उत्तर प्रदेश: वक्त से बड़ा कोई नहीं होता है, और ये बात बाहुबली मुख्तार अंसारी के हालातों को देखकर साबित हो गया है। जिसके आगे किसी की नहीं चलती थी, आज वो अपनी जान के लिए भिख मांग रहा है।
उत्तर प्रदेश का बाहुबली मुख्तार अंसारी इस वक्त बांदा जेल में बंद है। अंसारी को जेल में अपनी हत्या का डर सताने लगा है, जिसके बाद मुख्तार अंसारी ने कोर्ट में सुरक्षा की गुहार लगाई है। विशेष न्यायाधीश दिनेश चौरसिया की अदालत में जेल में सुरक्षा को लेकर गुहार लगाई गई। मुख्तार अंसारी ने लिखित शिकायत में कहा कि उसकी जान को जेल में खतरा है, प्रशासन उसकी जेल के अंदर हत्या करवाना चाहती है और जेल में एक सिपाही से उसे सबसे ज्यादा खतरा है। मुख्तार की लिखित शिकायत में 13 और 20 सितंबर को कोर्ट में सुनवाई होगी। ये सिपाही सोनभद्र से ट्रांसफर होकर बांदा आया है। जिससे माफिय डॉन को डर लगने लगा है।
कौन है मुख्तार अंसारी ?
गाजीपुर के युसुफपुर-मुहम्मदाबाद में 30 जून 1963 में मुख्तार अंसारी का जन्म हुआ। मुख्तार के दादा ने आजादी के आंदोलन में भाग लिया था। मुहम्मदाबाद स्थित मुख्तार के घर को ‘फाटक’ के नाम से जाना जाता है। एक समय यहां लोग अपनी समस्याओं का समाधान कराने आते थे। मुख्तार के नाना ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को 1947 की लड़ाई में शहादत के लिए महावीर चक्र मिला था। मुख़्तार के पिता सुभानउल्ला अंसारी स्थानीय राजनीति में सक्रिय थे। भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी रिश्ते में मुख्तार अंसारी के चाचा हैं।
जनप्रतिनिधि बनने से पहले मुख्तार अंसारी की पहचान एक दबंग या माफ़िया के रूप में हो चुकी थी। 1988 में पहली बार उनका नाम हत्या के एक मामले में आया। हालांकि इस मामले में उनके ख़िलाफ़ कोई पुख़्ता सबूत नहीं मिला..लेकिन इस घटना से मुख़्तार अंसारी का क्राइम की दुनिया में काफी नाम हुआ।
1995 में मुख्तार अंसारी ने राजनीति की में कदम रखा। 1996 में वो मऊ सीट से पहली बार विधायक बने, मऊ सदर सीट से मुख्तार अंसारी 5 बार विधायक रहा है। मुख़्तार अंसारी ने बसपा से राजनीति शुरू करने के बाद निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ा, फिर 2012 में अपनी पार्टी ‘क़ौमी एकता दल’ से खड़े हुए और 2017 में पार्टी के बसपा में विलय होने के साथ ही वह भी बसपा में शामिल हो गए, कभी मुख़्तार अंसारी को ‘गरीबों का मसीहा’ बताने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती ने अप्रैल 2010 में अंसारी भाइयों को ‘अपराधों में शामिल’ बताते हुए बसपा से निकाल दिया था। 2017 के चुनाव से पहले उन्होंने ‘अदालत में उन पर कोई आरोप तय नहीं हुआ है’ कहते हुए अंसारी भाइयों की पार्टी ‘क़ौमी एकता दल’ का विलय बसपा में करवा लिया।
2019 के लोकसभा चुनाव में अंसारी परिवार ने बसपा को ग़ाज़ीपुर, बलिया, बनारस और जौनपुर बेल्ट में मज़बूती दिलाने का काम किया। चुनाव में बसपा और सपा का गठबंधन था।
मुख्तार अंसारी का जब काफिला सड़क पर चलता था, तब उसके आगे किसी की भी आने की हिम्मत नहीं होती थी। आज वहीं माफिया अपनी जान की भिख कोर्ट से मांग रहा है। मुख्तार अंसारी को अपहरण, हत्या, लूटपाट के दर्जनों मामले में सजा सुनाई जा चुकी हैं और कई मामलों में कार्रवाई जारी है। इसी को समय कहा जाता है, जिसने अपनी ऊंगली पर कानून व्यवस्था चलाया और आज उसे एक सिपाही से डर लग रहा है।