकिन रसड़ा से उनकी पकड़ इतनी मजबूत है कि विरोधी भी उन्हें कमतर आंकने की भूल नहीं करते। 2016 में 351 जोड़ियों की सामूहिक शादी से लेकर मुफ्त वाई-फाई हॉटस्पॉट की स्थापना तक, उनकी राजनीति की दिशा साफ है—जनता से जुड़ाव। उनका व्यक्तित्व सादगीभरा है, और यही कारण है कि उन्हें गरीबों का मसीहा कहा जाता है।
हाल ही में अमेरिका से इलाज कराकर लौटे उमाशंकर सिंह ने अपने बेटे के रिसेप्शन में डेढ़ लाख लोगों के लिए भोज रखवाया। खेसारी लाल यादव की मौजूदगी और भीड़ की संख्या ने यह साफ कर दिया कि उमाशंकर की लोकप्रियता महज़ रसड़ा तक सीमित नहीं रही।
सत्ता का चेहरा, संगठन का विश्वास
दूसरी ओर हैं बीजेपी के ताकतवर नेता और उत्तर प्रदेश सरकार के परिवहन मंत्री दया शंकर सिंह। Ballia नगर से विधायक और पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष रह चुके दया शंकर सिंह का राजनीतिक रसूख ज़मीनी है और प्रशासनिक भी। वह कठोर बयानों, बेबाक तेवरों और अधिकारियों को खुलेआम फटकारने के लिए जाने जाते हैं। हाल ही में पीडब्ल्यूडी अधिकारियों पर भड़कने की उनकी घटना सुर्खियों में रही, जिसमें उन्होंने पुल उद्घाटन में खुद को नजरअंदाज किए जाने पर सीधे आरोप लगाए—जो सीधे उमाशंकर सिंह पर इशारा था।
हालांकि, उनके खिलाफ दर्ज नौ आपराधिक मामले और 2016 में मायावती पर की गई विवादित टिप्पणी जैसी घटनाएं उनकी छवि पर दाग भी लगाती हैं। बावजूद इसके, मंत्री पद का रुतबा और बीजेपी की सत्ता उन्हें जिले की राजनीति में ऊंचा कद देता है।
टकराव की जमीन: पुल से शुरू, सियासत तक
कठार नाले पर बने पुल का उद्घाटन बलिया की राजनीति में आग का काम कर गया। दया शंकर सिंह का आरोप था कि पुल का उद्घाटन उनकी जानकारी के बिना कर दिया गया, और यह सारा खेल उमाशंकर सिंह के प्रभाव का नतीजा है। इसके जवाब में उमाशंकर ने भी सधी हुई लेकिन तीखी प्रतिक्रिया दी—“अगर मंत्री जी के कारनामे उजागर कर दिए जाएं तो उन्हें छुपने की जगह नहीं मिलेगी।” इस बयान ने साफ कर दिया कि अब लड़ाई केवल वर्चस्व की नहीं, बल्कि प्रतिष्ठा की भी बन चुकी है।
कौन है वाकई ताकतवर?
- जनता से जुड़ाव: उमाशंकर सिंह का जनाधार गहरा है, खासकर दलित और पिछड़े वर्गों में। रसड़ा में लगातार जीतें और सामाजिक गतिविधियों ने उन्हें जनता का चहेता बना दिया है।
- सत्ता और संगठन: दया शंकर सिंह के पास मंत्री पद और बीजेपी जैसा मजबूत संगठन है। वह फैसले लेने की ताकत रखते हैं और प्रशासन पर प्रभाव डाल सकते हैं।
- छवि और विवाद: उमाशंकर की छवि साफ-सुथरी है, जबकि दया शंकर सिंह को लेकर पुराने विवाद आज भी राजनीतिक बहस का हिस्सा हैं।
- भविष्य की रणनीति: उमाशंकर सिंह ने अभी से सामाजिक मोर्चों को मजबूत करना शुरू कर दिया है, जबकि दया शंकर संगठनात्मक बैठकों और विकास कार्यों में जुटे हैं। दोनों 2027 के लिए कमर कस चुके हैं।
दबदबा किसका?
Ballia की राजनीति एक दिलचस्प मोड़ पर है। जहां एक ओर उमाशंकर सिंह का जनसेवा आधारित मॉडल उन्हें जनता के दिलों में जगह दिला रहा है, वहीं दूसरी ओर दया शंकर सिंह का सत्ता आधारित प्रभाव उन्हें प्रशासनिक ताकत देता है। लेकिन जब बात विश्वसनीयता, छवि और जनता से जुड़ाव की आती है, तो उमाशंकर सिंह थोड़े आगे नजर आते हैं।
हालांकि, दया शंकर सिंह सत्ता में हैं, पर विवादों से दूर रहने की कला उन्हें उतना लाभ नहीं दे पाती जितना एक साफ-सुथरी छवि देती है। फिलहाल, बलिया में दोनों नेताओं का दबदबा है, लेकिन जन-विश्वास की कसौटी पर उमाशंकर सिंह थोड़ा भारी पड़ते दिखते हैं।
2027 की राह यहीं से तय होगी—पुल की रार से लेकर जनता के दरबार तक।