लखनऊ ऑनलाइन डेस्क। चंबल की सबसे खूंखार लेडी डकैत कुसुमा नाइन का लंबी बीमारी के चलते लखनऊ के एसपीजीआई में इलाज के दौरान मौत हो गई। लेडी डकैतन इटावा की जेल में बंद थी। उसे टीबी के अलावा कई अन्य बीमारियों ने घेरा हुआ था। कुसुमा नाइन का शव उसकी ससुराल लाया गया। पहले पति ने शव को मुखाग्नि दी तो वहीं औरैया के अस्ता गांव में डकैतन की मौत पर होली-दिवाली मनाई गई। ग्रामीणों ने घरों पर घी के दीपक जलाए। एक-दूसरे को मिठाई खिलाई और रंग-गुलाल लगाकर खुशी मनाई। कुसुमा नाइन को चंबल की बिल्ली के नाम से भी पुकारा जाता था। डकैतन जिंदा इंसानों की अांख नोच लिया करती थी।
टीबी की बीमारी के चलते कुसुमा की मौत
इटावा जेल में हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रही पचनद के जंगलों की कुख्यात डकैत कुसुमा नाइन की लखनऊ में इलाज के दौरान मौत हो गई। कुसुमा नाइन पिछले कई माह से टीबी की बामारी से पीड़ित थी। इटावा जेल से उसे सैफई मेडिकल कॉलेज में भर्ती करवाया गया। हालात गंभीर होने पर डॉक्टर्स ने कुसुमा को एसपीजीआई रेफर कर दिया। जहां रविवार को डकैतन ने आखिरी सांस ली। कुसुमा नाइन का शव उसके ससुराल लाया गया। जहां कुसुमा के पहले पति ने उसके शव का अंतिम संस्कार किया। डकैतन पर हत्या सहित करीब दो दर्जन मामले दर्ज थे। देश में जितनी भी दस्यु सुंदरियां हुई हैं, उनमें कुसमा सबसे खूंखार मानी जाती थी।
14 लोगों की थी हत्या
चंबल के बीहड़ों में करीब 25 साल तक दहशत फैलाने वाली कुसमा नाइन ने 1984 में औरैया के मई अस्ता गांव में 12 मल्लाहों को लाइन में खड़ा कर गोली मार दी थी। कुसमा ने इसे फूलनदेवी के बेहमई कांड का प्रतिशोध बताया था। कुसुमा नाइन की मौत के बाद नरसंहार वाले गांव अस्ता में जश्न का माहौल है। ग्रामीणों ने घी के दीपक जलाए। होली के साथ दिवाली मनाई। ग्रामीणों ने कहा, अब उन 14 लोगों की आत्मा को शांति मिलेगी, जिनका कुसुमा ने नरसंहार किया था। गांव वालों का कहना है कि हमें देर से ही सही, इंसाफ तो मिल गया। ग्रामीणों ने बताया कि कुसुमा नाइन ने 12 लोगों को गोलियों से भून दिया था। साथ ही दो लोगों को जिंदा जला दिया था। उसके साथियों ने दो लोगों की आंखें भी निकाल ली थीं।
कौन थी कुसुमा नाइन, कैसे बनी डकैत
1964 में जालौन जिले के टिकरी गांव में जन्मी कुसुमा नाइन का बचपन रईसी में बीता। पिता गांव के प्रधान और सरकारी राशन दुकान के मालिक थे। कुसुमा की उम्र जब 15 वर्ष की थी तब वह पड़ोसी माधव मल्लाह को दिल दे बैठी। पिता को जब कुसुमा के प्यार के बारे में जानकारी हुई तो उसने बेटी पर नजर रखनी शुरू कर दी। तभी मौका पाकर कुसुमा अपने प्रेमी के साथ घर से भाग गई। पिता की शिकायत पर पुलिस ने कुसुमा को दिल्ली से पकड़ लिया। पिता ने आनन-फानन में कुसुमा का शादी कर दी। शादी के बाद भी वह अपने प्रेमी से मिलती थी। प्रेमिका की शादी दूसरे के साथ हो जाने के कारण माधव मल्लाह डाकू बन गया। वह गैंग के साथ आया और कुसुमा को उसके पति से छीनकर बीहड़ों में ले गया। यहीं से उसकी जिंदगी की दिशा और दशा दोनों बदल गई।
फिर लालाराम की गैंग में शामिल हुई कुसुमा
कुसुमा नाइन पहले विक्रम मल्लाह गैंग में रही। प्रेमी माधव मल्लाह के साथ जंगल में उसने शादी कर ली। गैंग में फूलनदेवी भी थी। फूलनदेवी और कुसुमा नाइन के बीच अनबन हो गई। जिसके कारण विक्रम मल्लाह की गैंग को कुसुमा ने छोड़ दिया और लालाराम से हाथ मिला लिया। महज कुछ माह के अंदर कुसुमा लालाराम की सबसे भरोसेमंद सदस्य बन चुकी थी। कुसुमा नाइन की क्रूरता के किस्से चंबल में दहशत की तरह फैले थे। जो भी उसके गिरोह की गिरफ्त में आता, उसे जिंदा नरक भोगना पड़ता। कभी वह अपहरण किए गए लोगों के नाखून उखाड़ देती, तो कभी जलती लकड़ी से उनके शरीर को दाग देती। कुसुमा जंगल में अपहरण उद्योग को जन्म दिया। तभी फूलन देवी ने कानपुर देहात के बेहमई गांव में 18 लोगों की हत्या कर दी।
ग्रामीणों ने बनवाया शहीद चबूतरा
नरसंहार का बदला लेने के लिए कुसुमा गैंग के साथ जंगल से निकल कर औरैया के आस्था गांव पहुंची। यहां पर उसने मल्लाह समाज के 12 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी। दो को जिंदा जलाकर मौत के घाट उतार दिया। नरसंहार में जान गंवाने वालों में भगवानदीन, धनीराम, महादेव, लक्ष्मीनारायण, लालाराम, छोटेलाल, शंकर, रामशंकर, बांकेलाल, रामेश्वरदयाल, दर्शनलाल और शंभूदयाल शामिल थे। शिवकुमारी और उनका पांच साल का बेटा मुनेश घर में लगी आग में जिंदा जल गए थे। नरसंहार के बाद सरकार ने गांव में ’शहीद चबूतरा’ बना दिया। लेकिन जो परिवार उजड़े, वे कभी अपनी जिंदगी पहले जैसी नहीं जी सके।