लखनऊ ऑनलाइन डेस्क। पांच सौ साल के लंबे इंतजार के बाद आखिरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अयोध्या में भव्य-दिव्य राम मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हुआ। 22 जनवरी 2024 को श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा का धार्मिक अनुष्ठान कार्यक्रम भी संपन्न हो गया। अब तक करोड़ों भक्त भगवान रामलला के दर्शन भी कर चुके है पर ऐसे कई कारसेवक रहे, जिन्होंने राम के नाम अपना पूरा जीवन कर दिया। देश के वो दिन भी देखना पड़ा, जब बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद दंगे भड़क गए और 6 दिसंबर 1992 को शहर-शहर इंसानों का लहू बहा। आजाद भारत का ये सबड़े बड़ा बना और दंगों में 2,000 से अधिक लोग मारे गये।
क्या है बाबरी मस्जिद का किस्सा
दरअसल, मुग़ल शासक बाबर के आदेश पर बाद मीर बाकी ने 1527 में इस मस्जिद का निर्माण करवाया था। मीर बाकी ने मस्जिद का नाम बाबरी मस्जिद रखा। निर्माण के बाद से मस्जिद को लेकर हिन्दूपक्ष की राय अलग रही। मुगल गए और अंग्रेज आए पर हिन्दुओं ने बाबरी मस्जिद के खिलाफ आवाज बुलंद रखी। रामलला के मामला कोर्ट में गया। तारीख-पे-तारीख पड़ी, पर केस सालों तक चला। 2019 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राम मंदिर के निर्माण का रास्ता खुला। पांच साल तक निर्माण कार्य चला। आखिरकार 22 जनवरी 2024 को रामलला अपने विराट भवन में विराजमान हो गए। बाबर की बाबरी मस्जिद के स्थान पर आज दिव्य-भव्य राम मंदिर खड़ा है और हरदिन लाखों भक्त रामनगरी आते हैं और रामलला के दर्शन कर पुण्ण कमाते हैं।
पहली हिंसा 1853 को हुई
आधुनिक समय में बाबरी मस्जिद मसले पर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच हिंसा की पहली घटना 1853 में अवध के नवाब वाजिद अली शाह के शासनकाल के दौरान दर्ज की गई थी। निर्मोही नामक एक हिंदू संप्रदाय ने ढांचे पर दावा करते हुए कहा कि जिस स्थल पर मस्जिद खड़ी है वहां एक मंदिर हुआ करता था, जिसे बाबर के शासनकाल के दौरान नष्ट कर दिया गया था। अगले दो वर्षों में इस मुद्दे पर समय-समय पर हिंसा भड़की। तब की सरकार ने हस्तक्षेप करते हुए इस स्थल पर मंदिर का निर्माण करने या पूजा करने की अनुमति देने से इंकार कर दिया। मामला बड़ा तो अंग्रेज सरकार ने दोनों धर्मों के लोगों को पूजा करने का आदेश दिया।
1955 तक दोनों धर्मो के लोग करते थे पूजा
फैजाबाद जिला गजट 1905 के अनुसार इस समय (1855) तक, हिंदू और मुसलमान दोनों एक ही इमारत में इबादत या पूजा करते रहे थे। लेकिन विद्रोह (1857) के बाद, मस्जिद के सामने एक बाहरी दीवार डाल दी गयी और हिंदुओं को अदंरुनी प्रांगण में जाने, वेदिका (चबूतरा), जिसे उन लोगों ने बाहरी दीवार पर खड़ा किया था, पर चढ़ावा देने से मना कर दिया गया। 1883 में इस चबूतरे पर मंदिर का निर्माण करने की कोशिश को उपायुक्त द्वारा रोक दिया गया। जिसके बाद फैजाबाद के अलावा आसपास के जिलों हिंसा हुई। दोनों पक्षों की तरफ से दर्जनों लोगों को जान गवांनी पड़ी। बाबरी मस्जिद का मामला थमने के बजाए धीरे-धीरे देश के अन्य राज्यों में फैल रहा था।
1985 को पहली बार केस कोर्ट में पहुंचा
19 जनवरी 1885 को महंत रघुवीर दास ने उप-न्यायाधीश फैजाबाद की अदालत में एक मामला दायर किया। 17 फीट-21 फीट माप के चबूतरे पर पंडित हरिकिशन एक मंदिर के निर्माण की अनुमति मांग रहे थे, लेकिन मुकदमे को बर्खास्त कर दिया गया। एक अपील फैजाबाद जिला न्यायाधीश, कर्नल जे.ई.ए. चमबिअर की अदालत में दायर किया गया, स्थल का निरीक्षण करने के बाद उन्होंने 17 मार्च 1886 को इस अपील को खारिज कर दिया। एक दूसरी अपील 25 मई 1886 को अवध के न्यायिक आयुक्त डब्ल्यू. यंग की अदालत में दायर की गयी थी, इन्होंने भी इस अपील खारिज कर दिया। इसी के साथ, हिंदुओं द्वारा लड़ी गयी पहले दौर की कानूनी लड़ाई का अंत हो गया।
1934 में पहली बार बड़ा दंगा हुआ
1934 के “सांप्रदायिक दंगों“ के दौरान, मस्जिद के चारों ओर की दीवार और मस्जिद के गुंबदों में एक गुंबद क्षतिग्रस्त हो गया था। ब्रिटिश सरकार द्वारा इनका पुनर्निर्माण किया गया। मस्जिद और गंज-ए-शहीदन कब्रिस्तान नामक कब्रगाह से संबंधित भूमि को वक्फ क्र. 26 फैजाबाद के रूप में यूपी सुन्नी केंद्रीय वक्फ (मुस्लिम पवित्र स्थल) बोर्ड के साथ 1936 के अधिनियम के तहत पंजीकृत किया गया था। इस अवधि के दौरान मुसलमानों के उत्पीड़न की पृष्ठभूमि की क्रमशः 10 और 23 दिसम्बर 1949 की दो रिपोर्ट दर्ज करके वक्फ निरीक्षक मोहम्मद इब्राहिम द्वारा वक्फ बोर्ड के सचिव को दिया गया था।
1949 को रखी गई भगवान की मूर्ति
22 दिसम्बर 1949 की आधी रात को जब पुलिस गार्ड सो रहे थे, तब राम और सीता की मूर्तियों को चुपचाप मस्जिद में ले जाया गया और वहां स्थापित कर दिया गया। अगली सुबह इसकी खबर कांस्टेबल माता प्रसाद द्वारा दी गयी और अयोध्या पुलिस थाने में इसकी सूचना दर्ज की गयी। 23 दिसम्बर 1949 को अयोध्या पुलिस थाने में सब इंस्पेक्टर राम दुबे द्वारा प्राथमिकी दर्ज करवाई। एफआईआर के मुताबिक, 50-60 व्यक्तियों के एक दल ने मस्जिद परिसर में दाखिल हुआ और वहां पर भगवान की मूर्ति की स्थापना की। बाहरी और अंदरुनी दीवार पर गेरू (लाल दूमट) से सीता-राम का चित्र बनाया गया। उस वक्त मौके पर करीब, 5-6 हजार लोगों की भीड़ आसपास इकट्ठी थी।
6 दिसंबर को हुआ था मस्जिद का विध्वंस
6 दिसम्बर 1992 को कार सेवकों ने मस्जिद का विध्वंस कर दिया। जिसकी जांच लिब्रहान आयोग ने की थी। आयोग की रिपोर्ट ने उन सिलसिलेवार घटनाओं के टुकड़ों कों एक साथ गूंथा था। रविवार की सुबह लालकृष्ण आडवाणी और अन्य लोगों ने विनय कटियार के घर पर मुलाकात की। रिपोर्ट कहती है कि इसके बाद वे विवादित ढांचे के लिए रवाना हुए। आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और कटियार पूजा की वेदी पर पहुंचे, जहां प्रतीकात्मक रूप से कार सेवा होनी थी। फिर आडवाणी और जोशी 200 मीटर की दूरी पर राम कथा कुंज के लिए रवाना हो गए। यह वह इमारत है जो विवादित ढांचे के सामने थी, जहां वरिष्ठ नेताओं के लिए एक मंच का निर्माण किया गया था।
दंगे में करीब 2 हजार लोगों की हुई थी मौत
रिपोर्ट के अनुसार, दोपहर में एक किशोर कार सेवक कूद कर गुंबद के ऊपर पहुंच गया और उसने बाहरी घेरे को तोड़ देने का संकेत दिया। उस वक्त मौके पर पुलिसबल मौजूद था। पर रामलला परिसर पर करीब डेढ़ लाख लोग मौजूद थे। मंच से नेता लोगों को संबोधित कर रहे थे। तभी भीड़ उग्र हो गई और मस्जिद को विध्वंस कर दिया। जिसके बाद कानपुर से लेकर मुम्बई तक भीषण दंगे हुए। दंगे की आंच से कई शहर लहूलुहान हो गए। कईदिनों तक दंगा चला और बताया जाता है कि इस कांड में 2 हजार से अधिक लोगों की मौत हुई थी। करीब एक वर्ष तक दंगे की आग में देश झुलसा।
तकिया पार्क में 25 साल तक पीएसी रही तैनात
6 दिसंबर 1992 के बाद से तकिया पार्क में सरकार ने पीएसी की एक प्लाटून तैनात कर दी। बावजूद शहर का यह इलाका कभी शांत नहीं रहा। 1990 से लेकर 2001 तक करीब छोटे बड़े मिलकार दो दर्जन से ज्यादा दंगे हो चुके हैं। तकिया पार्क निवासी आशीष सिंह ने बताया कि सड़क के दाएं हिन्दू तो बाएं मुस्लिम रहते हैं। दोनों समुदाय के लोग 1990 से लेकर 2017 तक कभी भी एक दूसरे के इलाके में नहीं आते-जाते थे। 1992 दंगे के बाद मोहल्ले से हिन्दुओं का पलायन हुआ। जहां कभी 5 हजार से अधिक हिन्दू परिवार रहते थे, वहां सिर्फ एक परिवार बचा। परिवार की सुरक्षा को लेकर उनके घर पर सरकार को पुलिस चौकी खुलवानी पड़ी थी। 2017 के बाद तकिया पार्क से पीएसी हट गई पर लोगों के मन में अब भी दंगे की खटास है।