झांसी ऑनलाइन डेस्क। होली पर्व को लेकर पूरे देश में हर्षोउल्लास का माहौल है। कानपुर से लेकर वृंदावन में रंग-गुलाल अभी से जमकर उड़ रहा है। पर उत्तर प्रदेश के झांसी जनपद के एरच कस्बा, जो कभी गांव हुआ करता था, वहां की गलियों में सन्नाटा है। इसके पीछे की कहानी भी अद्भुत है। दरअसल, हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ने भतीजे प्रह्लाद को जलाकर मारना चाहा। लेकिन वह खुद ही जल गई और भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद बच गए। ये घटना एरच में घटी थी।
एरच में जली थी होलिका
झांसी से करीब 80 किमी की दूरी पर एरच कस्बा है। ऐसी मान्यता है कि इसी गांव में होलिका प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर जलती चिता में बैठ गई थी। एरच को प्रह्लाद नगरी के नाम से जाना जाता है। यहां होली पर प्रह्लाद के साथ-साथ मां होलिका की भी जय बोली जाती है। ऐसी मान्यता है कि जो होली पर यहां आकर होलिका कुंड में अपनी नाक रगड़ता है, उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है। आज भी वह अग्निकुंड एरच में मौजूद हैं, जिसमें होलिका की चिता जली थी।
हिरण्यकश्यप ने टीले का निर्माण करवाया
होलिका दहन स्थली के मुख्य पुजारी प्रतीप तिवारी ने बताया, ‘श्रीमद् भागवत पुराण स्कंद में हिरण्यकश्यप की नगरी का जिक्र आया है। सतयुग में इस जगह का नाम एरिकच्छ था। हिरण्यकश्यप ने इसे अपनी राजधानी बनाया था। इसके प्रमाण आज भी यहां मौजूद हैं। पुजारी प्रदीप बताते हैं कि बेतवा नदी के ऊपर हिरण्यकश्यप ने टीले का निर्माण करवाया था। प्रदीप बताते हैं, हिरण्यकश्यप के इसी टीले पर प्रह्लाद का जन्म हुआ।
बहन होलिका की मदद ली
पुजारी बताते हैं, प्रह्लाद की विष्णु भक्ति से क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने उन्हें मारने के कई प्रयास किए। कभी सांपों से भरी कोठरी में बंद करवा दिया। तेल की कढ़ाई में बैठाया तो कभी ढीकांचल पर्वत से नीचे फेंकवा दिया। लेकिन हर-बार प्रह्लाद बच जाते। आखिरकार, हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे को मारने के लिए बहन होलिका की मदद ली। हिरण्यकश्यप के कहने पर होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर जलती चिता में बैठ गई। भगवान ने प्रह्लाद को बचा लिया और होलिका की चिता में जलकर मौत हो गई।
होलिका को यहां बेटी का दर्जा
बुजुर्गों का कहना है कि होलिका को यहां बेटी का दर्जा दिया गया है। इसी वजह से पहले कस्बे में होली जलने से 2 दिन तक मातम मनाया जाता था। लेकिन आज ये परंपरा कुछ घरों तक ही सीमित रह गई है। ग्रामीण बताते हैं, होलिका का दूसरा नाम सिंहिका है। उसका जन्म एरिकच्छ में ही हुआ था। राहू भी होलिका का ही पुत्र था। इसी वजह से एरच में कभी राहूकाल नहीं लगता। एरच में आज भी वो अग्निकुंड मौजूद है। जहां होलिका प्रह्लाद को लेकर आग में बैठी थी। इस जगह पर अब होलिका का मंदिर बनाया गया है।
होलिका माता का आशीर्वाद
मंदिर के पुजारी के अनुसार, हर साल होली के समय इस मंदिर में हजारों की संख्या में लोग दर्शन करने आते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो भी होलिका दहन के दिन यहां आकर अपनी नाक रगड़ेगा, उसकी सभी मनोकामना पूरी हो जाएंगी। यहां रहने वाले लोगों का कहना है कि गांव की हिफाजत मां होलिका खुद करती हैं। ग्रामीण बताते हैं कि एरच में आज तक किसी घर में आग नहीं लगी। नदी के किनारे से सटे होने के बावजूद गांव में कभी भी बाढ़ नहीं आई है। ग्रामीण इसे होलिका माता का ही आशीर्वाद मानती हैं।
5000 वर्ष प्राचीन मुर्ति
एरच की श्रीभक्त प्रह्लाद जन-कल्याण संस्था यहां के ऐतिहासिक चीजों को संरक्षित कर रही है। संस्था के अध्यक्ष अमित चौरसिया बताते हैं, एरच में 3 बार भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने खुदाई करवाई है। साल 2008 में बेतवा नदी के करीब हुई खुदाई में होलिका दहन का साक्षात प्रमाण मिला था। एसआई की टीम को खुदाई में चूना पत्थर से बनी होलिका की मूर्ति मिली थी। इसमें होलिका प्रह्लाद को गोद में लिए बैठी दिखाई देती है। इसकी कार्बन डेटिंग करने के बाद यह पता चला कि ये मूर्ति करीब 5000 साल पुरानी है। इस प्रतिमा को उस जगह पर स्थापित किया गया है, जहां पहली बार होलिका दहन हुआ था।