MahaKumbh stampede: MahaKumbh मेले में 29 जनवरी को मौनी अमावस्या के दिन मची भगदड़ में कई लोगों की जान चली गई थी. हादसे के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने मृतकों के परिजनों को मुआवजा देने का वादा किया था, लेकिन अब तक अधिकतर पीड़ितों को राहत नहीं मिली है. इस देरी पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सरकार को जमकर फटकार लगाई है. कोर्ट ने सरकारी रवैये को अस्थिर और आम नागरिकों की पीड़ा के प्रति उदासीन करार दिया. जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस संदीप जैन की पीठ ने सख्त टिप्पणी करते हुए राज्य सरकार से सभी लंबित मुआवजा दावों का ब्योरा मांगा है. साथ ही घायलों का इलाज करने वाले डॉक्टरों की पूरी जानकारी भी कोर्ट ने तलब की है.
सरकारी लापरवाही पर हाई कोर्ट नाराज़
इलाहाबाद हाई कोर्ट की अवकाश पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार की कार्यप्रणाली पर कड़े सवाल खड़े किए हैं. कोर्ट के अनुसार, जब सरकार ने सार्वजनिक रूप से मृतकों को मुआवजा देने का आश्वासन दिया था, तो इसे समय पर लागू करना उसकी जिम्मेदारी थी. पीठ ने सरकार के व्यवहार को पीड़ितों की पीड़ा के प्रति संवेदनहीन बताया. याची उदय प्रताप सिंह की पत्नी सुनैना देवी की भगदड़ में मौत हो गई थी, लेकिन न तो शव का पोस्टमार्टम हुआ और न ही परिवार को सूचित किया गया कि महिला कब और किस हालत में अस्पताल पहुंची. कोर्ट ने इसे गंभीर प्रशासनिक चूक करार दिया.
सरकार से मांगा मुआवजे का पूरा लेखा-जोखा
कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि इस तरह की त्रासदियों में राज्य सरकार का यह नैतिक और संवैधानिक कर्तव्य है कि वह पीड़ित परिवारों की सहायता सुनिश्चित करे. कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि वह अब तक मुआवजा पाने वाले, दावे दाखिल करने वाले और लंबित मामलों का पूरा ब्योरा अदालत में पेश करे. इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार एक ट्रस्टी के रूप में काम करती है और उसे नागरिकों के प्रति जवाबदेह रहना चाहिए.
चिकित्सा व्यवस्था की भी जांच होगी
अदालत ने जिला प्रशासन, चिकित्सा संस्थानों और अन्य संबंधित अधिकारियों को मामले में पक्षकार बनाते हुए हलफनामा दाखिल करने के निर्देश दिए हैं. कोर्ट ने कहा कि 28 जनवरी को जिन लोगों की मौत हुई, उनके नाम, कारण और इलाज की जानकारी पेश की जाए. साथ ही उन डॉक्टरों का भी विवरण मांगा गया है, जिन्होंने घायलों का उपचार किया और मृत घोषित किया.
न्याय की उम्मीद में पीड़ित परिवार
MahaKumbh जैसे विशाल धार्मिक आयोजन में प्रशासन की लापरवाही और बाद की अनदेखी ने एक बार फिर पीड़ितों को न्याय के लिए अदालत का दरवाज़ा खटखटाने पर मजबूर कर दिया है. अब सबकी निगाहें सरकार की अगली कार्रवाई पर टिकी हैं कि क्या वह कोर्ट की सख्ती के बाद पीड़ितों को राहत दे पाएगी या फिर आश्वासन का सिलसिला यूं ही चलता रहेगा.