आगामी लोकसभा चुनाव के लिए जहाँ भाजपा प्रधानमंत्री ने मोदी के नौ साल के कार्यकाल को लेकर जनता के बीच घर घर तक लाभार्थियों को लेके जा रही है। वहीं दूसरी तरफ़ बहुजन समाज पार्टी कांग्रेस और समाजवादी पार्टी विद दलित वोट को अपनाने के लिए रणनीति बनाते हुए नज़र आ रहे हैं।
उत्तर प्रदेश की राजनीति को देखा जाए तो आगामी लोकसभा 224 के चुनाव के लिए उत्तर प्रदेश में जीत का मूल मंत्र का आधार दलित वोट बैंक ही होगा जहाँ पहले पहले बसपा ने दलित वोट बैंक का सबसे अधिक माना जाता था वहीं अब भाजपा सपा और कांग्रेस की नज़र भी उत्तर प्रदेश के दलित वोट बैंक पर है
आख़िर क्यों है उत्तर प्रदेश में दलित वोट बैंक की कितनी अहमियत
देखा जाए तो उत्तर प्रदेश में लोकसभा सीटों की संख्या के हिसाब से आधा शीत सत्रः अब सीधे ही हैं मगर वोट प्रतिशत के साथ ही देखेंगे तो क़रीब 22 प्रतिशत वोट दलित कहा रहता है। उसमें भी अगर देखेंगे तो पश्चिम में आने वाले जाटों की संख्या दलित वोट बैंक में सबसे अधिक है। और अगर राजनीति वर्ष देखेंगे तो पिछले 2014 के चुनाव में भाजपा ने सभी आरक्षित सीटें जीती थी उस वही द्वारा उल लिस्ट में मात्र 15 सीटों पर ही जीत हासिल की थी।
बसपा को अपनी दलित वोट बैंक पर साख बचाने की चुनौती है एक तब देखा जा रहा है। जहाँ भाजपा सपा और कांग्रेस दलित वोटरों को रिझाने के लिए लगी है। वहीं बसपा के सामने अपने वोट बैंक को सेमारी से बचाने के एक बड़ी चुनौती रहेगी माना जा रहा है, कि 222 के विधानसभा चुनाव में बसपा कहा दलित वोट बैंक क़रीब 10 प्रतिशत नीचे लुढ़क गया था इसमें सबसे बड़ा योगदान था मुस्लिमों का बसपा से दूरी करना
जहाँ एक तरफ़ भाजपा और सपा का अब UP में दलित वोट बैंक को रिझाने के लिए आने प्रयास कर रही है तो वहीं कांग्रेस अपने पुराने दलित वोट बैंक को साधने के लिए 1 बार फिर से मैदान में उतरती नज़र आ रही है। उत्तर प्रदेश में गर्म क्षेत्रीय समीकरणों को देखेंगे तो कहीं न कहीं पश्चिम में जाटव और पूरब में तमाम दलित जातियों को साथ लाने का प्रयास किया जा रहा है।
भाजपा को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसी जाट चेहरे को उतारना होगा तो वहीं पूर्वांचल में तमाम दलित समुदाय से आने वाले किसी चेहरे पर दाँव लगाना होगा भाजपा इस समीकरण पर भी काम करती हुई नज़र आ रही है वहीं दूसरी ओर समाजवादी पार्टी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रालोद के साथ गठबंधन करके मैनपुरी अब खतौली में भाजपा को शिकायत दी थी ये समीकरण घर आके बनता है तो निश्चित तौर से इस बार भी दलित वोट उत्तर प्रदेश में निर्णायक स्थिति में रहेगा हालाँकि देखना होगा कि दलित वोट बैंक अब किसकी तरफ़ जाता है जाता है।