एनफ़ोर्समेंट डायरेक्टरेट (ED) की ताज़ा कार्रवाई में कोडीन युक्त कफ सिरप के अवैध कारोबार से जुड़े बड़े नेटवर्क की परतें खुलती जा रही हैं। एजेंसी को शुभम जायसवाल के ऑफिस और गोदामों की तलाशी में 189 संदिग्ध/फर्जी फर्मों से जुड़े दस्तावेज मिले हैं, जिनका इस्तेमाल कोडीन सिरप के काले कारोबार की रकम को वैध लेनदेन दिखाने के लिए किया जा रहा था।
189 फर्जी/शेल फर्मों का जाल कैसे बेनकाब हुआ?
ED ने कोडीन–आधारित कफ सिरप के बड़े रैकेट पर दर्ज कई FIR और पुलिस केस के आधार पर PMLA (Prevention of Money Laundering Act) के तहत ECIR दर्ज की है।
लखनऊ ज़ोन की टीम ने उत्तर प्रदेश, झारखंड और गुजरात में कई ठिकानों पर छापे मारे, जिनमें शुभम जायसवाल से जुड़े दफ्तरों, गोदामों व सहयोगियों के परिसरों से बड़ी संख्या में कंपनी रजिस्ट्रेशन, बैंक खाते, GST इनवॉइस, ई–वे बिल और डिजिटल लेजर ज़ब्त किए गए।
एक छापे में जांच अधिकारियों के हाथ 189 ऐसी फर्मों से जुड़े कागज़ात लगे, जिनमें से कई “पेपर पर मौजूद शेल कंपनियाँ” लग रही हैं; इन्हें कथित तौर पर फर्जी बिलिंग, layering (पैसे को घुमा–फिराकर दिखाना) और hawala जैसे तरीकों से काले धन को वैध दिखाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था।
ED अब इन फर्मों के बैंक अकाउंट, GST फाइलिंग, ITR, प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन और मालिकों की पहचान की फोरेंसिक जांच कर रही है, ताकि यह पता चल सके कि असली मालिक और लाभार्थी (beneficial owners) कौन हैं और कितनी रकम मनी लॉन्डरिंग के ज़रिए घुमाई गई।
शुभम और भोला प्रसाद जायसवाल की भूमिका क्या है?
UP पुलिस की पहले की जांच और अब ED की जांच में वाराणसी–आधारित दवा व्यापारी शुभम जायसवाल को इस बहु–राज्यीय कोडीन सिरप सिंडिकेट का कथित मास्टरमाइंड बताया गया है, जबकि उसके पिता भोला प्रसाद जायसवाल (शैली ट्रेडर्स, रांची के मालिक) को सप्लाई चेन और बिलिंग नेटवर्क का अहम हिस्सेदार माना गया है।
जांच में सामने आया कि शुभम और भोला प्रसाद के नाम पर, या उनके परिवार/सहयोगियों से जुड़े नामों पर कई फर्में रजिस्टर्ड थीं, जिनका इस्तेमाल कोडीन–युक्त सिरप की बड़े पैमाने पर खरीद–फरोख्त “कागज़ों पर” दिखाने के लिए किया जाता था, जबकि असल माल अलग–अलग राज्यों और यहां तक कि नेपाल–बांग्लादेश तक तस्करी के ज़रिए भेजा जा रहा था।
उदाहरण के तौर पर, शैली ट्रेडर्स (रांची) से लाखों बोतलें अलग–अलग डिस्ट्रीब्यूटर और मेडिकल फर्मों को कागज़ पर दिखाई गईं, जबकि पुलिस व ड्रग विभाग की जांच में यह माल फर्जी लाइसेंस, नकली ई–वे बिल और बोगस फर्मों के नाम पर ट्रांसफर होता पाया गया।
कुल मिलाकर, अब तक की पुलिस और ED जांच में कई ज़िलों से करीब 3.5–4 लाख से ज्यादा कोडीन सिरप की बोतलें ज़ब्त की जा चुकी हैं और 30 से अधिक लोग गिरफ़्तार हो चुके हैं, जबकि शुभम जायसवाल अब भी फरार बताया जा रहा है; ED ने उसे पूछताछ के लिए समन जारी किए हैं और लुकआउट/रेड कॉर्नर नोटिस की भी प्रक्रिया चल रही है।
रैकेट कैसे काम करता था?
जांच एजेंसियों के मुताबिक यह “साधारण मेडिकल मिसयूज़” नहीं, बल्कि कई राज्यों में फैला संगठित नेटवर्क है।
कोडीन–युक्त कफ सिरप को ड्रग लाइसेंस और दवा कंपनियों के वैध ऑर्डर के नाम पर फैक्ट्रियों से उठाया जाता था।
कागज़ों पर माल को विभिन्न जिलों के मेडिकल स्टोर और डिस्ट्रीब्यूटर को “बिक चुका” दिखाया जाता था, जबकि असल में बोतलें गोदामों से सीधे हाई–डिमांड इलाकों (UP, बिहार, झारखंड, बंगाल, MP, नेपाल, बांग्लादेश) में नशे के तौर पर सप्लाई की जाती थीं।
इन फर्जी सेल्स और ट्रांसपोर्ट को कवर करने के लिए बड़ी संख्या में शेल कंपनियाँ–फर्में खड़ी की गईं, जिनके ज़रिए नकली GST इनवॉइस, ई–वे बिल और बैंक ट्रांज़ैक्शन दिखाकर करोड़ों रुपये का अवैध मुनाफा सिस्टम के भीतर वैध कमाई जैसा दिखाया जाता था।
ED का अनुमान है कि यह रैकेट बीते कई साल से सक्रिय है और कोडीन सिरप के अवैध कारोबार से सौ–सौ करोड़ रुपये से अधिक का टर्नओवर हो सकता है; PMLA केस इसी “proceeds of crime” को ट्रैक करने और ज़ब्त करने के लिए दर्ज किया गया है।



