मोहम्मद ताहिर, हापुड़: अगर आपके पास कोई हैवी वाहन है और आपको चलाना नहीं आता तो भी हापुड़ में आपका लाइसेंस आसानी से बन जाएगा। वो भी बिना ट्रेनिंग के….जी हां ये हम नहीं कह रहे बल्कि हमारे कैमरे में ये काला सच कैद हुआ है। जो ये बताता है कि हाईवे पर दौड़ रहे बड़े वाहन कभी भी किसी की मौत की वजह बन सकते हैं।
हमारी टीम को खबर मिली थी कि हापुड़ में कागजों में चल रहे ट्रेनिंग स्कूलों में धड़ल्ले से दलालों के जरिए हैवी लाइसेंस बनाने का गोरखधंधा चल रहा है। जिसके बाद हमारी एसआईटी की टीम ने सच जानने के लिए ट्रेनिंग स्कूलों और उनसे जुड़े दलालों से बात की और जो सच सामने आया वो हैरान करने वाला था।
हाथों-हाथ लाइसेंस
सबसे पहले हमारी टीम ने हापुड़ मोटर ड्राइविंग ट्रेनिंग स्कूल के एक दलाल से सम्पर्क किया। जिससे बातचीत में जो खुलासा हुआ उससे आप भी हैरान रह जाएंगे। खुफिया कैमरे में दलाल ने दावा किया वो 17 हजार रूपये में हाथों-हाथ लाइसेंस बनाकर दे देगा। रिपोर्टर के पूछने पर दलाल ने बताया कि हम अपनी गाड़ी से तीस दिन की ट्रेनिंग दिलाते हैं। उसके लिए आपको 45 हजार रुपए देने पड़ेंगे और बिना ट्रेनिंग के लाइसेंस चाहिए तो उसमें 17 हाजर रुपए देने होंगे।
सिर्फ 17 हजार में हैवी लाइसेंस
तो आपने देखा कि कैसे दलाल ने साफ साफ कहा कि बिना ट्रेनिंग के सिर्फ 17 हजार रुपए में काम चल जाएगा। हमारी टीम ने थोड़ा बारगेनिंग करने की कोशिश की लेकिन दलाल कोई भी रियायत करने को तैयार नहीं था।
कागजों पर हापुड़ ट्रेनिंग सेंटर
यानी गाड़ी चलानी नहीं आती तो भी पैसे देकर आसानी से लाइसेंस बनवा देने का दावा कर रहे हैं ट्रेनिंग सेंटर वाले। हमारी टीम ने हापुड़ ट्रेनिंग सेंटर के बताए हुए लोकेशन का भी दौरा किया और पाया कि वहां ट्रेनिंग सेंटर के नाम पर कुछ भी नहीं था। यानी ट्रेनिंग सेंटर कागजों में चल रहा है और पैसे लेकर लाइसेंस बनाया जा रहा है।
कहां से आता है इतना हौसला?
अब हमने ये जानने की भी कोशिश की कि आखिर इन दलालों के पास इतना हौसला कहां से आता है और इनके दावों में कितना दम है। दलाल ने हमारे रिपोर्टर को बताया कि हम तो खाली पीली बदनाम हैं माल तो सारा अंदर ही जा रहा है। अभ सवाल उठता है कि क्या ये पूरा खेल बिना एआरटीओ के कर्मचारियों की शह के चल सकता है।
प्रशासन की नाक के नीचे
न्यूज वन इंडिया के कैमरे में कैद सच बेहद चौंकाने वाला है क्योंकि अगर बिना ट्रेनिंग के कोई भी बड़े वाहन लेकर सड़कों पर निकलता है तो हादसों की गुंजाइश ज्यादा बढ़ जाती है। सवाल उठता है कि आखिर प्रशासन की नाक के नीचे चल रहे इस काले खेल पर लगाम कैसे लगेगी। सवाल ये भी बड़ा है कि एआरटीओ में बैठे दलालों के मददगारों पर कार्रवाई कब होगी।