Musharraf legacy in Baghpat: पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति दिवंगत परवेज मुशर्रफ के परिवार से जुड़ी मानी जाने वाली जमीन को उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के कोताना गांव में नीलाम कर दिया गया है। 13 बीघा यानी करीब दो हेक्टेयर इस शत्रु संपत्ति की नीलामी ऑनलाइन प्रक्रिया से हुई, जिसमें इसे तीन लोगों ने मिलकर 1 करोड़ 38 लाख 16 हजार रुपये में खरीदा। इस सौदे में खरीददारों ने कुल रकम का 25 प्रतिशत भी सरकार को जमा कर दिया है। हालांकि, जिले के प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि मुशर्रफ और इस संपत्ति के बीच का कोई ठोस सबूत नहीं मिला है, जिससे जमीन के मालिक नूरू का मुशर्रफ से कोई संबंध साबित हो सके। यह जमीन लगभग 1965 से शत्रु संपत्ति के तौर पर दर्ज थी जब नूरू पाकिस्तान चले गए थे।
बोली में खरीदी गई ऐतिहासिक जमीन
ADM पंकज वर्मा ने बताया कि आठ प्लॉटों में विभाजित इस (Musharraf legacy) जमीन की नीलामी में जोरदार बोली लगी, और अंततः तीन लोगों ने इसे 1 करोड़ 38 लाख रुपये में खरीदा। नीलामी प्रक्रिया ऑनलाइन की गई थी, जिसमें भाग लेने वाले तीनों लोगों ने इसके लिए काफी दिलचस्पी दिखाई और बोली लगाने के बाद तुरन्त ही निर्धारित 25 प्रतिशत राशि जमा कर दी। इस ऐतिहासिक संपत्ति को लेकर स्थानीय और ऑनलाइन माध्यमों पर चर्चाएं जारी हैं, क्योंकि यह जमीन परवेज मुशर्रफ के पूर्वजों की मानी जाती है, लेकिन इसका कोई प्रमाणित दस्तावेज नहीं है।
ऐतिहासिक कनेक्शन, लेकिन कोई ठोस सबूत नहीं
प्रशासनिक अधिकारी वर्मा ने बताया कि नीलामी में बिकी इस संपत्ति के (Musharraf legacy) पुराने दस्तावेजों में मालिक का नाम नूरू दर्ज है, जो कि 1965 में पाकिस्तान चला गया था। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि नूरू और मुशर्रफ के बीच कोई पारिवारिक संबंध था या नहीं। यह संपत्ति शत्रु संपत्ति के रूप में दर्ज थी और तब से सरकारी निगरानी में रही है।
मुशर्रफ का बागपत से कनेक्शन
मुशर्रफ का जन्म भले ही दिल्ली में हुआ था, लेकिन उनके दादा कोटाना गांव में रहते थे। उनके पिता सैयद मुशर्रफुद्दीन और मां (Musharraf legacy) जरीन बेगम का इस गांव में कोई वास्ता नहीं रहा, लेकिन मुशर्रफ के चाचा हुमायूं आजादी से पहले कोटाना में ही लंबे समय तक रहते थे। गाँव में उनका एक पुराना घर भी था, लेकिन मुशर्रफ खुद कभी यहाँ नहीं आए। वर्ष 2010 में इस जमीन को शत्रु संपत्ति के रूप में घोषित किया गया था, जिसके बाद अब इसे नीलामी में बेच दिया गया।
यह नीलामी न केवल बागपत बल्कि देश भर में चर्चा का विषय बन गई है क्योंकि इसे मुशर्रफ की बची हुई आखिरी विरासत के रूप में देखा जा रहा था।