Consumer Council: उपभोक्ता परिषद का खुलासा: घाटा कम होने के बावजूद निजीकरण पर जोर, उठे सवाल

उपभोक्ता परिषद और बिजली कर्मियों ने सुधारों के बावजूद निजीकरण के फैसले पर सवाल उठाए हैं। उनका मानना है कि यह न केवल कर्मचारियों के अधिकारों को प्रभावित करेगा, बल्कि ऊर्जा क्षेत्र की स्थिरता को भी खतरे में डालेगा।

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Consumer Council: राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस के अवसर पर मंगलवार को उपभोक्ता परिषद ने बिजली क्षेत्र में निजीकरण की प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए हैं। Consumer Council के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय की वार्षिक परफॉर्मेंस रिपोर्ट का हवाला देते हुए खुलासा किया कि दक्षिणांचल और पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम सहित देश की पांच प्रमुख बिजली कंपनियों ने 2022-23 में 1000 करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज कम किया। इन कंपनियों में सुधार के बावजूद निजीकरण की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश ने 6500 करोड़ रुपये की इक्विटी जुटाकर वित्तीय सुधार का उदाहरण पेश किया है, लेकिन पीपीपी मॉडल में नेगेटिव इक्विटी वैल्यूएशन ने इसे विवादित बना दिया है।

बिजली कंपनियों के सुधार के बावजूद निजीकरण क्यों?

अवधेश कुमार वर्मा ने रिपोर्ट के आधार पर बताया कि दक्षिणांचल और पूर्वांचल सहित अन्य कंपनियां कर्ज और एटीएण्डसी लॉस में कमी लाने में सफल रही हैं। अप्रैल 2022 से मार्च 2023 तक उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक इक्विटी जुटाने के बावजूद निजीकरण पर जोर दिया जा रहा है। वर्मा ने इसे सुधार की अनदेखी बताते हुए कहा कि पारदर्शी नीतियों के जरिये बिजली कंपनियों की स्थिति में और सुधार किया जा सकता है। उन्होंने पीपीपी मॉडल के मसौदे को गंभीर बताते हुए इसकी जांच की मांग की।

काली पट्टी बांधकर विरोध की तैयारी

उत्तर प्रदेश पावर ऑफिसर्स एसोसिएशन ने भी पीपीपी मॉडल के तहत निजीकरण का विरोध किया है। संगठन ने ऐलान किया कि नए साल के पहले दिन इंजीनियर और कर्मचारी काली पट्टी बांधकर काम करेंगे। हालांकि, उपभोक्ता सेवाओं में किसी प्रकार की बाधा नहीं आने दी जाएगी। एसोसिएशन के नेताओं ने कहा कि मसौदे को तैयार करते समय संगठनों से राय नहीं ली गई, जो पारदर्शिता और आपसी सहमति के अभाव को दर्शाता है।

Consumer Council एसोसिएशन ने पावर कॉर्पोरेशन प्रबंधन को चेतावनी दी है कि बिना कर्मचारियों और अभियंताओं की सहमति के निजीकरण की प्रक्रिया औद्योगिक अशांति को जन्म देगी। संगठन ने फैसले पर पुनर्विचार की अपील की और इसे ऊर्जा क्षेत्र के लिए नुकसानदेह बताया।

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