प्रयागराज ऑनलाइन डेस्क। प्रयागराज महाकुंभ में 144 साल बाद ऐसा शुभ अवसर आया है जब एक साथ छह शाही स्नान हो रहे हैं। जिसके कारण अब तक करीब 55 करोड़ से अधिक भक्त महाकुंभ पहुंच चुके हैं। अनुमान के मुताबिक, ये आंकड़ा 60 करोड़ के पार पहुंच जाएगा। महाकुंभ को लेकर कहा जाता है इसका इतिहास बहुत प्राचीन है। मुगल से लेकर अंग्रेज हुकूमत के वक्त भी कुंभ का आयोजन हुआ करता था। कुंभ को लेकर कई कहानियां है। ऐसी ही कहानी महाकुंभ उसके इतिहास और कुंभ में होने वाले खर्च से जुड़ी है। जिसके बारे में हम आपको अपने इस खास अंक में बताने जा रहे हैं।
अमेरिकी विचारक मार्क ट्वैन के शब्द
तीर्थराज प्रयागराज में भक्तों का जनसैलाब है। गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम तट पर भोर पहर से संत, कारोबारी, राजनेता, अभिनेता, अमीर और गरीब पहुंच कर डुबकी लगा रहे हैं। आजाद भारत का ये अब तक का सबसे बड़े महाकुंभ बन गया है। करीब 55 करोड़ भक्तों ने त्रिवेणी में स्नान कर पुण्ण कमा चुके हैं। भारत को मानव जाति का पालना बताने वाले अमेरिकी विचारक मार्क ट्वैन ने कुंभ को लेकर कहा था कि, ‘कुंभ अद्भुत है, इस तरह के विश्वास की शक्ति, जो बड़ी संख्या में वृद्धों और कमजोरों, युवा और कमजोर लोगों को बिना किसी हिचकिचाहट या शिकायत के ऐसी अविश्वसनीय यात्राओं को शुरू करने के लिए प्रेरित कर सकती है।
वायसराय कुंभ का जमघट देखने पहुंचे
अमेरिकी विचारक मार्क ट्वैन ही नहीं बल्कि दुनिया के जानी-मानी हस्तियां भी महाकुंभ में पहुंची और भक्त और आस्था के संगम को देख आचंभित हो गई। अगर कुंभ की बात करें तो इसका इतिहास बहुत प्राचीन है। बात 1942 के प्रयागराज कुंभ की। तब अंग्रेज वायसराय लिनलिथगो कुंभ का जमघट देखने पहुंचे थे। उनके साथ मदन मोहन मालवीय थे। लाखों लोगों का रेला, कांपते-ठिठुरते श्रद्धालु, संगम तट पर डुबकी लगाती भीड़। हर-हर महादेव के नारे और गंगा मैया के जयकारे के शोर को सुन कर लंदन का बाबू हैरान रह गया। वायसराय ने जमघट को देख उत्सुकतावश मालवीय जी से पूछा, इतने लोगों को कुंभ का न्योता देने में बड़ा धन और श्रम लगता होगा।
मालवीय जी ने दिया उत्तर
वायसराय के प्रश्न का उत्तर मालवीय जी ने मुस्कुराते हुए दिया। उन्होंने कहा कि मात्र दो पैसे में। जवाब सुनकर वायसराय लिनलिथगो हैरान रह गया और मालवीय जी से प्रश्न किया, ये कैसे संभव है। जिस पर मालवीय जी ने अंग्रेज अफसर की जिज्ञासा का तुरंत समाधान किया। उन्होंने जेब से एक लंबा सा पंचांग निकाला। इसे अंग्रेज अफसर को दिखाते हुए उन्होंने कहा, ’इस दो पैसे के पंचांग से भारत भर के लोग जान जाते हैं कि कुंभ कब है, स्नान की तिथियां कब हैं और वे स्वयं श्रद्धा से इस तीर्थ यात्रा पर निकल पड़ते हैं। मालवीय जी का यह उत्तर अंग्रेज वायसराय को कुंभ के जमघट से जुड़े कई शंकाओं का समाधान कर गया।
मार्क ट्वैन भी प्रयागराज आए
जानकार बताते हैं कि महाकुंभ का रहस्य पश्चिम के विद्वानों को हमेशा आकर्षित करता आया है। कुंभ के अमृत की जिज्ञासा, अमरता की खोज और पाप को जल से धो डालने की बलवती इच्छा की तलाश में विश्व भर ज्ञानी जन हर 12 साल बाद भटकते-भटकते कुंभ तक पहुंच जाते हैं। प्रोफेसर राजेंद्र श्रीवास्तव बताते हैं अमेरिकी विचारक और लेखक मार्क ट्वैन सन 1894-95 में प्रयागराज आए थे। उन्होंने संगम के तट पर भक्तों को देखा और एक किताब भी लिखी। जिसमें उन्होंने कुंभ को लेकर कई तरह के रहस्यों से पर्दा उठाया था। मार्क ट्वैन कईदिनों तक प्रयागराज में रूके थे। नागा साधुओं से मिले। भक्तों से भी प्रश्न किए और उनके जवाबों में कॉपी पर लिखा।
मार्क ट्वैन ने किताब में कुंभ का किया जिक्र
प्रोफेसर श्रीवास्तव बताते हैं कि लेखक मार्क ट्वैन ने अपनी बुक में लिखा, ‘यह अद्भुत है, इस तरह के विश्वास की शक्ति, जो बड़ी संख्या में वृद्धों और कमजोरों तथा युवा और कमजोर लोगों को बिना किसी हिचकिचाहट या शिकायत के ऐसी अविश्वसनीय यात्राओं को शुरू करने के लिए प्रेरित कर सकती है और इसके परिणामस्वरूप होने वाले दुखों को बिना किसी पश्चाताप के सहन कर सकती है। यह श्रद्धावश किया जाता है, या यह भय में किया जाता है, मुझे नहीं पता है। लेकिन आवेग चाहे जो भी हो, इससे पैदा होने वाला कार्य हमारे जैसे लोगों, ठंडे गोरों के लिए कल्पना से परे और अद्भुत है।
ये हस्तियां भी कुंभ को देख हो गई थीं चकित
प्रोफेसर श्रीवास्तव बताते हैं कि मार्क ट्वैन भारत में दो महीने तक रहे और 16 शहरों में घुमे। वह 1894-95 में जनवरी से अप्रैल के बीच में मार्क ट्वैन जब प्रयागराज पहुंचे तो वे ग्रेट नॉर्दर्न होटल में रुके थे। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू कुंभ को देख चकित थे। उन्होंने ’डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में लिखा, ‘वास्तव में यह समग्र भारत था, कैसा आश्चर्यजनक विश्वास जो हजारों वर्ष से इनके पूर्वजों को देश के कोने-कोने से खींच लाता है। 1954 के महाकुंभ में कई वीआईपी शख्सियतें प्रयागराज पहुंचीं थी। इस दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति डा राजेंद्र प्रसाद, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत कुंभ पहुंचे थे।
जानें कुंभ में कब कितना पैसा हुआ खर्च
गौरतलब है कि 142 साल पहले साल 1882 में महाकुंभ का आयोजन महज 20.2 हजार रुपये खर्च हुए थे। अगर साल 2025 के इस महाकुंभ की बात की जाए तो 7500 करोड़ रुपए है। यह अब तक का सबसे बड़े महाकुंभ को लेकर तैयारी का यह आंकड़ा सामने आया है। जहां ़60 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु इस बार स्नान करने के लिए पहुंचेंगे। अभिलेखागार से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक साल 1882 में मौनी अमावस्या पर 8 लाख श्रद्धालुओं स्नान किया था। उस वक्त भारत की आबादी 22.5 करोड़ थी। इस आयोजन पर 20,288 रुपये खर्च हुए थे। अगर आज के खर्च से तुलना की जाए तो तकरीबन 3.65 करोड़ रुपए होता है।
16.44 करोड़ रुपए खर्च
जबकि साल 1906 के कुंभ में करीब 25 लाख लोग शामिल हुए थे और उस पर 90,000 रुपये (इस वक्त के खर्च के हिसाब से 13.5 करोड़ रुपये होता है ) उस समय देश की आबादी 24 करोड़ थी। वहीं, 1918 के महाकुंभ में करीब 30 लाख लोगों ने संगम में डुबकी लगाई थी, जबकि उस समय की आबादी 25.20 करोड़ थी। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1.37 लाख रुपये आज के समय के हिसाब से 16.44 करोड़ रुपए खर्च होता है।