लखनऊ–कानपुर पुराने नेशनल हाईवे पर भारी वाहनों की आवाजाही रोकने से ट्रकों और कमर्शियल वाहनों का समय और खर्च दोनों बढ़ गए हैं। नादरगंज–जुनाबगंज सेक्शन पर करीब 8 किमी लंबे एलिवेटेड एक्सप्रेस-वे के निर्माण के चलते ट्रैफिक डायवर्जन लागू है, जिससे कई वाहनों को वैकल्पिक मार्ग से 2 घंटे ज्यादा सफर और लगभग 10 हजार रुपये तक अतिरिक्त लागत झेलनी पड़ रही है।
क्यों बंद हुआ पुराना लखनऊ–कानपुर हाईवे?
राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) लखनऊ–कानपुर एक्सप्रेस-वे प्रोजेक्ट के तहत नादरगंज से जुनाबगंज के बीच एलिवेटेड सेक्शन और आउटर रिंग रोड कनेक्टिविटी पर काम कर रहा है। इस क्षेत्र में गिर्डर लॉन्चिंग, भारी मशीनरी और संकरी कार्यस्थल के कारण भारी वाहनों के गुजरने से जाम और दुर्घटनाओं का खतरा काफी बढ़ गया था, इसलिए निर्माण एजेंसियों ने ट्रैफिक पुलिस के साथ मिलकर पुराने हाईवे पर बड़े वाहनों के लिए अस्थायी प्रतिबंध लगा दिया।
अब लखनऊ से कानपुर या कानपुर से लखनऊ की ओर जाने वाले भारी वाहनों को दही चौकी, बछरावां, मोहनलालगंज, सरोजनीनगर और आउटर रिंग रोड जैसे वैकल्पिक रूटों से घुमाकर भेजा जा रहा है। इससे दूरी बढ़ने के साथ-साथ टोल, डीज़ल और समय – तीनों की खपत बढ़ गई है।
ट्रक ऑपरेटरों पर कितना असर?
ट्रांसपोर्ट एसोसिएशनों के मुताबिक,
रूट लंबा होने से एक ट्रिप में कम से कम 2 घंटे का अतिरिक्त समय लग रहा है,
लंबा चक्कर और टोल–प्लाजा बढ़ने से प्रति हैवी ट्रक पर रोज़ाना 7–10 हजार रुपये तक की अतिरिक्त लागत का दबाव बन रहा है (ईंधन, टोल, ड्राइवर ओवरटाइम और मेंटेनेंस सहित)।
इसका सीधा असर मालभाड़ा दरों पर पड़ सकता है। अगर डायवर्जन कई हफ्ते या महीनों तक जारी रहता है, तो उद्योगों और थोक व्यापारियों के लिए लॉजिस्टिक कॉस्ट बढ़ेगी, जो अंततः उपभोक्ताओं तक भी पहुंच सकती है।
क्या फायदा एक्सप्रेस-वे से?
अधिकारियों का दावा है कि लखनऊ–कानपुर एक्सप्रेस-वे पूरी तरह चालू होने के बाद दोनों शहरों के बीच सफर का समय लगभग दो घंटे से घटकर एक घंटे के आसपास रह जाएगा और भारी वाहनों को बिना रुकावट तेज़ व सुरक्षित यात्रा का कॉरिडोर मिलेगा। फिलहाल जो डायवर्जन और अतिरिक्त खर्च दिख रहा है, उसे प्रोजेक्ट की ‘शॉर्ट-टर्म कॉस्ट’ माना जा रहा है, जिसके बदले लंबे समय में ट्रैवल टाइम, ईंधन और परिचालन लागत में बचत की उम्मीद की जा रही है।
हालांकि ट्रांसपोर्टर संगठन यह मांग कर रहे हैं कि वैकल्पिक रूटों की हालत सुधारी जाए, स्पष्ट साइन बोर्ड लगाए जाएं और लंबे समय तक चलने वाले डायवर्जन के दौरान टोल में आंशिक राहत पर भी सरकार विचार करे, ताकि मौजूदा आर्थिक बोझ कुछ कम हो सके।



