मोहसिन खान
मुजफ्फरनगरः-मीरापुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव में मुकाबला काफी दिलचस्प और कांटे का होता हुआ नज़र आ रहा है, जबकि पतंग की उड़ान ने साइकिल की रफ्तार को पसोपेश में डाल रखा है। ग्राउंड ज़ीरों से द मिड पोस्ट ने मियां जी के मूड को समझने और महौल को भांपने की कोशिश की, जिसमें मीरापुर की जनता यूं तो मुकाबला एनडीए और इंडी गठबंधन के बीच मानकर चल रही है, लेकिन इन सबके बीच एआईएमआईएम को भी कमतर नहीं आंका जा सकता है, क्योंकि एआईएमआईएम के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरें अरशद राणा मुस्लिम युवाओं में पहली पसंद बने हुए है और यही वजह है कि मुस्लिम मतदाताओं का एक अच्छा खासा तबका पतंग उड़ाने को तैयार है। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि अकेले मुस्लिमों के दम पर एआईएमआईएम कोई बड़ा उलटफेर तो नहीं कर सकती है, लेकिन इतना ज़रूर है कि इंडी गठबंधन प्रत्याशी का नुकसान कर सकते है।
‘मियां जी’ बोले एआईएमआईएम का बनाएंगे वजूद
ग्राउंड जीरो से मुस्लिम मतदाताओं के मिजाज़ को भांपने पर चौकानें वाली बात सामने आई, सवाल सीधा सा था कि मीरापुर में माहौल क्या है तो जवाब था कि पतंग को ज़ोर है यानि की एआईएमआईएम प्रत्याशी मज़बूती से चुनाव लड़ रहे है, इसके पीछे मुस्लिम मतदाताओं का तर्क ये था कि उपचुनाव से ना तो अखिलेश की सरकार बन रही है और ना ही प्रदेश में योगी की सरकार जा रही है, तो ऐसे में अपना मुस्तकबिल बनाने के लिए पतंग का बटन दबाएंगे। इस दौरान उन्होंने सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमों मायावती को भी खरी-खरी सुनाई और कहा कि आज तक इन्होंने मुस्लिमों का वोट लेने के अलावा उनकी भलाई के लिए कोई काम नहीं किया। लिहाज़ा एआईएमआईएम के राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्ीन ओवैसी के हाथों को मजबूत करेंगे।
मुस्लिम वोटों में हुआ बिखराव तो बदलेगी तस्वीर!
2022 के विधानसभा चुनाव के नतीजों को एनडीए गठबंधन दोहराने की कोशिश में है, क्योंकि 22 के चुनाव में सपा के साथ चुनाव लड़ी रालोद ने यहां पर जीत दर्ज की थी और अब रालोद एनडीए गठबंधन में शामिल है। वहीं मीरापुर विधानसभा सीट पर पांच मुस्लिम प्रत्याशी चुनावी मैदान में है, जिससे ये संभावना जताई जा रही है कि मुस्लिम मतों में बिखराव हो सकता है और अगर ऐसा होता है तो फिर रालोद प्रत्याशी की जीत की राह आसान हो जाएगी, क्योंकि जाट-गुर्जर बाहुल्य सीट पर एक मुश्त वोट एनडीए गठबंधन को हो सकता है, हालाकि 2022 के चुनाव में चंदन सिंह चौहान के चुनावी मैदान में होने पर गुर्जर वोटों का धुव्रीकरण नहीं हुआ था और बाकी मुस्लिम वोट सपा के नाम पर ट्रांसफर हो गया था, लेकिन उपचुनाव में तस्वीर बिल्कुल बदली हुई है, खासतौर से सपा को मुस्लिम वोटों के बिखरने का डर लगातार सता रहा है।