फायर डिपार्टमेंट का बयान
दमकल विभाग के अनुसार, आग लगने की सूचना रात 11:35 बजे मिली थी और तुरंत ही मौके पर दो फायर ब्रिगेड की गाड़ियां भेजी गईं। विभाग की रिपोर्ट में कहा गया है कि आग को रात 1:56 बजे पूरी तरह बुझा दिया गया था। जांच में पता चला कि आग स्टोर रूम में लगी थी, जहां स्टेशनरी और कुछ घरेलू सामान जलकर खाक हो गए थे।
रिपोर्ट में किसी नकदी या अन्य संदिग्ध सामग्री का कोई उल्लेख नहीं है। दमकल विभाग ने स्पष्ट किया कि उनकी जिम्मेदारी केवल आग पर काबू पाना और नुकसान का आकलन करना है। इसके बावजूद, कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में यह दावा किया गया कि आग बुझाने के दौरान नकदी बरामद हुई थी, जिसने मामले को और पेचीदा बना दिया है।
सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी
इस पूरे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (21 मार्च) को एक अहम टिप्पणी की। न्यायालय ने कहा कि Justice Yashwant Varma से संबंधित घटना को लेकर कई तरह की गलत सूचनाएं और अफवाहें फैलाई जा रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जस्टिस वर्मा के इलाहाबाद हाई कोर्ट में स्थानांतरण का प्रस्ताव स्वतंत्र है और इसका इस घटना से कोई संबंध नहीं है।
इस मामले को लेकर विपक्षी दलों ने भी आवाज़ उठाई है। राज्यसभा में विपक्षी नेताओं ने आग के बाद नकदी मिलने की अफवाहों पर केंद्र सरकार से स्पष्टीकरण मांगा। गृह मंत्रालय को भी इस पूरे मामले की जानकारी दी गई है, जिसने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया संजीव खन्ना को सूचित किया है।
विपक्ष की मांग और जनता का सवाल
विपक्षी दलों ने इस घटना की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की मांग की है। कई नेताओं का कहना है कि जब फायर डिपार्टमेंट की रिपोर्ट में नकदी का जिक्र नहीं है, तो ऐसी अफवाहें क्यों फैल रही हैं? जनता भी इस मुद्दे पर सच्चाई जानने के लिए उत्सुक है और न्यायालय से पारदर्शिता की उम्मीद कर रही है।
आग लगने और कैश मिलने की अफवाहों ने जस्टिस यशवंत वर्मा के स्थानांतरण को भी संदेह के घेरे में ला दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अफवाहों को खारिज करते हुए कहा कि न्यायिक स्थानांतरण प्रक्रिया स्वतंत्र है और इसका इस घटना से कोई लेना-देना नहीं है।
अब देखना यह है कि सरकार और न्यायपालिका इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाते हैं और जांच में क्या सच्चाई सामने आती है। मामले की निष्पक्ष जांच और पारदर्शिता की मांग अब और भी ज़ोर पकड़ रही है।