कांग्रेस की ओर से चुनाव आयोग में बड़े स्तर पर सुधारों की मांग को समाजवादी पार्टी अध्यक्ष और सांसद अखिलेश यादव ने खुला समर्थन दे दिया है और खास तौर पर यूपी सहित कई राज्यों में BLOs (बूथ लेवल ऑफिसर्स) की मौत का मुद्दा संसद में जोरदार ढंग से उठाया है। विपक्ष का आरोप है कि SIR (Special / Supervisory Intensive Revision) ड्राइव के दौरान अव्यावहारिक टारगेट और दबाव ने यह मानवीय संकट पैदा किया है।
कांग्रेस की सुधार मांग और अखिलेश का समर्थन
कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने लोकसभा में चुनाव सुधार बहस के दौरान चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए SIR प्रक्रिया की कानूनी वैधता, EVM की अधिक जांच, और मुख्य चुनाव आयुक्त व चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव जैसी मांगें उठाईं। तिवारी ने कहा कि जब तक आयोग की नियुक्ति में कार्यपालिका (सरकार) का ‘वीटो’ रहेगा, जनता का भरोसा पूरी तरह बहाल नहीं हो सकता।
अखिलेश यादव ने इन्हीं मांगों का समर्थन करते हुए X (ट्विटर) और मीडिया बयानों में कहा कि चुनाव आयोग को “सिर्फ सुधार नहीं, बुनियादी रूप से रूपांतरण” की ज़रूरत है और उस पर काम कर रहे हर तरह के राजनीतिक दबाव खत्म करने होंगे, तभी लोकतंत्र बचाया जा सकेगा।
BLOs की मौत और SIR पर संसद में सवाल
उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में मतदाता सूची संशोधन (SIR) के दौरान BLOs की संदिग्ध मौतों और आत्महत्याओं ने राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है। रिपोर्टों के मुताबिक, यूपी के मुरादाबाद, गोंडा, फतेहपुर समेत कई जिलों में BLO या संबंधित स्टाफ के आत्महत्या के मामलों को परिजनों और विपक्ष ने SIR के दबाव से जोड़ा है।
सर्दियों के सत्र में लोकसभा व राज्यसभा, दोनों में विपक्षी दलों ने यह मुद्दा उठाया और मांग की कि SIR के कामकाज की समीक्षा, टारगेट सिस्टम पर रोक और मृत BLOs के परिवारों को मुआवजा व नौकरी दी जाए।
अखिलेश यादव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस और संसद में कहा कि BLOs से रात–दिन मशीनों की तरह काम कराना अमानवीय है और यह “सिर्फ तकनीकी अभ्यास नहीं, मानवीय त्रासदी” बन चुका है। उन्होंने आरोप लगाया कि SIR के नाम पर मतदाताओं के नाम बड़े पैमाने पर काटने और ‘वोट चोरी’ की ज़मीन तैयार की जा रही है।
मुआवज़ा, जवाबदेही और आगे की राह
समाजवादी पार्टी अध्यक्ष ने चुनाव आयोग से मांग की है कि SIR से जुड़े दबाव के कारण जान गंवाने वाले हर BLO/कर्मी के परिवार को कम से कम 1 करोड़ रुपये का मुआवज़ा और एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाए, जबकि SP खुद हर मृतक के आश्रित को 2 लाख रुपये आर्थिक सहायता देने का ऐलान कर चुकी है।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि BLOs की ट्रेनिंग अधूरी है, नगर निकाय सफाई कर्मियों तक को सहायक बनाकर दबाव में काम कराया जा रहा है और SIR प्रोसेस को प्राइवेट कंपनियों के हवाले कर चुनावी प्रक्रिया को “आउटसोर्स” किया जा रहा है।
इधर सुप्रीम कोर्ट ने भी हाल ही में BLOs की मौतों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि राज्यों को उनके कामकाज की स्थितियों, मानसिक स्वास्थ्य और छुट्टी के अधिकार पर गंभीरता से ध्यान देना होगा और बीमार या तनावग्रस्त BLO को तुरंत राहत देनी चाहिए। यह संकेत है कि अब संसद, अदालत और विपक्ष – तीनों स्तरों पर चुनाव आयोग और राज्यों से पारदर्शिता, मानवीय संवेदनशीलता और व्यापक चुनावी सुधार की ज़ोरदार मांग उठ रही है।



