प्रयागराज ऑनलाइन डेस्क। संगमनगरी में महाकुंभ के आगाज के साथ धर्म की बयार बह रही है। त्रिवेणी में आस्था का ऐसा जनसैलाब उमड़ा, जिसे देखकर इंद्र भगवान भी मगन हैं। दूसरे दिन शाही स्नान की शुरूआत हुई। पुरूषों के साथ ही महिला नागा साधुओं ने संगम में डुबगी लगाई। इस दौरान त्रिवेणी के तट पर लाखों की संख्या में भक्त मौजूद हैं और सभी नागा संतों को देखकर मंत्रमुग्ध होने के साथ ही आर्शीवाद भी ले रहे हैं। सबके आकार्षण का केंद्र महिला नागा साधू बनी हुई हैं। इनसब के बीच महिला नागा साधुओं के वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। पूरे शरीर पर राख लगाए एक महिला नागा साधु का वीडियो हाल ही में चर्चा में था, जिसे लाखों यूजर्स ने देखा और कमेंट लिखे। नागा साधुओं की दुनिया को जानने की इच्छा भी जताई।
तब महिला नागा साधू नहीं करती कुंभ में स्नान
प्रयागराज महाकुंभ में हरबार की तरह इस बार भी नागा साधु लोगों के बीच आकर्षण का केंद बने हुए हैं। पुरुषों के समान ही महिला नागा साधू भी महाकुंभ में अपनी अहूती दे रही हैं। महिला नागा साधु गृहस्थ जीवन से दूर हो चुकी होती हैं। इनके दिन की शुरुआत और अंत दोनों पूजा-पाठ के साथ ही होती है। महिला नागा साधु का जीवन कई तरह की कठिनाइयों से भरा होता है। महिला नागा साधु, पुरुष नागा साधुओं से अलग होती हैं। वे दिगंबर नहीं रहतीं। वे सभी केसरिया रंग के वस्त्र धारण करती हैं। लेकिन वह वस्त्र सिला हुआ नहीं होता। इसलिए उन्हें पीरियड्स के दौरान कोई समस्या नहीं होती। कुंभ मेले में नागा साध्वियों भाग लेती हैं। अगर पीरियड्स चल रहा होता है तो वह गंगा में डुबगी नहीं लगाती। सिर्फ शरीर पर गंगा गल छिड़क लेती हैं।
सिर्फ गंती पहनती हैं महिला नागा साधू
महिला नागा साधु बनने के बाद सभी साधु-साध्वियां उन्हें माता कहती हैं। माई बाड़ा में महिला नागा साधु होती हैं, जिसे अब दशनाम संन्यासिनी अखाड़ा कहा जाता है। पुरुष नागा साधु नग्न रह सकते हैं, लेकिन महिला नागा साधु को नग्न रहने की इजाजत नहीं होती है। पुरुष नागा साधुओं में वस्त्रधारी और दिगंबर (निर्वस्त्र) दो तरह के नागा साधु होते हैं। सभी महिला नागा साधु वस्त्रधारी होती हैं। महिला नागा साधुओं को अपने माथे पर तिलक लगाना जरूरी होता है। महिला नागा साधु गेरुए रंग का सिर्फ एक कपड़ा पहनती हैं, जो सिला हुआ नहीं होता है। महिला नागा साधु के इस वस्त्र को गंती कहा जाता है। महिला नागू साधू पूरी जिंदगी सिर्फ गंती पहनकर गुजारती हैं। वह भी सिर्फ दिन में एक बार भोजन करती हैं। महिला नागा साधू भी कुंभ में ही दिखाई देती हैं। समापन के बाद वह भी पर्वतों पर चली जाती हैं।
कैसे बनती हैं महिला नागा साधू
नागा साधु बनने कि लिए महिलाओं को कड़ी परीक्षा से गुजरना पड़ता है। नागा साधु या संन्यासनी बनने के लिए 10 से 15 साल तक कठिन ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। नागा साधु बनने लिए गुरु को विश्वास दिलाना पड़ता है कि वह महिला नागा साधु बनने के लिए योग्य हैं और खुद को ईश्वर के प्रति समर्पित कर चुकी हैं। इसके बाद गुरु ही नागा साधु बनने की स्वीकृति देते हैं। नागा साधु बनने से पहले महिला की बीते जीवन को देखकर यह पता किया जाता है कि वह ईश्वर के प्रति समर्पित है या नहीं और वह नागा साधु बनने के बाद कठिन साधना कर सकती है या नहीं। नागा साधु बनने से पहले महिला को जीवित रहते ही अपना पिंडदान करना होता है और मुंडन भी कराना पड़ता है।
जानिए क्या खाती हैं महिला नागा साधू
मुंडन कराने के बाद महिला को नदी में स्नान कराया जाता है और फिर महिला नागा साधु पूरा दिन भगवान का जप करती हैं। पुरुषों की तरह ही महिला नागा साधु भी शिवजी की पूजा करती हैं। सुबह ब्रह्म मुहुर्त में उठकर शिवजी का जाप करती हैं और शाम को दत्तात्रेय भगवान की आराधना करती हैं। दोपहर में भोजन के बाद फिर वह शिवजी का जाप करती हैं। नागा साधु खाने में कंदमूल फल, जड़ी-बूटी, फल और कई तरह की पत्तियां खाते हैं। महिला नागा साधु के रहने के लिए अलग-अलग अखाड़ों की व्यवस्था की जाती है.। हालांकि, पुरुष नागा साधु के स्नान करने के बाद वह नदी में स्नान करने के लिए जाती हैं। अखाड़े की महिला नागा साध्वियों को माई, अवधूतानी या नागिन कहा जाता है।
2013 में पहली बार कुंभ में मिली पहचान
करीब 10 साल पहले वर्ष 2013 में इलाहाबाद कुंभ में पहली नागा महिला अखाड़े को अलग पहचान मिली थी। ये अखाड़ा संगम के तट पर जूना संन्यासिन अखाड़ा के तौर पर नजर आया। तब नागा महिला अखाड़े की नेता दिव्या गिरी थीं, जिन्होंने साधु बनने से पहले इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ एंड हाइजिन, नई दिल्ली से मेडिकल टैक्नीशियन की पढ़ाई पूरी की थी। वर्ष 2004 में वह विधिवत तौर पर महिला नागा साधु बन गईं। तब उन्होंने कहा था कि हम कुछ चीजें अलग से करना चाहती हैं। जूना अखाड़े के इष्टदेव भगवान दत्तात्रेय हैं, हम अपना इष्टदेव दत्तात्रेय की मां अनुसूइया को बनाना चाहती हैं।
कौन हैं माता अनुसूइया
पूजा महिला नागा साधु भगवान शिव और दत्तात्रेय के साथ अनिवार्य तौर पर पूजा करती हैं। ऋषि अत्रि और भगवान दत्तात्रेय की माता का नाम अनुसूया है। वह अपने पतिव्रता धर्म के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध थीं। जबकि ब्रह्मा, महेश और विष्णु की पत्नियों को लगता था कि वो सबसे ज्यादा पतिव्रता हैं। लेकिन जब महर्षि नारद ने तीनों को बताया कि धरती पर अनुसूया उनसे ज्यादा पतिव्रता हैं तो तीनों को ये बता बहुत चुभ गई। तीनों ने अपने पतियों से कहा कि अनुसूइया की परीक्षा लेनी चाहिए. आखिरकार ब्रह्मा, विष्णु और महेश को उनकी परीक्षा लेने जाना ही पड़ा। ये परीक्षा ऐसी हुई कि माता अनुसूया का दर्जा देवी के तौर पर बहुत ऊपर हो गया।