Moshin khan/Bulandshahr : हिन्दू धर्म में एक संस्कार ये भी है कि बुजुर्ग के निधन के बाद तेरहवीं पर भोज कराया जाता है। तेहरवीं पर हवन पूजन, ब्रहम भोज और रस्म पगड़ी का भी रिवाज होता है। लेकिन सोचिए कि अगर तेहरवीं भोज का ही विरोध हो जाए और ब्रहम भोज का विरोध करने वाला कोई ओर नहीं बल्कि मरने वाले के अपने ही हो तो फिर आप क्या कहेंगे। आखिरकार ऐसा क्या हो गया कि पिता की मौत के बाद जवान बेटों ने तेरहवीं भोज का विरोध कर दिया और पिता की तेरहवीं पर कुछ ऐसा कर दिया कि पूरे इलाके में चर्चाएं हो गई।
पिता की अंतिम इच्छा के लिए बेटे ने किया ये काम
पिता की अंतिम इच्छा को पूरा करने के लिए बेटों ने तेहरवीं पर लाखों रूपया खर्च करके गरीब और जरूरतमंदों की भरपूर मदद की है। दरअसल बुलन्दशहर के पहासू थानाक्षेत्र के गांव करौरा के रहने वाले बुजुर्ग फूलचंद आर्या का देहान्त हो गया था। लेकिन उन्होंने अपने बेटे संजय से अपनी अंतिम इच्छा ज़ाहिर की और कहा कि मेरी मृत्यु के बाद मृत्यु भोज नहीं कराया जाए, बल्कि गरीबों और जरूरतमंदों में जितना हो सके उनकी जरूरत के हिसाब से दान दिया जाए।
200 परिवारों को राशन, 1400 स्कूली बच्चों को टिफिन
और हुआ भी ऐसे ही। फूलचंद आर्या के देहान्त के बाद उनके बेटे ने तेरहवीं भोज का विरोध किया और गांव और आसपास के गरीबों को जरूरत के हिसाब से दान दिया। जिसमें ट्राई साइकिल, ई-रिक्शा, सिलाई मशीन, 200 परिवारों को एक महीने का राशन, 1400 स्कूली बच्चों को टिफिन के साथ खाना, एक गरीब महिला को ब्यूटी पार्लर खुलवाया गया।
अंतिम इच्छा से कई चेहरों पर आई खुशी
वैसे तो तेरहवीं पर भोज का रिवाज बरसो से चला आ रहा है। साथ ही ऐसा करना धार्मिक मान्यता भी है, लेकिन उसके साथ ही अंतिम इच्छा को पूरा करने की परंपरा भी चली आ रही है, लिहाजा यूपी के बुलंदशहर की ये अनोखी तेरहवीं भले ही चर्चा का विषय बनी हुई हो लेकिन इतना जरूर है कि स्व. फूलचंद आर्या की अंतिम इच्छा ने गरीब और बेबस चेहरों को ना केवल खुशी दी बल्कि उनके सहारे का जरिया भी बन गई।