नोएडा मुआवजा घोटाले में अब जांच का फोकस सिर्फ कुछ निचले स्तर के अफसरों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पिछले 10–15 वर्षों में नोएडा प्राधिकरण में तैनात 12 से अधिक सीईओ, एसीईओ और ओएसडी तक पहुंच गया है। अदालत ने विशेष जांच दल (SIT) को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि वह बढ़े हुए मुआवजा भुगतान में शीर्ष अधिकारियों की भूमिका, मिलीभगत और वित्तीय लेनदेन की भी गहन पड़ताल करे।
घोटाले की पृष्ठभूमि और रकम का पैमाना
नोएडा मुआवजा घोटाला मुख्य रूप से गेझा तिलपताबाद समेत कुछ गांवों में भूमि अधिग्रहण के मुआवजे में भारी गड़बड़ियों से जुड़ा है, जहां अपात्र या संदिग्ध दावेदारों को वास्तविक पात्रता से कहीं अधिक रकम दी गई। उत्तर प्रदेश सरकार की SIT की रिपोर्ट के अनुसार, 2009 से 2023 के बीच नोएडा प्राधिकरण ने कम से कम 20 मामलों में करीब 117.56 करोड़ रुपये ऐसे किसानों/लाभार्थियों को “अतिरिक्त मुआवजा” के रूप में दे दिए, जिनके दावे या तो कानूनी रूप से टिकते नहीं थे या अदालत से कोई स्पष्ट आदेश नहीं था।
इन मामलों में पैटर्न यह पाया गया कि कुछ समय–सीमा से बाहर (टाइम–बार्ड) अपीलों को “लंबित दिखाकर” या पुराने मामलों को गलत तरीके से सक्रिय बताकर समझौते किए गए, और प्रति वर्ग गज दर बढ़ाकर भुगतान किया गया, जबकि रिकॉर्ड में ऐसी किसी बढ़ोतरी की कोई बाध्यकारी न्यायिक वजह नहीं थी।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश और SIT का विस्तारित दायरा
सुप्रीम कोर्ट ने 2023–24 में आई शुरुआती SIT रिपोर्टों पर गंभीर चिंता जताते हुए कहा कि इतनी बड़ी स्तर की गड़बड़ियां सिर्फ दो–तीन विधि अधिकारियों के स्तर पर संभव नहीं हैं, और जांच का दायरा शीर्ष स्तर तक बढ़ाना होगा। अगस्त 2025 के आदेश में अदालत ने नई SIT गठित कराई और उत्तर प्रदेश पुलिस के वरिष्ठ IPS अधिकारियों की टीम को बैंक खातों, संपत्तियों और संदिग्ध लेनदेन की फॉरेंसिक जांच के निर्देश दिए, साथ ही यह साफ किया कि जांच का उद्देश्य किसानों को परेशान करना नहीं, बल्कि अधिकारियों–लाभार्थियों की सांठगांठ उजागर करना है।
दिसंबर 2025 में कोर्ट ने SIT को जांच पूरी करने के लिए दो महीने का अतिरिक्त समय दिया और स्पष्ट कहा कि पिछले 10–15 साल में तैनात सभी सीईओ, एसीईओ, ओएसडी और संबंधित टॉप ब्रास की भूमिका की पड़ताल की जाए, क्योंकि एक रुपये मुआवजा जारी करने की फाइल भी अंततः सीईओ स्तर से होकर जाती है।
किन अधिकारियों पर आ सकती है आंच?
रिपोर्ट्स के मुताबिक मुआवजा वितरण की प्रक्रिया में 12 से अधिक सीईओ, एसीईओ और ओएसडी शामिल रहे हैं, जिनके समय में निर्णय अनुमोदन के लिए फाइलें चलीं और भुगतान स्वीकृत हुए, इसलिए सभी की भूमिका अब SIT के रडार पर है। पहले की आंतरिक जांच में नोएडा प्राधिकरण ने दो अधिकारियों और एक किसान के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी और एक सहायक विधि अधिकारी को निलंबित किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया कि जिम्मेदारी तय करने का दायरा इससे कहीं व्यापक होना चाहिए।
SIT की अंतरिम रिपोर्ट में यह भी रेखांकित किया गया कि कई मामलों में डिप्टी सीईओ और एसीईओ स्तर पर फाइलों की पर्याप्त जांच नहीं की गई और फर्जी या कमजोर दावों की भी भुगतान फाइलें “सिर्फ नोटिंग के आधार पर” आगे बढ़ा दी गईं, जो प्रशासनिक लापरवाही या संभावित मिलीभगत की ओर इशारा करती हैं।
किसानों के लिए राहत, प्राधिकरण के लिए मुश्किल
सुप्रीम कोर्ट ने साफ निर्देश दिया है कि जांच के दौरान किसानों के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई (जैसे गिरफ्तारी या जबरन रिकवरी) सिर्फ इस आधार पर न की जाए कि वे लाभार्थी रहे हैं; पहले अधिकारियों–लाभार्थियों के बीच वास्तविक सांठगांठ की पुष्टि जरूरी है। दूसरी ओर, प्राधिकरण पहले ही करीब 86 करोड़ रुपये की वसूली के लिए रिकवरी सर्टिफिकेट जारी कर चुका है, जिनमें से कुछ मामलों में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने किसानों की याचिकाएं खारिज कर प्राधिकरण की रिकवरी कार्रवाई को हरी झंडी दी है।
नोएडा प्राधिकरण की साख पर पड़े धब्बे को देखते हुए अदालत ने राज्य सरकार को यह भी सुझाव दिया है कि भविष्य में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए प्राधिकरण की संरचना और प्रशासनिक ढांचे में सुधार (जैसे “मेट्रोपॉलिटन काउंसिल” जैसे मॉडल) पर भी विचार किया जाए, ताकि इतने बड़े पैमाने पर मुआवजा हेरफेर दोबारा न हो सके।

